Apple production in Purola

पुरोला : उतरकाशी जनपद के कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में नई तकनीक से सेब के बगीचे विकसित कर किसान लाखों का सेब पैदाकर अपनी आर्थिकी मजबूत कर रहे हैं। इस काम में उनकी मदद कर रहा है इंडो-डच हॉर्टिकल्चर टेक्नोलॉजी संस्थान। जी हाँ जिले के पुरोला विकास खंड के डैरिका गाँव में इंडो-डच हॉर्टिकल्चर टेक्नोलॉजी संस्थान ने मात्र एक से डेढ़ साल की उम्र में सेब का फल देने वाली प्रजाति विकसित करने में कामयाबी हासिल की है। डैरिका गाँव में एक से डेढ़ साल में लाखों का सेब पैदा किया जा रहा। जो किसान अपनी खेती से मुख मोड़ रहे थे। आज वे अपने ही खेतों में लाखों के सेब का बागीचा देखकर हैरान हैं। इन बागों को तैयार करने वाली संस्था किसानों की खेती में सेब के बाग लगवाकर अच्छी आमदानी के लिए प्रेरित कर रही है। आम तौर पर जहां एक एकड़ जमीन पर सेब के 100 पेड़ लगाए जाते थे, वहीं नई विधि से एक हजार से 1200 तक पेड़ लगाए जा सकते हैं। पेड़ महज एक साल के भीतर ही फल देने लगते हैं। आमतौर पर सेब का उत्पादन ठंडे एवं अधिक ऊंचाई (करीब 8 हजार मीटर) वाले क्षेत्रों में होता हैं, परन्तु इस नई तकनीक से अब सेब का उत्पादन कम ऊंचाई (4 से 5 हजार मीटर) वाले क्षेत्रों में भी किया जा रहा है।

संस्थान के निदेशक सुधीर चड्ढा बताते हैं कि उन्होंने पिछले 12 साल से कश्मीर, हिमाचल में जगह-जगह काम किया है। और अब उत्तराखंड में भी चार प्रशिक्षण केंद्र खोले गए हैं। जिसमे से एक केंद्र डैरिका में भी खोला गया है। जिसमें किसानों को बाग लगाने के गुर सिखाए जाते हैं। संस्था द्वारा अब तक 3400 किसानों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। जिसके बाद किसान 170 सेब के बागीचे लगा चुके हैं। इस साल 10,000 किसानों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा गया था। जिसमें 1,000 किसानों के बागीचे तैयार होने थे, लेकिन कोरोना के कारण इस समय किसानों को दिक्कत आ रही है।

सुधीर चढ्ढा ने बताया कि विदेशी तकनीकी से सेब की पौध तैयार की गई है जिसमें किसानों की 5 नली जमीन पर ढाई सौ सेब के पौधे लगाये जाते हैं। किसानों का इस तरह पौधे लगाने पर एक लाख का खर्चा आता है यदि पौधे की सुरक्षा के लिए लोहे के ऐंगल व जाली भी लगे तो लगभग ढाई लाख खर्चा आता। 18 महीने के बाद पौधे फल देने शुरू कर देते हैं। पहले ही साल किसान को एक लाख की आमदानी हो जाती है। तीन साल बाद आय दुगुनी बढ़ जाती है। किसानों को सेब की पौध संस्था निःशुल्क देती हैं।

सेब की नयी किस्म जैसे एस्कारलेटस्पेर, गाला सींगों, गाला मीमा, किगरोह, ज्यारामाइन जैसी प्रजाति के सेब की पैदावार भी अधिक होती है। बाजार मूल्य भी अच्छा है। इस संस्था को कोका कोला कम्पनी भी मदद करती है। आज यह कम्पनी सेब से जूस निकाल कर बाजार में आ रहा है।

उत्तराखंड में सेब बागीचे के अपार संभावनाएं है यदि किसान अपनी खेती पर सेब के बाग लगाए तो पांच साल में यह प्रदेश हिमाचल प्रदेश से आगे निकल जायेगा। जहां सरकार किसानों से कई तरह के लुभावने वादे करती है वह सब झूठे साबित हो रही है। सुधीर चढ्ढा का कहना है कि आछ तक सरकार ने कुछ भी मदद नही की है। अब तक किसानों ने अपने बलबूते पर ही सारा काम किया है।

राकेश रतुड़ी, पुरोला