old elderly person beat Corona

ग्रेटर नोएडा : कोरोना वायरस का खौफ इस तरह से लोगों के दिमाग में घर कर चुका है कि कुछ लोग मामूली बुखार के लक्षण होने पर ही इतने भयभीत हो जा रहे हैं कि डर और नेगटिविटी के चलते उनका ऑक्सीजन लेवल लगातार गिरता चला जा रहा है और उनकी सांसों की डोर टूट जाती है। इस सबके बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने कोरोना वायरस से बुरी तरह संक्रमित होने के बावजूद भी अपनी पॉजिटिव सोच के दम पर कोरोना को मात दे दी हैं.

ऐसे ही एक मामला नोएडा से देखने में आया है जहाँ 70 साल के एक बुजुर्ग ने अपनी पॉजिटिव सोच के दम पर 17 दिनों तक आईसीयू और 10 दिन तक वेंटिलेटर पर रहकर कोरोना को हरा दिया। वह न केवल कोरोना से जूझते रहे बल्कि जिंदगी बचाने के लिए मौत से लड़ रहे थे। खुद डॉक्टर भी उनकी जिंदादिली और बेहतर रिस्पान्स के कायल हो गए। बुजुर्ग की सेवा में लगे पैरा मेडिकल स्टाफ भी इसे किसी आश्चर्य से कम नहीं मानते हैं। मूलरूप से बिहार के गया के रहने वाले रिटायर्ड प्रिंसिपल रविंद्र नाथ सिंह गत माह 8 अप्रैल को बेटा और बेटी से मिलने के लिए नोएडा आए थे। यहां आने पर उन्हें ठंड लगी और बुखार महसूस होने पर 13 अप्रैल को परिवार के सभी सदस्य बुखार से पीड़ित हो गए। इसके बाद सभी ने आरटीपीआर कराया। इसमें रविंद्र नाथ सिंह उनके बेटे विनीत कुमार पॉजिटिव आए जबकि पत्नी और बेटी निगेटिव। हांलाकि इन दोनों में भी कोरोना के लक्षण थे। आक्सीजन लेवल घटने पर 17 अप्रैल को उन्हें नोएडा के निजी अस्पताल में ले गए। वहां पर सीटी स्कैन किया तो पता चला कि उनका CT स्कोर 18 था। ऐसे में उन्हें किसी और अस्पताल में ले जाने को कहा गया। 19 अप्रैल को आक्सीजन लेवल 80 होने पर उन्हें ग्रेटर नोएडा के शारदा अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां पर उन्हें एचडीयू में रखा गया। हालात गंभीर होने पर आईसीयू में शिफट किया गया। 28 अप्रैल उनकी हालत काफी बिगड़ गई। हालाँकि एक मई को उनका आरटीपीआर निगेटिव आया, परन्तु इसके बाद भी तकलीफ बनी हुई थी। इस दौरान उन्हें 10 दिन तक वेंटिलेटर पर रखा गया था। वह 18 मई की सुबह 10 तक आईसीयू में रहे। इसके बाद उन्हें सामान्य वार्ड में रख दिया गया। कोरोना को हराने वाले रविंद्र नाथ सिंह का कहना है कि कोरोना तो ठीक होना ही था। मुझे इस बात की चिंता नहीं थी। मैं हमेशा पॉजिटिव रहा, कभी निराश नहीं हुआ। हां सांस लेने में तकलीफ थी। उन्होंने बताया कि यहां के डॉक्टरों ने बेटे की तरह सेवा की। वार्ड में तैनात अन्य कर्मचारी भी हमेशा सेवा में लगे रहे। उन्हीं का परिणाम है कि आज मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं। उन्होंने युवाओं को यह संदेश दिया कि कोरोना से घबराना नहीं है, बल्कि डटकर मुकाबला करना है। जब मैं बुजुर्ग होकर स्वस्थ हो सकता हूं तो जवान बच्चे तो और जल्दी स्वस्थ होंगे। उनके बेटे विनीत कुमार जो वल्र्ड बैंक में कंसलटेंट हैं ने बताया कि डीएम की मदद से उन्हें अस्पताल में बेड मिला। जब एक रात अस्पताल से फोन आया कि आप तुरंत आ जाओ तो मन बहुत घबराने लगा। लगा पिता जी नहीं बचेंगे, लेकिन डॉक्टरों की मेहनत और भगवान की कपा से वह अब पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं। अस्पताल के सीनियर डॉक्टर डॉ. एके गडपाइले ने बताया कि कोरोना होने के बाद उनको निमोनिया हो गया, फिर सांस कमजोर पडने लगी, इसके बाद उनकी सांस की नली काटकर आर्टिफिशल नली (टैकियोटामी) लगाकर उन्हें 10 दिन तक वेंटिलेटर पर रखा। वहां से सुधार होने के बाद उनको जनरल वार्ड में शिफट किया। इसके बाद आर्टिफिशल नली हटाकर नेचुरल नली से ही सांस ले रहे हैं, अगर आदमी हिम्मत न छोड़े तो इस बीमारी को आसानी से हराया जा सकता है।मंगलवार शारदा से दो ऐसे मरीज डिस्चार्ज हुए। इनमें दूसरे हैं डॉ. मुनिंद्र सिंह।