देहरादून। पहाड़ के माल्टे को बेहतर कीमत और बाजार दिलाने के लिए धाद संस्था की ओर से चलाए जा रहे माल्टे के साथ उठाये अपना हाथ अभियान माल्टा फूड फेस्टिवल के साथ समापन हो गया। वक्ताओं ने जहां पहाड़ी फलों की महत्ता पर जोर देते हुए इससे लोगों को रोजागर से अधिकाधिक जोड़ने की बात कही। इस दौरान एक महीने तक लोगों से मिले सुझाव पर भी चर्चा हुई। बच्चों ने पहाड़ी व्यंजन बनाकर अवपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया तो नाटक के माध्यम से उत्तराखड की संस्कृतिक को और मजबूत करने का संदेश दिया। इस दौरान ढोल दमाऊं की धुन पर लोगों ने नृत्य भी किए। साथ पांरपरिक पारंपरिक व्यंजनों की मकरैणी थाली का स्वाद भी लिया।
रविवार को हरिद्वार बाइपास स्थित संस्कृति विभाग के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में काफी संख्या में लोगों ने शिरकत की। उद्यान विशेषज्ञ पंडित कुंदन सिंह पंवार ने कहा कि 2008 के बाद बर्फबारी में कमी आने से उन्होंने बर्फ पर निर्भर फसलों को छोड़कर स्टोन फ्रूट्स की खेती शुरू की। बीते 12 वर्षों में कुछ स्टोन फ्रूट्स को हटाया और समय बचाने के लिए डबल-ग्राफ्ट तकनीक अपनाई। जिसके नतीजे एक साल में ही देखने को मिले। उन्होंने ‘लैब टू लर्न’ कार्यक्रम के महत्व को भी बताया। कहा कि पर्यटन के साथ रोजगार बढ़ाने और माल्टा की गुणवत्ता को बताने के लिए चारधाम मार्गों पर बुरांश के रस की तरह माल्टा जूस परोसना चाहिए। फंची सहकारिता समिति लिमिटेड के सचिव किशन सिंह ने माल्टा के प्रचार के लिए मोबाइल वैन जैसी मार्केटिंग रणनीतियों का सुझाव दिया। उन्होंने माल्टा की बढ़ती मांग को पूरा करने में हरेला टीम के प्रयासों की सराहना की। इसके अलावा विक्रम रावत ने हिमाचल प्रदेश के करसोग में किसानों के विकास के कार्यों को बताते हुए कहा उत्तराांखड में भी नवाचार और उद्यमिता पर जोर दिया। कहा कि माल्टा की नई किस्मों के परिचय और बेहतर पैकेजिंग व सीडलिंग रूटस्टॉक्स के माध्यम से व्यावसायिक विकास होना चाहिए। देवेंद्र नेगी ने सतपुली में 54 क्विंटल माल्टा उत्पादन की संभावना पर चर्चा करते हुए उत्पादन बढ़ाने में सहयोग की बात कही।
हिमालयी माल्टा का हो प्रचार, बाजार मूल्य बढ़ाने के लिए मिले जीआइ टैग
उद्यान विशेषज्ञ डा. राजेंद्र कुकसाल ने कहा कि चार धाम में मार्गों पर फलों की कमी होने पर चिंता जताई। कहा कि उत्तराखंड में पर्यटन आजीविका का एक बड़ा आधार है। ऐसे में हिमालयी माल्टा के प्रचार के लिए विज्ञापन और सामूहिक प्रयास जरूरी है। हम सभ सोचेंगे कि यह कार्य सिर्फ उद्यान विभाग करेगा तो यह आगे नहीं बढ़ सकता। इसलिए सामूहिक रूप से सभी को आगे आना होगा। माल्टा का बाजार मूल्य बढ़ सके इसके लिए जैविक (आर्गेनिक) साबित करने और जीआई टैग दिलाने पर जोर दिया जाना चाहिए।
बागवानी केंद्रित समेकित खेती पद्धति है जरूरी
हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के बागवानी विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. तेजपाल बिष्ट ने कहा कि श्रीनगर को शैक्षिक केंद्र के रूप में देखते हुए इसके क्षेत्रीय विकास में योगदान पर चर्चा की। कहा कि हाल ही में हॉर्टिकल्चर इन द हिमालयाज़ नाम से तीन दिवसीय सम्मेलन में किसानों को जोड़ने के लिए प्रदर्शनी और विशेष सत्र हुए। कहा कि उत्तराखंड पहले से ही बागवानी के लिए पहचान बना चुका है। ऐसे में बागवानी केंद्रित समेकित खेती पद्धति जरूरी है। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि स्वदेशी और नई किस्मों के संरक्षण के लिए श्रीनगर में एक साइट्रस फील्ड जीन बैंक स्थापित किया जाए। मैदानी से पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाने वाली साइट्रस फसलों की बहुमुखी प्रकृति के बारे में बताते हुए इनके मानव स्वास्थ्य में योगदान पर चर्चा की।
माल्टा की खेती को मुख्यधारा में लाने को करने होंगे प्रयास
हेमवती नंदन केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रोफेसर एमसी सती ने उत्तराखंड में माल्टा की खेती को मुख्यधारा में लाने की बात करते हुए पलायन से सामने आ रही चुनौती पर चर्चा की। माल्टा के प्रचार में धाद के प्रयासों की सराहना करते हुए उन्होंने इसके आर्थिक लाभ को 18 करोड़ रुपये से अधिक आंका। कहा कि माल्टा की एकीकृत मॉडल बनाने और इसकी पूरी वैल्यू चेन पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरी है। माल्टा के लिए एक ठोस नीति बनाई जानी जाए तभी हम आगे और बेहतर कर सकेंगे।
स्वदेशी माल्टा की किस्मों को पुनर्जीवित और संरक्षित करने पर जोर
पौड़ी के मरोड़ा के प्रगतिशील किसान पवन बिष्ट ने हिमाचल प्रदेश को एक परिपक्व व्यक्ति और उत्तराखंड को एक किशोर के रूप में तुलना की, जिसमें उत्तराखंड की आत्मविश्वास और रणनीतिक दिशा की कमी को उजागर किया। स्वदेशी माल्टा की किस्मों को पुनर्जीवित और संरक्षित करने पर जोर दिया ताकि यह लंबे समय तक टिक सके। सामाजिक उद्यमी नीलेश नेगी ने खासी मैंडरिन के सफल जीआई टैग का उदाहरण दिया, जिसके बाद अब 20 मीट्रिक टन का निर्यात दुबई में किया जा रहा है। कहा कि जब तक हम अपने अतीत का संरक्षण नहीं करते हम अपना भविष्य सुरक्षित नहीं कर सकते।
शासन को भेजा जाता है मांगपत्र
वक्ताओं ने कहा कि धाद के अध्याय हरेला गांव की तरफ से पहाड़ के माल्टे के पक्ष में हर साल माल्टा का महीना नाम से पहल की जाती है। जिसमें माल्टे का उत्पादन व बाजार पर चर्चा, शासन को मांगपत्र भेजने के साथ ही उत्पादकों को बाजार दिलाने का प्रयास रहता है। इसके साथ ही फंची सहकारिता के तहत जितना माल्टा मिल रहा है उससे ज्यादा मांग है। लेकिन एक सामाजिक संस्था के रूप में हमारी संसाधनों और पहुंची की एक सीमा है।