vasant-panchmi-2025

Basant Panchami 2025: अनूठी परम्पराओं की वाहक भारतीय संस्कृति में हर पर्व त्योहार की अद्भुत मान्यता है। इन सभी त्योहारों का भी शास्त्रीय पद्धति के अनुसार अपना अलग व अतुलनीय महत्व है। त्योहारों के पीछे कोई न कोई मार्मिक व हृदय स्पर्शी प्रसंग व महात्म्य जरूर जुड़ा है। इसी तरह का सौन्दर्य और प्रेम का प्रतीक बसन्त पंचमी का त्योहार भी है।

इस त्योहार के पीछे शास्त्रों में इस तरह से कहानी का विवरण देखने को मिलता है कि भगवान विष्णु की आज्ञानुसार ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की। जिसमें ब्रह्मा जी ने देखा कि सब अज्ञानता को लेकर रहे हैं, इस पहलू को देखकर ब्रह्मा को ग़ुस्सा आ गया, जिसके फलस्वरूप उन्होंने अपने कमंडल का पानी पृथ्वी पर छिड़क दिया। जिससे पृथ्वी पर कम्पन होने लगी। धीरे धीरे एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई। जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरे हाथ में वर मुद्रा थी, अन्य दोनो हाथों में पुस्तक एवं माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। तव ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी, सरस्वती नाम से संबोधित किया।

इस दिन ग्रामीण आन्चिलिक में मातृ शक्ति अपने घर के चौखट पर जौ की बलरी तथा गाय के गोबर का लेपन करती है। जौ सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। गाय को गोमाता कहा गया है, जिसमें 33 करोड देवी देवताओं का वास माना जाता है। गाय का गोबर पवित्रता का द्योतक माना जाता है। इससे सारी नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती है। पितृदोष व काल सर्प दोष से भी मुक्ति मिल जाती है। सुखद समाचार मिलने शुरू हो जाते हैं। जौ सुख समृद्धि व हरे भरे का प्रतीक है।

इस संदर्भ में भी इस तरह की कहानी है कि मॉ सरस्वती के प्रकटीकरण होने के बाद माँ सरस्वती ने कृष्ण की उपासना की। माँ सरस्वती की पूजा से कृष्ण बड़े खुश होकर उन्हे वरदान दिया कि बसन्त पंचमी के दिन जो तुम्हारी आराधाना करते हुए अपनी चौखट पर जौ और गाय के गोबर का लेपन करेगा उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। इस प्रकार बसन्त पंचमी का त्योहार प्रकृति के साथ लगाव होने के साथ साथ अन्न की महत्ता को भी उजागर करता है। बसन्त ऋतु में आम के वृक्षों में मंजरी आ जाती है। चारों ओर सुगंध मय वातावरण बन जाता है। कल्पना शक्ति साकार रूप ले लेती है।

बसंत पंचमी का पावन पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माता सरस्वती की पूजा होती है। इसी दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है। बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती को समर्पित है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। माता सरस्वती को ज्ञान, संगीत, कला, विज्ञान और शिल्प-कला की देवी माना जाता है। इस दिन को श्री पंचमी और सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है। बसंत पंचमी का दिन सभी शुभ कार्यो के लिये उपयुक्त माना जाता है। इसी कारण से बसंत पंचमी का दिन अबूझ मुहूर्त के नाम से प्रसिद्ध है और नवीन कार्यों की शुरुआत के लिये उत्तम माना जाता है।

बसंत पंचमी कब मनाई जाएगी:

बसंत पंचमी को लेकर इस साल असमंजस की स्थिति है। दृग पंचांग इस साल पंचमी तिथि 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट से शुरू हो रही है जो 3 फरवरी को 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस दिन पंचमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच में व्याप्त रहती है उस दिन को सरस्वती पूजा के लिये उपयुक्त माना जाता है। हिंदू कैलेंडर में सूर्योदय और दोपहर के मध्य के समय को पूर्वाह्न के नाम से जाना जाता है। इस वजह से 2 फरवरी, रविवार को बसंत पंचमी मनाई जाएगी। हालांकि देश के कुछ हिस्सों में उदया तिथि के अनुसार त्योहार मनाया जाता है। जहां उदाय तिथि के अनुसार त्योहार मनाया जाता है, वहां बसंत पंचमी 3 फरवरी, सोमवार को मनाई जाएगी। देश के कुछ हिस्सों में 2 फरवरी को तो कुछ हिस्सों में 3 फरवरी को बसंत पंचमी मनाई जाएगी। बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती को समर्पित है।

बसंत पञ्चमी शुभ मुहूर्त

पञ्चमी तिथि प्रारम्भ – फरवरी 02, 2025 को सुबह 09:14 बजे

पञ्चमी तिथि समाप्त – फरवरी 03, 2025 को सुबह 06:52 बजे

सरस्वती पूजा मुहूर्त – 2 फरवरी सुबह 07:09 बजे से डोपहर 12:35 बजे तक

अवधि – 05 घण्टे 26 मिनट्स

बसंत पञ्चमी मध्याह्न का क्षण – 12:35 पीएम

पूजा-विधि: प्रातः

काल स्नान कर पूजा स्थल पर एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं, उस पर मां सरस्वती का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद कलश, भगवान गणेश और नवग्रह पूजन कर मां सरस्वती की पूजा करें। मिष्ठान का भोग लगाकर आरती करें।

लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला

वरिष्ठ हिन्दी अध्यापक राजकीय इंटर कॉलेज सुमाडी