acid attack survivor kavita bisht : कल्याणी सामाजिक संस्था द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में आज (12 मार्च 2023 को) नई दिल्ली गढ़वाल भवन में कल्याणी सम्मान समारोह 2023 का आयोजन किया। यह कार्यक्रम उत्तराखंड मूल की उन महिलाओं के सम्मान में रखा गया था जिन्होंने विकट परिस्थितियों से लड़़कर समाज में एक इतिहास रचा, जो लगातार अपने कार्यो से प्रेरणा बनी। देश व समाज के लिए, उसी मातृशक्ति में नई ऊर्जा प्रवाहित करने के लिए लगातार चौथी बार महिलाओं द्वारा इस सम्मान समारोह का आयोजन किया गया।
कल्याणी सम्मान समारोह में सुप्रसिद्ध उत्तराखंडी लोक गायिका मीना राणा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थी। इस मौके पर उत्तराखंड की 11 महिलाओं को कल्याणी सम्मान समारोह 2023 से सम्मानित किया गया।
कल्याणी सम्मान से सम्मानित होने वाली हस्तियों में उत्तराखंड की एक ऐसी बेटी भी थी जिसके जीवन की मार्मिक कहानी सुनकर समारोह में उपस्थित सभी लोगों के आखों से आंसू टपक रहे थे। साथ ही उसके जज्बे एवं हौसले को देखकर सभी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर थे। जी हां हम बात कर रहे हैं एसिड अटैक सर्वाइवर कविता बिष्ट की, जो अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा और समाज के लिए मिसाल बनी हैं। कविता बिष्ट मूलरूप से रामनगर, नैनीताल की रहने वाली हैं। जो कि वर्ष 2008 में खोड़ा में एसिड अटैक का शिकार हो गयी थी। इस एसिड अटैक में कविता अपनी आंखों की रोशनी खो चुकी हैं, इसके बावजूद उन्होंने अपनी हिम्मत से शारीरिक कमजोरियों को कभी हावी नहीं होने दिया। इसी का नतीजा है कि खुद दृष्टि बाधित होकर भी कविता दूसरी महिलाओं की जीवन में रोशनी भरने का काम कर रही है। कविता बिष्ट ने कई महिलाओं को उम्मीद की किरण दिखाई है। जानिए कविता की कहानी कविता की जुबानी।
एसिड अटैक सर्वाइवर कविता बिष्ट की कहानी:
कल्याणी सम्मान समारोह के दौरान जब कविता को मंच पर अपने बारे में दो शब्द बोलने के लिए कहा गया तो कविता ने अपनी जिन्दगी की सबसे दर्दनाक घटना का जिक्र करते हुए, उससे उभर कर स्वावलंबी बनने तक की पूरी कहानी बयां कर दी। कविता ने अपने दर्द को खुलकर बयां करते हुए बताया कि वह मुख्य रूप से नैनीताल की रहने वाली हैं। उसके माता पिता गगास नदी के किनारे रेत के बोरे भरकर (मजदूरी) अपने परिवार का भरण पोषण करते थे। परिवार आर्थिक तंगी को देखते हुए कविता ने 10वीं पास कर नौकरी करने का फैसला लिया और साल 2008 में नोएडा की एक कम्पन्नी में नौकरी करने लगी। वह अपनी एक सहेली (रूम पार्टनर) के साथ खोड़ा में एक किराये के मकान में रहती थी।
कविता ने बताया कि इस दौरान एक लड़का उससे दोस्ती करने के लिए उसका पीछा करता था। उसने कबिता की सहेली से कहा कि मै उससे शादी करना चाहता हूँ। परन्तु कविता ने उसे मना कर दिया कि मै यहाँ शादी करने या दोस्ती करने के लिए नहीं आई हूँ बल्कि अपने परिवार की आर्थिक तंगी को दूर करने आई हूँ। इस बात से शायद वह लड़का नाराज हो गया और उसने कविता से बदला लेने की ठान ली।
