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शिक्षक दिवस 2018: जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारतवर्ष में शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष 5 सितंबर को मनाया जाता है जबकि अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस का आयोजन 5 अक्टूबर को होता है। रोचक तथ्य यह है कि शिक्षक दिवस दुनिया भर में मनाया जाता है लेकिन सबने इसके लिए एक अलग दिन निर्धारित किया है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति महान शिक्षाविद  डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। शिक्षा के महत्व को उन्होंने जिस तरह रेखांकित किया, वह अनुकरणीय है। आदरणीय श्री राधाकृष्णन ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 40 वर्ष शिक्षक के रूप में व्यतीत किए। उनमें एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण मौजूद थे।

राधाकृष्णन का मानना था कि एक अच्छे शिक्षक को पता होना चाहिए कि वह अध्ययन के क्षेत्र में छात्रों की रुचि कैसे पैदा कर सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में अव्वल होते हुए, उसे इस क्षेत्र में आ रहे सारे परिवर्तनों की जानकारी होनी चाहिए। डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन “वसुधैव कुटुम्बकम” की अवधारणा को मानने वाले थे। पूरे विश्व को एक इकाई के रूप में रखकर शैक्षिक प्रबंधन के पक्षधर डॉ० राधाकृष्णन अपने ओजस्वी एवं बुद्धिमता पूर्ण व्याख्यानों से छात्रों के बीच अत्यन्त लोकप्रिय थे।शिक्षण कार्य में अपनी जबरदस्त पकड़ रखने के कारण दर्शन शास्त्र जैसे गंभीर विषय को भी अपनी शिक्षण शैली से वो रोचकता पैदा करके सरलतम रूप में छात्रों को समझाते-पढ़ाते थे। शिक्षण काल में छात्रों के मध्य कुछ रोचक प्रस्तुतियां, प्रेरक प्रसंग, हास्य-व्यंग्य की कहानियां प्रस्तुत करके छात्रों में सदैव शिक्षा के प्रति अभिरूचि बनाये रखने में कामयाब रहते थे।

गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को अलग अलग रूप-रंग के फूलों से सजाता है।

एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है।किसी भी देश या राष्ट्र के विकास में एक शिक्षक द्वारा अपने शिक्षार्थी को दी गई शिक्षा और शैक्षिक विकास की भूमिका का अत्यंत महत्व है।स्वस्थ समाज के निर्माण में शिक्षकों की अहम भूमिका है। शिक्षकों को अपने दायित्वों का निर्वहन निष्ठापूर्वक करना है। क्योंकि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के लागू हो जाने के बाद शिक्षकों की जिम्मेवारियां और बढ़ गयी हैं। आज तमाम शिक्षक अपने ज्ञान की बोली लगाने लगे हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो गुरु-शिष्य की परंपरा कहीं न कहीं कलंकित हो रही है। आए दिन शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों एवं विद्यार्थियों द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें सुनने को मिलती हैं।teachers-day-2018

अध्यापक छात्रों को अपने स्वंय के बच्चे की तरह बड़ी सावधानी और गंभीरता से शिक्षित करते हैं। किसी ने सही कहा कि, शिक्षक अभिभावकों से भी महान होता है। अभिभावक एक बच्चे को जन्म देते हैं, वहीं शिक्षक उसके चरित्र को आकर देकर उज्ज्वल भविष्य बनाते हैं। इसलिए, हमें उन्हें कभी भी भूलना और नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, हमें हमेशा उनका सम्मान और उनसे प्रेम करना चाहिए।

गुरु का महत्व कभी होगा ना कम,
भले कर ले कितनी भी उन्नति हम।
वैसे तो है इंटरनेट पर हर प्रकार का ज्ञान।
पर अच्छे बुरे की नहीं है उसे पहचान।।

शिक्षक वास्तव में शिक्षा और विद्यार्थियों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका को निभाते हैं। शिक्षक आमतौर पर उचित दृष्टि, ज्ञान और अनुभव वाले व्यक्ति बन जाते हैं। शिक्षकों का पेशा किसी भी अन्य पेशे से ज्यादा बड़ी जिम्मेदारियों वाला होता है। विद्यार्थियों और राष्ट्र की वृद्धि, विकास, और दोनों की भलाई पर शैक्षिक पेशा गहरा प्रभाव रखता है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक  मदन मोहन मालवीय जी  के अनुसार  “एक बच्चा जो आदमी का पिता होता है, उसके मन को ढालना उसके शिक्षक पर बहुत अधिक निर्भर करता है। यदि वह देशभक्त है और देश के लिए समर्पित है और अपनी जिम्मेदारियों को समझता है, तो वह देशभक्त पुरुषों और महिलाओं की एक जाति को पैदा कर सकता है जो धार्मिकता से ऊपर देश को और सामुदायिक लाभ से ऊपर राष्ट्रीय लाभ को रखेंगे।”

