New Criminal Laws: देश में आज से तीनों नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने आईपीसी (1860), सीआरपीसी (1973) और एविडेंस एक्ट (1872) की जगह ली है। नए आपराधिक कानून लागू होने के साथ ही IPC की धाराएं भी बदल गईं हैं। आज से लागू हो रहे नए कानून को लेकर थानेदार के साथ ही सभी पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित करने के साथ ही जिम्मेदारी भी बतायी गई है। रविवार को सभी थानों के कार्यालय में नए कानून लागू होने के बाद हुए बदलाव पर बना कलेंडर लगा दिया गया। ताकि मुकदमा दर्ज करने में मुंशी व दीवान को परेशानी न हो।

ये हैं तीन नए कानून

  1. भारतीय न्याय संहिता (BNS)

भारतीय न्याय संहिता (BNS) में कुल 358 धाराएं हैं। पहले भारतीय दंड संहिता (IPC) में 511 धाराएं थीं। BNS में 20 नए अपराध शामिल किए गए हैं। 33 अपराधों में सजा की अवधि बढ़ाई गई है। 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान है। 83 अपराधों में जुर्माने की राशि बढ़ा दी गई है। छह अपराधों में सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया गया है। अधिनियम में 19 धाराएं निरस्त या हटा दी गई हैं। 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं। 22 धाराओं को निरस्त कर दिया गया है।

  1. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में कुल 531 धाराएं हैं। पहले आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) में 484 धाराएं थीं। BNSS में कुल 177 प्रावधान बदले गए हैं। इसमें 9 नई धाराओं के साथ-साथ 39 नई उपधाराएं भी जोड़ी गई हैं। 44 नए प्रावधान और स्पष्टीकरण जोड़े गए हैं। 35 सेक्शन में समय-सीमा जोड़ी गई है और 35 सेक्शन पर ऑडियो-वीडियो प्रावधान जोड़ा गया है। कुल 14 धाराएं निरस्त और हटा दी गई हैं।

3। भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)

एविडेंस एक्ट की जगह बने नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कुल 170 धाराएं हैं। कुल 24 प्रावधान बदले गए हैं। दो नई धाराएं और छह उप-धाराएं जोड़ी गई हैं। छह प्रावधान निरस्त या हटा दिए गए हैं।

बदल गई यह धाराएं

अपराध           IPC (पहले)              BNS (अब)

हत्या                 302                             101

हत्या का प्रयास              307                 109

दुष्कर्म                           376                 63

धोखाधड़ी या ठगी          420                 316

गैर इरादतन हत्या          304                 105

लापरवाही से मौत          304A        106

रेप और गैंगरेप               375, 376        63, 64, 70

देश के खिलाफ युद्ध         121, 121A      147, 148

मानहानि                       499, 500        356

छेड़छाड़                         354                 74

दहेज हत्या                     304B             80

दहेज प्रताड़ना                498A        85

चोरी                             379                 303

लूट                               392                 309

डकैती                            395                 310

देशद्रोह                         124                 152

मानहानि                       499, 500        356

गैर कानूनी सभा             144                 187

साइबर अपराधी को मिलेगी मृत्यु की सजा

भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023 की धारा 111 में संगठित अपराध को परिभाषित किया गया है। इसमें 17 मामले शामिल किए गए हैं, जिसमें साइबर अपराध, अपहरण, डकैती, वाहन चोरी, जबरिया वसूली, भूमि हथियाना, सुपारी देकर हत्या करना, नकली नोट छापना व चलाने के मामले को शामिल किया गया है। साइबर अपराध में शामिल अपराधी व उसके सहयोगियों को मृत्युदंड की सजा व पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।

आईपीसी में मॉब लिंचिंग का जिक्र नहीं था। अब इस अपराध के लिए उम्रकैद से लेकर मौत तक की सजा हो सकती है। इसे बीएनएस की धारा 103 (2) में परिभाषित किया गया है।

राजद्रोह की धारा नहीं

BNS में राजद्रोह से जुड़ी अलग धारा नहीं है। यानी राजद्रोह को समाप्त कर दिया गया है। नए कानून में ‘राजद्रोह’ को एक नया शब्द ‘देशद्रोह’ मिला है। IPC की धारा 124A में राजद्रोह का कानून है। नए कानून में देश की संप्रभुता को चुनौती देने और अखंडता पर हमला करने या खतरा पहुंचाने वाले कृत्यों को देशद्रोह में शामिल किया गया है। देशद्रोह से जुड़े मामलों को धारा 147-158 तक परिभाषित किया गया है। धारा 147 में कहा गया है कि देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के दोषी पाए जाने पर फांसी या उम्रकैद की सजा होगी। धारा 148 में इस तरह की साजिश करने वालों को उम्रकैद और हथियार इकट्ठा करने या युद्ध की तैयारी करने वालों के खिलाफ धारा 149 लगाने का प्रावधान है। धारा 152 में कहा गया है कि अगर कोई जानबूझकर लिखकर या बोलकर या संकेतों से या इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से प्रदर्शन करके ऐसी हरकत करता है, जिससे विद्रोह फूट सकता हो, देश की एकता को खतरा हो या अलगाव और भेदभाव को बढ़ावा देता हो तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर अपराधी को उम्रकैद या फिर 7 साल की सजा का प्रावधान है।

अडल्ट्री अब अपराध नहीं

भारतीय न्याय संहिता में अडल्ट्री को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है। अडल्ट्री को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 497 को जिसमें अडल्ट्री के नियमों को बताया गया है उसे सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में मनमाना होने और संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करने के कारण रद्द कर दिया था।

इटली में रहने वाले प्रवासी भारतीय जोसेफ शाइन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। जिस पर फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि ऐसा कोई भी कानून जो व्यक्ति कि गरिमा और महिलाओं के साथ समान व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, वह संविधान के खिलाफ है।

अडल्ट्री पर कानून 1860 में बना था। आईपीसी की धारा 497 में इसे परिभाषित करते हुए कहा गया था कि अगर कोई मर्द किसी दूसरी शादीशुदा औरत के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो महिला के पति की शिकायत पर इस मामले में पुरुष को अडल्ट्री कानून के तहत आरोप लगाकर मुकदमा चलाया जा सकता था। ऐसा करने पर पुरुष को पांच साल की कैद और जुर्माना या फिर दोनों ही सजा का प्रवाधान भी था।