कविता ने बताया कि 2 फरवरी 2008 को रोजाना की तरह वह सुबह 5 बजे ऑफिस जा रही थी। तभी अचानक से हेलमेट पहनकर आये दो बाइक सवार युवकों ने उसके चहरे पर तेज़ाब उड़ेल दिया। कविता ने बताया कि अचानक हुए इस अप्रत्याशित हमले ने उन्हे संभलने का मौका नहीं दिया। वह सड़क पर मदद की गुहार लगाती रहीं और लोग गुजरते रहे। वह दर्द के मारे चिल्लाती रही परन्तु एक घंटे तक न तो पुलिस ने और न ही आसपास खड़े लोगो ने उसकी मदद की। उसके बाद जब उसके मकान मालिक को पता चला तो वे उसको अस्पताल ले गए, परन्तु आसपास के सभी अस्पतालों ने उसको भर्ती करने से मना कर दिया।
जब दोपहर 3 बजे उनके ऑफिस के लोगों को पता चला तब उन्होंने अम्बुलेंस बुलाकर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया। परन्तु तब तक काफी देर हो चुकी थी। इस एसिड अटैक में कविता को न सिर्फ अपनी आंखों की रोशनी गवानी पड़ी, बल्कि उनकी नाक और कान भी क्षतिग्रस्त हो गए। उन्हें एक महीना आईसीयू में रहना पड़ा और यह बात उन्हें होश आने पर पता चली। पहले से ही उनका परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। परिवार वालों के पास इलाज के पैसे भी नहीं थे। सरकार की ओर से उस समय कोई समुचित राशि का प्रावधान नहीं था। छोटी- छोटी समाज सेवी संस्थाओं की मदद से उनकी कई बार सर्जरी हुई। उनका खूबसूरत चेहरा तो बिगड़ ही गया पर जो घाव उनके मन पर लगे हैं, उनकी भरपाई आज भी मुश्किल है। कविता ने बताया कि उनकी किस्मत की मार यहीं नहीं रुकी, बल्कि इसी बीच उन्होंने पहले 21 साल की बड़ी बहन को खोया और फिर कुछ समय बाद उनकी छोटी बहन भी दुनिया को छोड़ चली गई। और 2015 में उनके पिता जी की भी हार्ट अटैक से मौत हो गयी। अब घर को चलाने की पूरी जिम्मेदारी कविता के ऊपर आ चुकी थी।
कविता कहती हैं, “इस दुर्घटना के बाद मैं करीब 2 साल तक डिप्रेशन में रहीं। मुझे उस समय अपने पिता और भाई से भी डर लगने लगा था।” मोटरसाइकिल की आवाज सुनते ही सहम जाती थी। लेकिन कविता ने हिम्मत नहीं हारी। अदम्य साहसी और कभी हार न मानने वाली कविता बिष्ट नें जीवन की चुनौतियों का डटकर सामना किया है और अपने सकारात्मक दृष्टिकोण और आत्मविश्वास के बलबूते आज हजारों लड़कियों का संबल बनी हुई हैं। आंखें जाने के बाद भी उन्होंने एक नए जीवन की शुरुआत की और कई तरह के प्रशिक्षण लिए। यहीं कारण है कि वे न सिर्फ खुद आत्मनिर्भर बनी, बल्कि कई और महिलाओं की प्रेरणा भी बनी। कविता बिष्ट के इसी हौसले को देखते हुए उनको महिला सशक्तिकरण का ब्रांड एंबेसडर भी बनाया गया था।
कविता ने बताया कि इस दुर्घटना के बाद अपनी दृष्टि खोने की वजह से वे पूरी तरह से लाचार हो गईं थीं। तभी उन्हें दृष्टिहीन ट्रेनिंग स्कूल अल्मोड़ा में दाखिला लेने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होनें इसे एक अवसर के रूप में देखा और स्कूल गई। यहां उन्होनें सिलाई- कढ़ाई, खुद से सभी काम करना, कंप्यूटर चलाना, कैंडल और एनवेलप बनाना सीखा।
कविता बताती हैं कि उनकी मां ने हमेशा उनका साथ दिया और सुईं में धागा डालने जैसी छोटी चीज़ें उन्हें सिखाईं। कविता कभी हारने लगतीं तो उनकी मां उन्हें प्रेरित करती।”
