Special on novel Samrat Munshi Premchand Jayanti

लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला

प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार, उपन्यास एवं कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने जीवन पर्यन्त सामान्य भारतीय की भांति गरीबी का जीवन जिया था, अपने हृदय सागर से निकले अमृत को जन जन में बांट लिया था। जनता की बात को जनता की भाषा में  कहकर आम जनमानस के हृदय में बैठ गये थे। इसलिए जनता ने एक स्वर में उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर  पुकारा था।

प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई सन 1880 ई. में उत्तर प्रदेश के वाराणसी के (काशी के निकट) लमही नामक ग्राम में हुआ था। पिता का नाम अजायबराय श्रीवास्तव था। प्रेमचन्द का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में वे प्रेमचन्द नाम धारण करके प्रविष्ठ हुए। प्रेमचंद संयुक्त परिवार में रहते थे उनका बचपन दरिद्रता में बीता। पिता का मासिक वेतन महज 20 रुपए था। इतने कम वेतन में वे किस प्रकार अपने बच्चों को अच्छा भोजन और अच्छे वस्त्र दे सकते थे। प्रेमचंद लिखते हैं- ‘मेरे पास पतंग खरीदकर उड़ाने के लिए भी पैसे नहीं रहते थे। यदि किसी की पतंग का धागा कट जाता था तो मैं पतंग के पीछे दौड़ता और उसे पकड़ता था।’ प्रेमचंद वकील बनना चाहते थे लेकिन आर्थिक तंगी के चलते उनका वह सपना पूरा नहीं हो सका। अनेक  आर्थिक समस्याओं में जूझते हुये उन्होने कला स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। और शिक्षा विभाग में सब डिप्टी इन्सपेक्टर हो गए। गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन से प्रभावित होकर नौकरी छोड़ दी। गरीबी ने आ फिर घेरा, तब मर्यादा, माधुरी पत्रिकाओं के सम्पादन के रूप में कार्य किया। इसके बाद काशी से स्वयं ही हंस तथा जागरण पत्र निकाले। इससे पुनः आर्थिक संकट बढ़ गया। कुछ समय बम्बई में सिनेमा क्षेत्र में भी कहानी कार के रूप में रहे। पर वहाँ का जीवन इन्हें पसंद नही आया और पुनः काशी लौट आए।

जीवन संघर्ष और लक्ष्मी के कोष ने सरस्वती के इस सपूत को खोखला कर दिया। स्वास्थ्य दिनों दिन गिरता गया और मानव प्रेम से परिपूर्ण हिन्दी साहित्य का यह चन्द्र 1936 ई. में अपनी जीवन दायिनी रश्मियों को समेट कर अस्त हो गया।

प्रेमचन्द में साहित्यिक प्रतिभा जन्मजात थी। विद्यार्थी जीवन से ही लिखना शुरु कर दिया था। मुंशी प्रेमचंद हिन्दी लेखन के लिए इतने विख्यात रहे हैं, परन्तु उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत उर्दू से की थी। अपना पहला साहित्यिक कार्य उन्होंने गोरखपुर से उर्दू में शुरू किया और 1909 में कानपुर के ‘जमाना प्रेस’ से उर्दू में ही उनका पहला कहानी संग्रह ‘सोज ए वतन’ प्रकाशित हुआ था, जिसकी सभी प्रतियां ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गई थीं। उस समय वे उर्दू में ‘नबावराय’ के नाम से लिखते थे। उनका लिखा कहानी संग्रह जब्त करने के बाद ‘जमाना’ के सम्पादक मुंशी दयानारायण ने उन्हें परामर्श दिया कि भविष्य में अंग्रेज सरकार की नाराजगी से बचने के लिए नवाब राय के बजाय वे नए उपनाम ‘प्रेमचंद’ के नाम से लिखना शुरू करें। इस प्रकार वे नवाब राय से प्रेमचंद बन गए।

शुरु में वे नवाब राय के नाम से ऊर्दू में कहानी और उपन्यास लिखते थे। सोजे वतन नामक रचना से स्वतन्त्रता संग्राम के उस युग में ऐसी हलचल मचाई कि प्रेमचन्द की यह कृति अंग्रेज़  सरकार ने जब्त कर ली। सन 1915 ई. में आचार्य द्विवेदी की प्रेरणा पर उन्होंने प्रेमचन्द नाम धारण करके हिन्दी साहित्य में पदार्पण किया। इस महाविभूति को पाकर हिन्दी धन्य हो गई।

मुंशी प्रेमचंद विधवा विवाह के पक्षधर थे और इसी कारण उन्होंने पहली पत्नी के निधन के बाद समाज के विरुद्ध जाकर वर्ष 1905 में 25 साल की आयु में शिवरानी नामक एक बाल विधवा से विवाह किया, जिसके बाद उनकी आर्थिक और पारिवारिक स्थितियों में बदलाव आया। वैसे तो उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में लेखन कार्य शुरू कर दिया था लेकिन उनके लेखन में परिपक्वता शिवरानी से विवाह के बाद ही आई थी, जिससे उनके लेखन की मांग बढ़ने लगी। उनकी दूसरी पत्नी शिवरानी ने ही बाद में उनकी जीवनी लिखी थी।

भारतीय जनता के स्थानीय जीवन को अपनी कहानियों और उपन्यासों के विषय बनाकर प्रेमचन्द जनता के सच्चे साहित्यकार के रूप में सामने आए। उनकी रचनायें केवल कहानी और उपन्यास ही नही है। वे अपने युग का सच्चा दर्पण भी है। उनकी मार्मिक रचनाओं में जन जन के हृदय की धड़कनें सुनाई देती हैं। जनता ने अपने दुःख दर्द के गायक इस महान कथाकार को उपन्यास सम्राट की पदवी से विभूषित किया।

15 उपन्यास और 300 से ज्यादा कहानियां

बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की रचना की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पेज के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की।

प्रेमचंद की कहानियों में सेवासदन, गबन, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, गोदान, रंगभूमि व निर्मला जैसे कई उपन्यास लोकप्रिय हैं। इसके अलावा कफन, पंच परमेश्वर, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा और बूढ़ी काकी जैसी 300 से अधिक कहानियां भी चर्चित हैं।

प्रेमचन्द भारतीय जनता के सच्चे प्रतिनिधि साहित्य कार हैं। उन्होंने भाषा और शैली को नया रूप प्रदान किया और अपने युग की धड़कनों को शब्दों में उतार कर लोकमंगल कारी साहित्य की रचना की। इसीलिए वे महान कलाकारों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हुए।