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Shani Jayanti 2021: इस वर्ष 10 जून को साल का पहला सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। और संयोग से इस दिन शनि जयंती भी है। जिससे इसका महत्व और भी बढ़ गया है। 10 जून को होने वाली शनि जयंती पर दुर्लभ एवं प्रभावकारी विशिष्ट संयोग बन रहा है। 148 वर्षों में इस तरह का योग पहली बार देखने को मिल रहा है। इस दिन शनि जयंती, सूर्य ग्रहण, वट सावित्री व्रत तथा अमावस्या जैसे चार अतिमहत्वपूर्ण संयोग हैं। शनि जयंती का प्रादुर्भाव रोहिणी नक्षत्र में हो रहा है। रोहिणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र और चन्द्रमा को माना जाता है। इस नक्षत्र की गणना पवित्र व विशिष्ट नक्षत्रोँ में की जाती है। इससे यह भी बोध होता है कि कोरोना महामारी की स्थिति 10 जून के बाद कम हो जायेगी। लोगो के अंदर आशा का संचार पैदा होगा शनि देव अपनी जयंती को वक्री स्थिति में रहेंगे। सारे योग परम शुभता को दर्शा रहे हैं।

हालाँकि सूर्य ग्रहण भारत के पूर्वोत्तर के बहुत कम हिस्से और जम्मू कश्मीर में आंशिक रूप से दिखेगा। इसलिए भारत में सूर्य ग्रहण का सूतक काल भी पूरी तरह मान्य नहीं होगा. यह सूर्य ग्रहण एशिया, यूरोप, मंगोलिया, उत्तर-पूर्व अमेरिका अटलांटिक महासागर के उत्तरी हिस्से में आशिंक और उत्तरी कनाडा, रूस, ग्रीनलैंड में पूर्ण रूप से दिखाई देगा। इसलिए इन देशों में सूर्य ग्रहण का सूतक मान्य होगा। यह ग्रहण रिंग ऑफ फायर या वलायाकार सूर्य ग्रहण होगा। इस दौरान चंद्रमा सूर्य के लगभग 97 फीसदी हिस्से को कवर कर लेगा।

  1. ग्रहण दोपहर एक बजकर 42 मिनट से आरंभ होकर शाम 6 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगा।
  2. इस बार लगने वाला सूर्य ग्रहण, वृषभ राशि और मृगशिरा नक्षत्र में पड़ने वाला है। मृगशिरा नक्षत्र के स्वामी मंगल ग्रह को माना गया है। इस समय वक्री शनि मकर राशि में है और उसकी दृष्टि मीन व कर्क राशि में विराजमान मंगल ग्रह पर है।
  3. वृषभ, तुला और वृश्चिक राशि के जातकों पर इस सूर्य ग्रहण का सबसे ज्यादा असर दिखाई देगा। इन राशि के जातकों को अपने विशेष ख्याल इस दौरान रखना चाहिए। वाहन चलाने और कोई भी जोखिम भरा कार्य करने से भी इन राशि वालों को बचना चाहिए।
  4. इस दिन गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। पेट पर गेरू का लेप (चावल का लेप) लगाए।ग्रहण के दौरान कुछ न खायें और बचा हुआ खाना जो ग्रहण काल में रखा हो, उसका इस्तेमाल भी न करें।
  5. ग्रहण समाप्त होने पर सरसों का तेल, उड़द, तांबे का बर्तन, गुड़, सोना और वस्त्र दान करना चाहिए। ग्रहण के बाद मंदिर जाएं और पूजा करें। अपने घर के मंदिर के द्वार भी खोल दें। इससे नकारात्मक ऊर्जा का असर कम होगा।
  6. सूर्य को सीधे कोरी आंखों से न देखें। ग्रहण को एक्स-रे फिल्म या साधारण चश्मे से भी नहीं देखना चाहिए।सूर्य ग्रहण के लिए बने चश्मे या कैमरे में उचित फिल्टर लगाकर ही ग्रहण को देखें।
  7. ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि 9 जून को दोपहर एक बजकर 57 मिनट से शुरू होगी, जोकि 10 जून को शाम चार बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी।

शनि जयंती पर निम्न सावधानियाँ बरतें:

  • लोहे से निर्मित बस्तुओँ को बिल्कुल भी न खरीदेँ।सरसोँ का तेल लकडी का सामान बिल्कुल भी न लें।
  • तुलसी बेलपत्री को बिल्कुल भी न तोडे।
  • शराब ,धुम्रपान, तम्बाकू आदि किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन न करेँ।
  • मन में कलुषित बिचार न लायेँ।5-शनि चालीसा का 11बार पाठ करेँ
  • अपने श्रद्वानुसार 101 बार ऊँ प्राँ प्रीँ प्रौँ स: शनैश्चराय नम: का जाप करेँ
  • इस प्रकार न्याय के देवता शनि देव सच्चे मन से की गई पूजा से बहुत जल्दी खुश होकर अपने भक्तो के सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करते हैं।

शनिदेव के बारे में

 

