नाटक ‘तोत्तो चान’ सन 1981 में जापानी भाषा में प्रकाशित उपन्यास (medogiwa no totto chan) पर आधारित है। जो अपने मूल में बाल शिक्षा के उन अपरंपरागत विचारों को शामिल किए हुए है जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लेखिका ‘तेत्सुको कुरोयानागी’ को अपने स्कूल ‘तोमोए’ में शिक्षक ‘सोसाकु कोबायाशी’ से हासिल हुए। तोत्तो-चान की वजह से जापान ने स्कूल शिक्षा का ऐसा मॉडल तैयार किया जो पूरी दुनिया में जॉयफुल स्कूल के रूप में बहुत लोकप्रिय हुआ। कहानी छोटी बच्ची ‘तोत्तो’ की है, जो बहुत जिज्ञासाओं और कौतुहल से भरी ख़ुशिमज़ाज लड़की है। उसकी बाल सुलभ आदतों के कारण उसे स्कूल से निकाल दिया जाता है। तोत्तो की माँ को एहसास होता है कि तोत्तो के लिए एक ऐसे स्कूल की ज़रूरत है जहाँ बच्चों की अभिव्यक्ति और विचारों को अधिक स्वतंत्रता मिले। तब वो उसे नए स्कूल ‘तोमोए’ में ले जाती है जो रेल की ख़राब पड़ी बोगियों में लगता है। जहाँ तोत्तो पहली बार अपने हेडमास्टर सोसाकू कोबायाशी से मिलती है। कोबायाशी के पढ़ाने का ढंग बड़ा निराला है। वे बच्चों को प्रकृति के जरिये सिखाते हैं, खेल-खेल में ये स्कूल तोत्तो को अपने सपनों का स्कूल लगता है। स्कूली दिनों के मज़ेदार अनुभवों के साथ बढ़ती कहानी में तोत्तो के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। ‘तोमोए’ विश्व भर में बाल शिक्षा का आदर्श उदाहरण बन जाता है। उसी समय द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव सारे जापान के साथ-साथ ‘तोमोए’ पर भी गहराता है। सन 1945 में बमबारी में ‘तोमोए’ भी जलकर ख़ाक हो जाता है। तेत्सुको कुरोयानागी का अपने शिक्षक कोबायाशी के लिए कथन है- “जिस समय तोमोए जल रहा था तब भी वे एक बेहतर स्कूल की कल्पना कर रहे थे”।
निर्देशकीय
नाटक ‘तोत्तो चान’ सन 1981 में जापानी तेत्सुको कुरोयानागी की आत्म-कथा पर आधारित जापानी उपन्यास ‘तोत्तो-चान’ मैंने सन 2006 में ही पढ़ लिया था और तब ही से उस कथा पर काम करना चाहता था। ‘तोत्तो-चान’ की कथा मेरे भीतर ग्यारह साल तक बनी रही और 2017 में मैं इस पर काम करना शुरू कर पाया। मुझे लगता है कि मैं अपने बचपन से ही शिक्षा पद्धित को लेकर चिंतित हूँ क्योंकि जिस भी तरह मैंने स्कूल में पढ़ाई की उससे मैं आज तक संतुष्ट नहीं हो पाया हूँ। फिर ‘तोत्तो-चान’ पढ़ने के बाद मैं शिक्षा पद्धित के बारे में अधिक गंभीरता से सोचने लगा जिसका साथर्क प्रभाव इस नाटक के बनने में ज़ाहिर तौर पर आया। ‘तोत्तो-चान’ नाटक के रूप में अब भी लगातार बन रहा है और इसके साथ मैं देश भर के भीतरी कोनों में यात्राएँ कर रहा हूँ तथा शिक्षकों, अिभभावकों और बच्चों से मिल रहा हूँ। इस नाटक के जरिये अपने आप से तथा दशर्कों से ये सवाल करने की कोशिश कर रहा हूँ कि शिक्षा के और बेहतर तरीक़े क्या हो सकते हैं। बहरहाल, ‘तोत्तो-चान’ ने जिस तरह यात्रा की है उस पर बहुत सी बातें कही जा सकती है। क्योंकि ‘तोत्तो-चान’ मेरे लिए सिर्फ नाटक नहीं है बल्कि मेरे भीतर उपजते किसी गंभीर विचार से मिलती जुलती बात है, तो ‘तोत्तो-चान’ की सच्ची कहानी मेरे विचार को बहुत अधिक बल देती है। हेमंत देवलेकर की कवितायें, गीत और संगीत तथा श्वेता केतकर की कला परिकल्पना इस नाटक में स्थापित सच को मेरे लिए, कलाकारों के लिए और दशर्कों के लिए और सुंदर बना देती है। सौरभ अनंत
नाट्य मंचन ने जीता सबका दिल
शनिवार 2 मार्च को अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन, राजकीय शिक्षक राज्य प्राथमिक, राज्य जूनियर शिक्षक संघ खिर्सु, कीर्तिनगर और कोट, संस्था उमंग और जश्ने-ए-विरासत श्रीनगर गढ़वाल एवं स्कूल ऑफ एडुकेशन गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के सहयोग से राजकीय पॉलिटेक्निक श्रीनगर के ऑडिटोरियम में आयोजित तोत्तो चान नाट्य मंचन ने उपस्थित दर्शकों का दिल जीत लिया। इस नाट्य मंचन आयोजन में प्रोफेसर डीआर पुरोहित, उपेन्द्र बलोदी, पी के जोशी, एम एम जोशी, जगमोहन कठैत, प्रदीप अणथ्वाल, महेश गिरि, मुकेश काला, किशोर सजवाण, परवेज अहमद, गणेश बलुनी, रेखा नेगी, आरती पुण्डीर, संगीता फरासी, सत्यजीत खण्डूरी, विष्णुदत् दत्त, भवान सिंह, उमा घिल्डियाल, शिव सिंह नेगी, मनोज काला, दुर्गेश बर्तवाल, प्रीतम बर्तवाल, मनोज नौडियाल, पदमेन्द्र लिगंवाल, आदि उपस्थित रहे।
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