नई दिल्ली : विश्व की समस्त भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव है। संस्कृत में सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर प्रलय तक का ज्ञान विज्ञान समाया हुआ है। संस्कृत भारतीय संस्कृति और परंपरा की जीवंत अभिव्यक्ति का मुखर स्वर है। समय-समय पर भारत में जो भी आक्रांत आए, उन्होंने संस्कृत को नष्ट करने का कोई यत्न नहीं छोड़ा,लेकिन देववाणी अपने स्वाभिमान के साथ भारत की भारती के रूप में सुरक्षित रही। वेदों से लेकर श्रीमद्भगवद्गीता तक अनेकानेक ग्रंथों का अनुवाद पाश्चात्य विद्वानों ने सैकड़ों वर्ष पूर्व यूं ही नहीं किया। अंग्रेजों ने जिस संस्कृत को सुनियोजित षड्यन्त्र के अंतर्गत मृतभाषा कहा, उन्हीं के बौद्धिक योद्धा मैक्समूलर ने संस्कृत की महत्ता के विषय में अपनी पत्नी को जो पत्र लिखा उसमें दुष्प्रचार और षड्यन्त्र का पूर्ण प्रमाण है। आज भारत और भारतीय भाषाओं के प्रति ऐसे संगठित और सुनियोजित दुष्प्रचार को रोकने की आवश्यकता है।

ये विचार विश्व हिन्दू परिषद के आयाम भारत संस्कृत परिषद्, राष्ट्रोक्ति वेब पोर्टल, अशोक सिंघल फाउंडेशन और संस्कृत परिषद्, पी.जी.डी.ए.वी.महाविद्यालय (सान्ध्य) के संयुक्त तत्त्वावधान में “नई शिक्षा नीति और संस्कृत” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संस्कृत संगोष्ठी एवं संस्कृत विद्वत सम्मान समारोह का उद्घाटन करते हुए विश्व हिन्दू परिषद के मार्गदर्शक दिनेश चंद्र ने व्यक्त किये।

अतिथियों का स्वागत और गोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए पी.जी. डी.ए.वी.महाविद्यालय (सान्ध्य) के प्राचार्य प्रो. रवीन्द्र गुप्ता ने कहा कि संस्कृत बहुत ही वैज्ञानिक और मानव मूल्य से युक्त भाषा है। नई शिक्षा नीति में मातृभाषा पर विशेष जोर के साथ संस्कृत सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं को केंद्र में रखा गया है। हमें इस देश को इस प्रकार प्रभावशाली और महत्त्वपूर्ण बनाना है कि विदेशी जन यदि भारत आएं तो यहां आने से पहले उन्हें अनिवार्य रूप से हिंदी व संस्कृत सीखनी पड़े।

अतिविशिष्ट अतिथि लाल बहादुर राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के पूर्व कुलपति प्रो. रमेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि दुनिया के सभी विषय मूल रूप से संस्कृत भाषा में समाहित हैं। देववाणी संस्कृत भाषा की अपरिमित शक्ति और असीमित लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यवन शासक दाराशिकोह ने संस्कृत ग्रन्थों का अध्ययन किया और उपनिषदों का अनुवाद फारसी भाषा में करवाया।

संस्कृत विद्वत सम्मान से सम्मानित सुप्रसिद्ध संस्कृत विद्वान और दिल्ली संस्कृत अकादमी के पूर्व सचिव कविरत्न डॉ. श्रीकृष्ण सेमवाल ने कहा कि संस्कृत संस्कार प्रदान करती है तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इसका विशेष रूप से समावेश किया गया है।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति और भारत संस्कृत परिषद के आयाम प्रमुख प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में संस्कृत को अपेक्षित स्थान मिला है परन्तु इसमें भी हमें कुछ सुधारों के साथ विशेष ध्यान देना होगा। हमें हिन्दू संस्कृति और परंपरा के प्रतीक अपने बचे हुए गुरुकुलों और परम्परागत विश्वविद्यालयों को बचाना होगा। संस्कृत एक शास्त्रीय भाषा है लेकिन साथ ही इसे लोक व्यवहार और बोलचाल की भी भाषा बनाना होगा। शास्त्रों का अध्ययन कर संस्कृत की वैज्ञानिकता और उसके रहस्य को समझने के कारण ही हम वैदिक हैं। वैदिक सभी को साथ लेकर चलते हैं,उनका कोई व्यक्तिगत एजेंडा अथवा अकेला निर्णय नहीं होता । सबके प्रयास व सहयोग से सभी कार्य सम्पन्न होते हैं। हम एकता के समर्थक व इस विचार दर्शन को मानने वाले हैं और ऐसे आचरण की शिक्षा संस्कृत ही दे सकती है।

भारत संस्कृत परिषद की ओर से इस अवसर पर डॉ. श्रीकृष्ण सेमवाल, प्रो. लल्लन प्रसाद, प्रो. ओमनाथ बिमली, डॉ. भास्कर पांडे, डॉ. हेमा उनियाल, डॉ. स्वामीनाथ मिश्र, आचार्य राकेश द्विवेदी और श्रीमती कमलेश सिंह को संस्कृत विद्वत सम्मान प्रदान किये गए। समाज सेवा के लिए अशोक अग्रवाल ठाठी और सांस्कृतिक पर्यटन प्रोत्साहन के लिए कवि बीर सिंह राणा को अशोक सिंघल स्मृति सेवा सम्मान प्रदान किये गए।

समारोह का संचालन करते हुए भारत संस्कृत परिषद के संयोजक प्रो. सूर्य प्रकाश सेमवाल ने कहा कि चाहे वेद सम्मेलनों की बात हो जेएनयू, जामिया और इग्नू जैसे विश्वविद्यालयों में संस्कृत पाठ्यक्रम शुरू करवाने का अभियान, संस्कृत प्रशिक्षक शिविर हों अथवा सामयिक विषयों पर गोष्ठी परिषद इसके लिए प्रतिबद्ध है। संरक्षक दिनेश चंद्र और  नवनियुक्त आयाम प्रमुख प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी के नेतृत्व में दिल्ली विश्वविद्यालय में नई शिक्षा नीति में संस्कृत की भूमिका पर हुई चर्चा इसी कड़ी का हिस्सा है। समारोह में डॉ. योगेश शर्मा ने वैदिक मंगलाचरण, आकां क्षा पंवार ने सरस्वती वन्दना के साथ संस्कृत गीत और महेश ने सुंदर संस्कृत गान प्रस्तुत किया। हरियाणा संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ.दिनेश शास्त्री ने धन्यवाद ज्ञापन किया। डॉ. सूर्यमणि भण्डारी, आचार्य मोहन भट्ट, आचार्य मनोज डिमरी और आचार्य रमेश भट्ट ने शांति पाठ प्रस्तुत किया।