bichhu ghas corona ki davayi

अल्मोड़ा : बिच्छू घास उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक प्रकार का जंगली पौधा है, जो अक्सर घरों के आसपास और रास्तों के किनारे में भी अपने आप उग जाता है। बिच्छू घास को गढ़वाल में कंडाली, कुमाऊं में सिसौंण तथा अंगेजी में common Nettle नाम से जाना जाता है। इसे छूने से बिच्छू के डंक जैसा अनुभव होने के कारण ही इसे इसे बिच्छू घास के नाम से भी जाता है। इस पौधे के पत्तों एवं तनों पर सुई की तरह बहुत बारीक़ कांटे होते हैं। जिस कारण लोग इस पौधे को छूने से डरते हैं, इसे छूने से करंट जैसा अनुभव होता है। पुराने ज़माने में बिच्छू घास सिर्फ बच्चों को डराने के काम आती थी। हालाँकि कि कुछ जगह विशेष परिस्थितयों इसको साग (सब्जी) बनाकर भी खाया जाता था। इसके अलावा कभी-कभी इसका प्रयोग तंत्र-मंत्र से बीमारी भगाने, पित्त दोष, गठिया, शरीर के किसी हिस्से में मोच आदि को ठीक करने के लिए भी किया जाता था। परन्तु आज इसके कई औषधीय गुणों का पता चलने के कारण इसका उपयोग हर्बल चाय से लेकर कई आयुर्वेदिक दवाईयों में किया जाने लगा है। इसके अलावा बिच्छू घास यानी हिमालय नेटल से जैकेट, बैग, स्कार्फ, शॉल और स्टॉल तैयार किए जा रहे हैं। बिच्छू घास के उत्पादों की विदेशों में भारी डिमांड है। चमोली और उत्तरकाशी जिलों में कई स्वयं सहायता समूह बिच्छू घास के तने से रेशा निकाल कर विभिन्न प्रकार के उत्पाद बना रहे हैं।

कई औषधीय गुणों से युक्त बिच्छू घास अब कोरोना वायरस से भी लड़ने में कारगर साबित हो सकती है। सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर के जंतु विज्ञान विभाग एवं राष्र्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान रायपुर के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में किये गए शोध में बिच्छू घास में 23 ऐसे यौगिकों के खोज की गयी है जो कोरोना वायरस से लड़ने में काफी कारगर हो सकते हैं।

जंतु विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं शोध प्रमुख डॉ मुकेश सामन्त ने बताया कि इस शोध में उनके साथ राष्र्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान रायपुर के डॉ अवनीश कुमार एवं सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा के शोधार्थी शोभा उप्रेती, सतीश चंद्र पांडेय और ज्योति शंकर ने कार्य किया। डॉ सामन्त ने बताया कि यह शोध कार्य स्विट्जरलैंड से प्रकाशित वैज्ञानिक शोध पत्रिका स्प्रिंगर नेचर के मॉलिक्यूलर डाइवर्सिटी में प्रकाशित किया है।

उन्होंने बताया कि इस शोध में उनके द्वारा बिच्छू घास में पाए आने वाले 110 यौगिकों को मॉलिक्यूलर डॉकिंग विधि द्वारा स्क्रीनिंग की गयी जिसमें से 23 यौगिक ऐसे पाए गए जो हमारे फेफड़ों में पाए जाने वाले ।ब्म्-2 रिसेप्टर से आबद्ध हो सकते हैं और कोरोना वायरस के संक्रमण को रोक सकने में काफी कारगर सिद्ध हो सकते हैं। वर्तमान में इन यौगिकों को बिच्छू घास से निकालने का काम चल रहा है उसके बाद इन यौगिकों को लेकर क्लीनिकल ट्रायल भी किया जा सकता है।

उनकी इस उपलब्धि पर सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के कुलपति प्रो नरेन्द्र सिंह भंडारी एवं योग एवं नेचुरोपैथी के विभागाध्यक्ष डॉ नवीन भट्ट ने प्रसन्नता वयक्त करते हुए कहा कि यह कोरोनाकाल मे बहुत बड़ी उपलब्धि है।प्राकृतिक रूप से उत्तराखंड में अनेक योगिक है जो कोरोना से लड़ने में सक्षम है और उम्मीद जताई की उत्तराखंड में पाए जाने वाले औषधीय पौधे और उनसे प्राप्त यौगिक कोरोना और अन्य संक्रमणों को रोकने में कारगर सिद्ध होंगे।