Fall Army Worm: फॉल आर्मी कीट मक्के की फसल को अधिक हानि पहुंचाता है। इस कीट की छोटी लार्वा पत्तियां को खुरच कर खाती है, जिससे पत्तियों पर सफेद धारियां दिखाई देती है। पूर्ण विकसित लार्वा पहले पत्ती को बीच में से खाकर छिद्र कर देती हैं, ग्रसित पत्तियों पर बड़े गोल गोल छिद्र एक ही कतार में दिखाई देते हैं। उसके बाद लार्वा धीरे-धीरे तने का रस चूसकर उसे खाकर खोखला कर देती हैं, इस तरह पूर्ण पौधे को एवं फसल को शीघ्र ही नष्ट कर देती हैंl
इस कीट का जीवन चक्र 30-31 दिन का होता है। वर्ष भर में कई जीवन चक्र पूरे करते हुए इस कीट का प्रभाव पूरे वर्ष भर रहता है। बरसात के मौसम में इस कीट का प्रभाव अधिक रहता है।
मक्का बीज बोने के महज 15 दिनों के बाद ही फॉल आर्मी वर्म कीट की इल्लियां (लार्वा) मक्के की फसल को बर्बाद कर देती हैं। अगर एक बार इस कीट का आक्रमण मक्के के खेत में हो गया तो फिर कोई दवा काम नहीं करती। मक्का न मिलने पर यह कीट दूसरी फ़सलों जैसे धान, गन्ना, और सोयाबीन आदि पर चला जाता है।
प्रारंभिक अवस्था में ही इस कीट पर नियंत्रण कारगर हो पाता है इसलिए इस कीट को रोकने के सारे इंतजाम पहले से करके रखना चाहिए।
किसी भी कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि हम उस कीट की प्रकृति, स्वभाव, पहचान, जीवन चक्र के बारे में जानकारी रखें, तभी कीट का प्रभावकारी नियंत्रण किया जा सकता है।
फॉल आर्मी कीट के जीवन चक्र में चार अवस्थाएँ होती हैं
- अंडा
- लार्वा (लट) कैटरपिलर
3.प्यूपा कोष
- वयस्क इसे मॉथ और पतंगा के नाम से भी जानते हैं ।
अंडा : पतंगा एक बार में 50-200 अंडे खरपतवार व घास की ऊपर की सतह पर समूह के रूप मे देता हैं जो हल्के हरे व सफ़ेद रंग के होते हैंl
लार्वा (लट) : यह फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने वाली अवस्था है, जिसे साधारण भाषा में कैटरपिलर के नाम से जानते हैं, इसका रंग शुरुआत मे हरा व बाद मे भूरा होता हैं, इसके अग्र भाग पर उल्टा Y व पीछे के भाग पर चार काले रंग के धब्बे होते हैं l यह दिन के समय मृदा में रहती हैं और रात्रि के समय मृदा की ऊपरी सतह पर आकर फसल को नुकसान पहुँचाती हैं।
प्यूपा : प्यूपा मृदा में 2-8 सेंटीमीटर गहराई में सुषुप्ता अवस्था में पाई जाती हैं, इसकी यह अवस्था नुकसान नहीं पहुँचाती हैंl
वयस्क, पतंगा : यह अत्यधिक गतिशील होती हैं जो एक रात्रि में 100 किलोमीटर तक भ्रमण कर सकता है, यह अवस्था भी फसल के लिए नुकसान दायक नहीं होती हैंl
कीट नियंत्रण :
कीट की चारों अवस्था अंडे, लार्वा, प्यूपा व वयस्क को नष्ट कर ही प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। मक्का के रोपण से पहले खेत की गहरी जुताई करें जिससे कीटों के प्यूपा भूमि की सतह पर आ जायें और उन्हें पक्षी वगैरह खा सकें।
भूमि उपचार हेतु एक किलो व्यूबेरिया वेसियाना को 25 किलो ग्राम गोबर में मिला कर एक सप्ताह तक छाया में रखें। गोबर में नमी होना आवश्यक है, इस प्रकार व्यूबेरिया वेसियाना का माइसीलियम पूरे गोबर में फैल जायेगा। इस गोबर का प्रयोग खेत में अन्तिम जुताई के समय बीस नाली में करें।
मक्का के साथ दलहनी फ़सलों को लगायें
फसल की शुरुआती अवस्था में एक महीने तक 10 पक्षी बैठक को प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में लगाएँ। और मक्के में बाली आने से पहले हटा दें।