धीरे-धीरे कविता अपने परिवार का आर्थिक संबल बनीं और अपने जैसी कई महिलाओं की मदद करना शुरू किया। सरकार ने इनके सामाजिक कार्यों को देखते हुये उन्हें उत्तराखंड में महिलाओं के लिए ब्रांड एंबेसडर बनाया। वे पूरे राज्य में महिला सशक्तिकरण की आवाज़ बनी और 4 सितंबर 2021 को राजीव गांधी नेशनल एक्सीलेन्स अवार्ड फॉर कोरोना वॉरियर से उन्हें सम्मानित किया गया है। इतना ही नहीं आज कविता 34 से भी ज़्यादा सम्मान और पुरस्कार पा चुकी हैं।
रामनगर में इंदु समिति की मदद से ‘ Kavita’s Women Support Home’ चलाती हैं। जहां वे घर के आस-पास रहने वाली महिलाओं और लड़कियों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान कर रही हैं। साथ ही एसिड अटैक, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की सहायता करती हैं।
कविता कहती हैं, ”समाज में मुझे आज भी लोग हतोत्साहित करने से पीछे नहीं रहते, पर मुझे आगे बढ़ना है। इसलिए मैं उनकी बातों पर ध्यान नहीं देती। मैं लोगों से कहना चाहती हूं कि अगर आप मदद नहीं कर सकते हैं, तो अपशब्द या उल्टा-सीधा न बोलें, मैं अपने पैरो पर खड़ी हूं, किसी पर आश्रित नहीं हूं, कृपया अपनी सोच बदलें।” कविता कहती हैं कि भले ही मेरी जिंदगी से सभी रंग चले गए हों लेकिन आज मैं कई लोगों की जिंदगी में रंग भर रही हूं।
कविता के अलावा आज सम्मानित हुई अन्य 10 महिलाओं ने भी अलग-अलग क्षेत्रों समाज के लिए उत्कृष्ट कार्य किये हैं। जिनमे
- सुश्री कविता बिष्ट, रामनगर, जिला नैनीताल
- सुश्री भावना वर्मा, सदर बाजार, लैंसडाउन, जिला पौड़ी गढ़वाल
- सुश्री दीपा नगरकोटी (गायिका), गांव फरसाली, जिला बागेश्वर
- सुश्री सरिता नेगी, ग्राम- गांधीग्राम, घुड़दौड़ी, जिला-पौड़ी गढ़वाल
- सुश्री गीता गैरोला, न्यू लदाडी़ विकास भवन, ब्लॉक भटवाड़ी, जिला उत्तरकाशी
- सुश्री सुषमा बहुगुणा, ग्राम साबली, जिला टिहरी गढ़वाल
- सुश्री मधु खुगशाल, ग्राम बैगवाडी, जिला पौड़ी गढ़वाल
- सुश्री प्रियंका जोशी, ग्राम मल्ली बमोरी, जिला नैनीताल
- सुश्री पूनम कैंतुरा, ग्राम गिंवाली, पोखड़ा, जिला पौड़ी गड़वाल
- सुश्री महेश्वरी देवी, ग्राम थनूल, जिला पौड़ी गढ़वाल
- सुश्री ऋतु सिंह (कवियित्री), पौड़ी, जिला पौड़ी गढ़वाल
कार्यक्रम में कल्याणी संस्था ही संस्थापिका बबिता नेगी के अलावा मुख्य अतिथि लोक गायिका मीना राणा, लक्ष्मी रावत, पूनम सती, गीता उनियाल, रेशमा शाह, मंच संचालिका रिद्धी राही, हरपाल रावत, विनोद बछेती, डॉ. सतीश कालेश्वरी, अजय सिंह बिष्ट, नरेंद्र बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप वेदवाल, दीप सिलोड़ी, द्वारका चमोली, अनिल पंत, हरीश असवाल, प्रताप थलवाल, आजाद नेगी, उदय ममगाईं राठी,अनिल सती, मिथुन दा कुलदीप, दलीप नेगी, सुरेन्द्र शर्मा, कैलाश धष्माना कुसुम बिष्ट, लक्ष्मी पटेल, रेनू जखमोला उनियाल, नीलू सती, पूर्णिमा पोखरियाल, मीना कंडवाल, प्रभा बिष्ट, अंकिता चौहान, मनोरमा भट्ट, संतोष शर्मा बडोनी, रिया शर्मा, कुसुम चौहान, बबली ममगाईं सहित सैकड़ों लोग मौजूद थे।