श्रीनगर गढ़वाल: हिमालयन साहित्य एवं कला परिषद् श्रीनगर गढ़वाल तथा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा उ०प्र० के संयुक्त तत्वावधान में डाक्टर पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल जयंती के अवसर पर द्वि दिवसीय राष्ट्रीय समारोह का आयोजन किया जा रहा है। आगामी 13 एवं14 दिसंबर को हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर के सीनेट हॉल में राष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मिलित होने के लिए छत्तीसगढ़, वाराणसी, देहरादून, आगरा, कोटद्वार, लैंसडाउन, कर्णप्रयाग, नई टिहरी, देवप्रयाग आदि क्षेत्रों के हिंदी साहित्यकार पहुँच रहे हैं।
इस द्वि दिवसीय संगोष्ठी में कुल चार सत्रों में डा.पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल के जीवन वृत, व्यक्तित्व और हिंदी भाषा व साहित्य को दिए गए उनके अमूल्य योगदान पर विस्तृत चर्चा होगी। इस अवसर पर देवेन्द्र नैथानी द्वारा कविता पोस्टर, अरविन्द नेगी की काष्ठ कला कृतियां, जय कृष्ण पैन्यूली की मिट्टी से बनी चर्चित पेंटिंग, हिमालयन साहित्य एवं कला परिषद् की फोटो गैलरी, उपासना भट्ट व योगेन्द्र काण्डपाल के रेखा चित्र आदि आकर्षण का केंद्र होंगे।
राष्ट्रीय संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विद्यार्थी, शोध छात्र छात्राएं तथा समीपस्थ क्षेत्र के इंटर कॉलेज से सीनियर वर्ग के छात्र भी शोध पत्र/आलेख वाचन करेंगे। इस अवसर पर परिषद द्वारा अतिथियों और विषय विशेषज्ञों को सम्मानित भी किया जाएगा। संगोष्ठी में लोक भाषा में वन्दना व लोक नृत्य का भी सूक्ष्म आयोजन किया जाएगा।
डॉ. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल के बारे में
हिन्दी भाषा के प्रथम डी लिट् डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का जन्म 13 दिसम्बर 1902 को लैंसडौन (गढ़वाल) के निकट कौड़िया पट्टी के पाली ग्राम में पंडित गौरी दत्त बड़थ्वाल के घर में हुआ था. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल को साहित्यिक अभिरुचियां विरासत में मिलीं। क्योंकि पिता गौरीदत्त संस्कृत व ज्योतिष के अच्छे विद्वान थे। इन्ही विषयों में बालक पीताम्बर दत्त की आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा का घर पर प्रबन्ध किया गया। अपने गांव में ही शिक्षा समाप्त कर उन्हें राजकीय हाई-स्कूल श्रीनगर गढ़वाल में दाखिल किया गया। वहां कुछ समय व्यतीत करने के बाद उन्हें कालीचरण हाई स्कूल लखनऊ भेज दिया गया। इस विद्यालय से वर्ष 1920 में प्रथम श्रेणी में हाई स्कूल परीक्षा उतीर्ण करने के पश्चात तरुण पीताम्बर डी.ए.वी. कॉलेज कानपूर में प्रविष्ट हुए। सन् 1922 में उच्च-शिक्षा हेतु हिन्दू विश्वविद्यालय काशी में दाखिले के साथ ही उन्हें प्रतिकूल पारिवारिक स्थितियों से दो चार होना पड़ा ।
पिता के देहवासन के बाद उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रमुख दायित्व उनके ताऊ मनीराम और मामा जी हरिकृष्ण थपलियाल पर आ पड़ी। इधर ताऊ की आकस्मिक मृत्यु और उधर स्वयं अस्वस्थ हो जाने के कारण उन्हें अपनी शिक्षा का क्रम दो वर्ष के लिए स्थगित रखना पड़ा। सन् 1926 में उन्होंने बी.एड की परीक्षा और 1928 में एमए की परीक्षा काशी हिन्द विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। छायावाद पर उनके विस्तृत व विद्धता पूर्ण से कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष श्याम सुन्दर दास प्रभावित हुए बिना न रह सके। उन्होंने बड़थ्वाल जी को अपने विभाग में शोध कार्य हेतू नियुक्त कर लिया।
सन् 1929 में बड़थ्वाल जी एल.एल.बी की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए और अगले ही वर्ष वे इसी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रवक्ता नियुक्त हुए। यही वह अवसर था जब उन्हें हिन्दी साहित्य के गम्भीर अध्ययन व समीक्षा का मौका मिला। सन 1933 में उन्हें हिन्दी भाषा में डी. लिट उपाधि से सम्मानित किया गया. बड़थ्वाल जी ने 24 जुलाई, 1944 ई. को अल्पायु में ही अपने पैतृक ग्राम पाली में उन्होंने अन्तिम सांस ली। जीवन पर्यत्न साहित्य को समर्पित डॉ. बड़थ्वाल के निधन पर डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. बनारसी दास चतुर्वेदी, डॉ. राम कुमार वर्मा प्रसिद्ध विद्वानों ने भाव भीनी श्रद्धांजलि अर्पित की थी।