शनि देव का अवतरण ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को हुआ था। इस कारण हर वर्ष इस पुनीत अवसर पर शनि जयंती मनाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को सबसे अनूठा और विशिष्ट ग्रह माना जाता है। यह मन्द गति से चलने वाला प्रधान ग्रह है। इसका ब्यास उनासी हजार मील है। यह सूर्य से 78 करोड 2 लाख मील दूर है। यह सूर्य की परिक्रमा 30 साल में करता है। बारह राशियों को 30 साल में तथा एक राशि को 2 वर्ष 6 माह में भोगता है। हर वर्ष इस ग्रह की स्थिति साढे तीन महीने वक्रीय बनी रहती है। शनि को मकर और कुम्भ राशि का स्वामी माना जाता है। शनि को तुला में उच्च स्थिति तथा मेष राशि में नीच का माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में इस ग्रह को सूर्य पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। जबकि शनि की सबसे ज्यादा शत्रुता भी सूर्य से ही मानी जाती है। शास्त्रोँ में शनि ग्रह का विवरण इस प्रकार से देखने को मिलता है.

नमस्ते कोटरक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ।।

अर्थात् आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैं। आपकी ओर देखना भी कठिन है। आप घोर रौद्र, भीषण और विकराल हैं। आपको नमस्कार है।

शनि का शाब्दिक अर्थ होता है शनै शनै अर्थात् धीरे-धीरे अपने प्रभाव को दिखाने वाला। यह मँगल ग्रह की भाँति तत्काल अपना प्रभाव नहीँ दिखाता है। परन्तु यह धीमी गति अपने आप में बडी भयँकर होती है। अपनी धीमी चाल से कब राजा को रँक, कब रँक को राजा बना दे इस सन्दर्भ में कुछ नही कह सकते।

आध्यात्मिकता को चरम पराकाष्टा तक ले जाने में भी शनि ग्रह का विशिष्ट योगदान माना जाता है। शनि ग्रह के विषय में अनेक लोक कथायेँ भी देखने को मिलती हैं। कहा जाता है कि एक बार किसी गलती के कारण शनि देव को घर से निष्कासित करके बनवास दे दिया था। इस पर शनि ग्रह ने बडे सँयम से निर्जन बन में कठोर परिश्रम करके उसे स्वर्ग से भी अधिक रमणीय स्थल बना दिया था। इस आधार पर यह कहा जाता है कि शनि कठोर परिश्रम करने वालोँ की हमेंशा मदद करता है।

शनि ग्रह को अनेक उपनामोँ से भी जाना जाता है। हिन्दी में शनिश्चर, अँग्रेजी में सैटर्न, अरबी में जुहल, फारसी में केवा, संस्कृत में कोणस्थ पिंगल कृष्ण तनय आदि नाम निहित है।

हस्त सामुद्रिक शास्त्र में इस ग्रह का क्षेत्र मध्यमा अँगुली के निम्न सतह की ओर रहता है। हस्त विज्ञान में इस ग्रह को शनि पर्वत के नाम से जाना जाता है। अपने पिता सूर्य की गरमी सहन ना करने के कारण इनका सारा शरीर काला पड़ गया था, फलस्वरुप सारी सुन्दरता कुरुपता में बदल गई। शनि की माता का नाम छाया है। बचपन में शनिदेव कृष्ण की पूजा में लीन रहते थे। युवा होने पर इनका विवाह सुनन्दा से हुआ। एक बार उनकी पत्नी पुत्र की अभिलाषा से इनके पास गई। पति अपने ध्यान में लीन थे। सुनन्दा को लगा की ये मेरी उपेक्षा कर रहे हैं। सुनन्दा ने गुस्से में आकर अपने पति शनि देव को श्राप दे दिया, जहाँ भी दृष्टि डालोगे वहाँ विनाश हो जायेगा। समाधि टूटने पर शनि ने अपनी पूजा का बृतान्त अपनी पत्नी को सुनाया। यह सुनकर पत्नी को बहुत दु:ख हुआ। लेकिन दिये गये शाप को मिटाया नही जा सकता। इस कारण ये नीची दृष्टि को लेकर के चलते हैं।

शनि जब रोहिणी नक्षत्र को भेदकर आगे बढते हैं, तब प्रबल विनाशकारी स्थिति की सँम्भावना बन जाती है। इस तरह का योग राजा दशरथ के समय अयोध्या में आया था। इस विनाश से मुक्ति के लिए राजा दशरथ ने गुरु वशिष्ट से उपाय माँगा। गुरु वशिष्ट ने राजा दशरथ को शनि उपासना करने की सलाह दी। राजा दशरथ शनि की उपासना में इस तरह से लीन हो गये कि शनि स्तोत्र की रचना कर डाली। राजा दरशरथ की तपस्या से खुश होकर के शनि देव ने उन्हेँ साक्षात दर्शन देते हुये कहा जो भी भक्त तुम्हारे द्वारा लिखे हुये स्तोत्र से मेरी पूजा करेगा, उसकी सारी बाधायेँ दूर हो जायेगी। उसे किसी भी प्रकार का कष्ट नही उठाना पडेगा।

लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला, माँ काली उपासक, स्वर्ण पदक, राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी अध्यापक