फसल के चारों ओर नेपियर घास की 3-4 लाइनों का ट्रैप क्रॉप हेतु रोपण करें। यह कीट नैपियर घास पर पहले आक्रमण करते हैं जिससे इन कीटों को नैपियर घास पर ही कीटनाशक का छिड़काव कर नियंत्रण किया जा सकता है।
ग्रसित फसल के बाद पुनः उस खेत में अगले वर्ष मक्का की बुवाई न करें।
कीट आने पर इसका नियंत्रण जैविक और रासायनिक दोनों पद्धति द्वारा कर सकते हैं l अगर प्रकोप पहली या दूसरी अवस्था में हैं, तो जैविक नियंत्रण कारगर रहता हैंl
- फसल क्षेत्र की निराई गुड़ाई कर खर पतवार से मुक्त रखें।
- फसल में सन्तुलित उर्वरकों का प्रयोग करें।
- पौधों की समय समय पर निगरानी करते रहैं प्रभावित पत्तियां तथा अंडों को एक पौलीथीन की थैली में इकट्ठा कर नष्ट करें।
- नर मौथ के नियंत्रण हेतु 5 फेरामोन ट्रेप प्रति एकड़ लगायें।
- वयस्क कीटों के नियंत्रण हेतु रात्री में प्रकाशन प्रपंच की सहायता से वयस्क कीटों को नष्ट करें।
प्रकाश प्रपंच स्वयंम भी बना सकते हैं. एक चौडे मुंह वाले वर्तन (पारात, तसला आदि) में कुछ पानी भरलें तथा पानी में मिट्टी तेल या कीट नाशक रसायन की कुछ बूंदें मिला लें. उस वर्तन के ऊपर से मध्य में विद्युत वल्व लटका दें यदि खेत में लाइट सम्भव न हो तो वर्तन में दो ईंठ या पत्थर रख कर उसके ऊपर लालटेन या लैंम्प रख दें। साम को अंधेरा होने से रात के 9 – 10 बजे तक वल्व, लालटेन या लैम्प को जला कर रखें। वयस्क कीट प्रकाश से आकृषित होकर वल्व, लालटेन व लैम्प से टकराकर वर्तन में रखे पानी में गिर कर मर जाते हैं। कृषि सम्बन्धित विभागों व बाजार में भी प्रकाश प्रपंच/ सोलर प्रकाश प्रपंच उपलब्ध हैं।
- व्यूवेरिया वेसियाना (जैविक कीटनाशक फफूंद) बाजार में बायो साफ्ट, बायो वंडर, बायो पावर, दमन आदि नामों से भी उपलब्ध है, की 5 ग्राम दवा एक लीटर पानी में घोल बनाकर सायंकाल में पौधे की जड़ के पास की भूमि को तर करें। इस फंफूद के कारण इल्लियां रोग ग्रस्त हो जाते हैं व धीरे धीरे मरने लगते हैं।
- नीम आयल 5 ml एक लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। घोल में डिटर्जेंट मिलाने से दवा का प्रभाव बढ़ जाता है।
रसायनिक नियंत्रण :
यदि जैविक विधियों से कीट का नियंत्रण नहीं हो पा रहा है तो रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करें। ईमीडाक्लोप्रड, क्लोरपाइरीफास एक चम्मच दवा तीन लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। एक ही दवा का प्रयोग बार-बार न करें।
भूमि में उपलब्ध इल्लियां व प्यूपा के नियंत्रण हेतु क्लोरपाइरी फास 80 ml. दवा एक किलो ग्राम रेत/ भुरभुरी सूखी मिट्टी में मिलायें। रेत या मिट्टी की ढेर के बीच में दवा डालने हेतु जगह बनायें जैसे आटा गूंथने में पानी के लिए जगह बनाते हैं फिर हाथों में गल्वस पहन लें यदि गल्वस नहीं है तो हाथ पर पौलीथीन की थैली लपेट कर लकड़ी की डंडी के सहारे दवा को रेत में मिलायें। एक कीलो दवा मिली रेत एक नाली भूमि के उपचार के लिए प्रर्याप्त होती है। दवा मिली रेत के बुरकाव के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है।
डा० राजेंद्र कुकसाल (कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञ)
मोबाइल : 9456590999