हमें गुरु के रूप सर्वप्रथम माँ ही मिलती है जो सबस पहले बोलना सिखाती है और जीवन के प्राथमिक ज्ञान भी हमे अपने माँ से ही मिलता है ज्ञान और सिखाने की परम्परा को लेकर भारत को विश्वगुरु भी कहा जाता रहा है भारत देश में प्राचीन सदियों से ही ऋषियो, मुनियों, गुरुओ और ज्ञानियों का हमारे समाज पर विशेष प्रभाव है जिसके कारण हमारे देश भारत में गुरूओं को भगवान् से भी ऊचा दर्जा दिया गया है जिसका वर्णन खुद कबीरदास जी ने इस दोहे के माध्यम से किया है –

“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।”

उन्होंने समझाया है की जब गुरु और भगवान दोनों खड़े हैं तो इंसान दुविधा में पड़ जाता है की सबसे पहले किसका चरण स्पर्श करूँ!  तब कबीरदास जी बताते हैं की पहले गुरु का चरण स्पर्श करना चाहिए क्यूंकि ये वही गुरु है जो तुमको भगवान तक पहुँचने का रास्ता दिखाते हैं।कबीर दास जी ने सत्य ही कहा है।

‘गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोक्ष।
गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान हमेशा ऊँचा रहा है, ये वही देश है जहाँ गुरु द्रोणाचार्य के कहने पर एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर अपने गुरु को दे दिया था। बिना गुरु के कामयाबी पाना बहुत कठिन होता है, जो हमें अच्छी सीख दे वो हमारा गुरु है, अगर जीवन में कुछ करना है तो गुरु के कहे अनुसार चलना जरूरी है, गुरु मार्गदर्शक है।

वर्तमान में शिक्षक और छात्रों के बीच की दूरी लगातार बढ़ती जा रही है और यही वजह है कि धीरे-धीरे सम्मान और आत्मीयता भी खत्म हो रही है। आधुनिकता की इस चकाचौंध में छात्रों ने भी शिक्षक से दूर हो इंटरनेट की दुनिया में कदम रख दिया है और नैतिक मूल्यों को भूल असामाजिक गतिविधियों की तरफ बढ़ चला है। शिक्षा व्यवस्था का भी राजनीतिकरण हो चुका है। शिक्षा के व्यवसायीकरण का ही परिणाम है कि आज नियुक्ति से लेकर ट्रांसफर और प्रमोशन तक में राजनीतिक हस्तक्षेप किया जाता है, जिसका असर देश के भविष्य पर पड़ना तय है।

आज शिक्षकों को शिक्षा के अलावा कई तरह के अन्य कार्यों में बांध दिया जाता है, मतगणना हो या जनगणना या कोई सरकारी योजना का क्रियान्वयन सभी कामों के लिए शिक्षकों को ही पहली प्राथमिकता के तौर पर लिया जाता है। यही वजह है कि दायित्व बंधनों में बंधकर अब शिक्षक सीमित हो गए हैं।

आज के बदलते दौर में गुरु-शिष्य के बीच आदर, मान-सम्मान और भावनात्मक स्नेह तंतु कमजोर पड़ते जा रहे हैं। इसका कारण आज के समय में साधन संपन्नता और शिक्षा नीति भी माना जा सकता है। शिक्षकों का कार्य न केवल पढ़ाई रह गया है, बल्कि अब शिक्षकों पर इसके अलावा अन्य कार्यों का भी अतिरिक्त बोझ बढ़ गया है। साधन संपन्नता से छात्रों में भी श्रमशीलता की कमी आई है। शिक्षकों को अपने छात्र जीवन और आज के छात्र जीवन में साफतौर पर बदलाव देखने को मिल रहा है। शिक्षक यह भी मान रहे हैं कि आज गुरुजनों को वह सम्मान नहीं मिलता, जो बीते समय में शिक्षक अपने छात्रों से पाते थे।

किसी देश की उन्नति के लिए भौतिक विकास के साथ-साथ मानव निर्माण भी अपेक्षित है। मानव पुनर्निर्माण का प्रमुख आधार शिक्षा ही है तथा शिक्षा के प्रणेता शिक्षक माने जाते हैं और शास्त्रों में भी कहा गया है –

गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवोम्हेश्वर।
गुरु साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः |

शिक्षक और छात्र में जबतक तादात्म्य नहीं स्थापित होगा वांछित परिणाम की आशा नहीं की जा सकती। इसके समन्वय के फलस्वरूप ही यह पूजा का रूप ले सकता है और उद्देश्य की प्राप्ति की ओर हमारे कदम संतुलित होकर बढ़ सकता है। हमारे देश, समाज, सभ्यता, संस्कृति का भार बहुत कुछ शिक्षकों के कन्धों पर ही रखा है। अपने इस उत्तरदायित्व को समझते हुए बच्चों के उत्कृष्ट व्यक्तित्व का निर्माण करने में अधिकाधिक प्रयास आवश्यक है। आज के शिक्षकों की यह बड़ी जिम्मेदारी है। किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी है तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता। अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी नहीं होगी तो वहां की प्रतिभा दबकर रह जाएगी।

