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25 अप्रैल 1919 को पौड़ी गढ़वाल के बुघाणी गांव में जन्मे हिमालयपुत्र के नाम से विख्यात, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा की आज 100वीं जयंती है। देश के चुनिन्दा अग्रणीय राजनेताओं में शुमार हेमवती नंदन बहुगुणा का जीवन वास्तव में अत्यंत कठिनाइयों, संघर्षों, झंझावातों और राजनैतिक उठा पटक से ओतप्रोत रहा। बचपन से ही उनके भीतर नेतृत्व के गुण कूट-कूट कर भरे थे। प्रारम्भिक शिक्षा गढ़वाल से प्राप्त करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद गए जहाँ उन्होंने बतौर मजदूर नेता गरीबी के आलम में जीवन काटने के साथ साथ बेहद संघर्ष किया। हेमवती नंदन बहुगुणा ने दो शादी की थी। उनकी दूसरी पत्‍नी कमला बहुगुणा से उनके दो बेटे और एक बेटी हुई। बहुगुणा के बड़े बेटे विजय बहुगुणा उत्‍तराखंड के मुख्‍यमंत्री रह चुके हैं। वहीं उनकी बेटी रीता बहुगुणा जोशी बीजेपी से जुड़ी है।

हेमवती नंदन बहुगुणा उन राजनेताओं की अग्रणीय पंक्ति में आते हैं। जो अपने कार्यकर्ता को नाम से जानते हैं। बहुगुणा जी का फलक इतना विशाल था कि वह जमीनी धरातल पर रहते हुए। हर वर्ग के लिए काम करते थे। आज के राजनैतिक परिपेक्ष्य में देखे तो हेमवती नंदन बहुगुणा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने खुलकर भाग लिया। बताया जाता हैं कि उन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने 5 हजार का इनाम रखा था। जिसके बाद दो वर्ष से भी अधिक समय तक उन्हें जेल में रखा गया। इस आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका ने उन्हें काफी लोकप्रियता दिलाई। उन्होंने जीवन पर्यंत स्वराज के उद्देश्यों को अपने व्यक्तित्व एवं राजनीतिक प्रयासों में बरकरार रखा। वे एक ऐसे क्रांतिकारी देशभक्त थे,  जो सामाजिक न्याय, सांप्रदायिक सद्भावना और राष्ट्रीय गौरव के लिए सदैव प्रयासरत रहे। उनका देश की राजनीति,  आर्थिक,  सामाजिक तथा सुरक्षा संबंधी विषयों पर गहरा ज्ञान था। अंतरराष्ट्रीय विषयों पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी। बहुगुणा जी यह सब अपने संघर्षों के माध्यम से तब हासिल किया जब सुख सुविधाओं के नाम पर व्यक्ति के समक्ष शून्य मात्र होता है।

17 मार्च 1989 को हेमवती नंदन बहुगुणा दुनिया को अलविदा कह गए। ऐसे महान व्यक्तित्व को शत-शत नमन।