शिक्षण कार्य ही एक ऐसा पेशा है जो किसी व्यक्ति के चरित्र का निर्माण कर सकता है किसी के भविष्य का आकार भी दे सकता है।

शिक्षक उस कुम्हार की भांति होता है जो विद्यार्थी रुपी घड़े को बनाने के लिए बाहरी हाथ से हल्का चोट तो देता है लेकिन घड़े के अंदर यानी हमारे आत्मा को सहारा भी देता है।रचनात्मक अभिव्यक्ति और ज्ञान में ख़ुशी को जगाना शिक्षक की सर्वोच्च कला है।आपके महान सपनों की शुरुआत शिक्षक के साथ ही शुरू होता है जो आपको यह विश्वास दिलाता है की आप भी वो कर सकते हैं जो दुनिया का कोई भी कर सकता है। एक शिक्षक ही बड़े से बड़े अपराधी को अच्छा नागरिक बना सकता है।हम जो कुछ भी आज है वह अपने बदौलत हो सकते हैं लेकिन इसका मार्ग कही न कही हमें एक शिक्षक के रूप में किसी न किसी से मिला होता है चाहे वह किसी भी रूप में हो सकता है।

हिन्दू धर्म में शिक्षक के लिए कहा गया है कि ‘आचार्य देवो भव:’ यानी कि शिक्षक या आचार्य ईश्वर के समान होता है। यह दर्जा एक शिक्षक को उसके द्वारा समाज में दिए गए योगदानों के बदले स्वरूप दिया जाता है। शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूज्यनीय रहा है। कोई उसे ‘गुरु’ कहता है, कोई ‘शिक्षक’ कहता है, कोई ‘आचार्य’ कहता है, तो कोई ‘अध्यापक’ या ‘टीचर’ कहता है। ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को चित्रित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है और जिसका योगदान किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है।

इस देश के राष्ट्रपति रहे मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम जी ने लिखा है- शिक्षकों का अहम ध्येय युवा मतिष्कों को तेजस्वी बनाना है। तेजस्वी युवा धरती पर, धरती के नीचे और ऊपर आसमान में सबसे सशक्त संसाधन हैं। शिक्षक की भूमिका उस सीढ़ी जैसी है, जिसके जरिये लोग जीवन की ऊंचाइयों को छूते हैं, लेकिन सीढ़ी वहीं की वहीं रहती है।शिक्षक का ध्येय बच्चों का चरित्र निर्माण करना तथा ऐसे मूल्यों को रोपना होना चाहिए जिससे कि उनके सीखने की क्षमता में वृद्धि हो। वे उनमें वह आत्मविश्वास पैदा करें कि छात्र कल्पनाशील और सृजनशील बन सके।’

‘शिक्षक दिवस‘ के इस अवसर पर जरुरत इस बात की है कि हम यह तय कर सकें कि कैसे शिक्षक-शिष्य सम्बन्धों को मजबूत करते हुए बदलते प्रतिमानों के साथ उनकी भूमिका को और भी सशक्त रूप दिया जा सकता है?  ऐसे में आज का यह दिन काफी महत्वपूर्ण है और इसी दिन के बहाने ही हम शिक्षकों को याद और सम्मान कर उनके प्रति आभार प्रकट कर सकते हैं।

मेरा परम सौभाग्य है कि मैं भी एक शिक्षक हूँ। मैंने अपने शिक्षक समय में काफी कुछ देखा है। निश्चित ही आज अच्छे शिक्षक के सामने अनेक चुनौतियां हैं। मेरे शिक्षक जैसे गौरवमयी पद के के महत्त्व को रेखांकित करती किसी की निम्न पंक्तियाँ महत्त्वपूर्ण हैं-

मैं और सड़क एक जैसे कहलाते हैं,
क्योंकि हम दोनों वहीं रहते हैं,
लेकिन सबको मंजिल तक पहुँचाते हैं,
रोज़ वही कक्षा, वही बच्चे,
पर होता मैं कभी बोर नहीं,
शुक्र है शिक्षक हूँ … कुछ और नहीं..।।

यदि शिक्षक के मार्गदर्शन में प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा को उसके वास्तविक अर्थ में ग्रहण कर मानवीय गतिविधियों को प्रत्येक क्षेत्र में उसका प्रसार करता है तो मौजूदा इक्कीसवीं सदी में दुनिया काफी सुन्दर हो जाएगी।

डॉ सुनील जैन