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नई दिल्ली: इंस्टिट्यूशन एरिया, कड़कड़डूमा, दिल्ली के गढ़वाल भवन में शनिवार को उत्तराखंड आंदोलनकारी, समाजसेवी व कॉग्रेस नेत्री स्वर्गीय कमला रावत (दीदी) को उत्तराखंड समाज के द्वारा याद करते हुए उनके सम्मान में विशिष्ट पुरस्कार देने की परिपाटी भी शुरू की गई।

दीदी कमला रावत ने अपना पूरा जीवन अपने समाज को समर्पित किया। उत्तराखंड आंदोलन में वह सक्रिय थी तो अपने समाज के लिए हर समय समर्पित रही। दीदी जुझारू होने के साथ-साथ सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखती थी। उनकी जैसी महान व्यक्तित्व की महिला उत्तराखंड में कोई-कोई ही हुई है। समाज के प्रति उनके सेवा भाव को डॉ. विनोद बछेती जी पहचाना और उत्तराखंड एकता मंच व उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच के बेनर तले उनको श्रद्धांजलि दी गई। kamla-didi

इस सभा मे उत्तराखंड समाज से जुड़े नेता, साहित्यकार, कवि, बुद्धिजीवी व सामाजिक लोग सम्मिलित हुए। सभी ने कमला दीदी को श्रद्धा सुमन अर्पित किए व उनके साथ बिताए अपने संस्मरण सबके साथ सांझा किये। इस अवसर पर दीदी कमला रावत विशिष्ट सम्मान की शुरुआत भी हुई जो उत्तराखंड फिल्मों की निदेशिका, रंगकर्मी श्रीमती सुशीला रावत को कॉंग्रेस पार्टी के सह सचिव हरपाल रावत व डॉ. विनोद बछेती ने सम्मिलित रूप से दिया। साथ ही उत्तरकाशी के जोशी जी को भी सम्मानित किया गया।

दीदी जी को याद करते हुए हरपाल रावत ने कहा कि वह हमारे साथ 80 के दशक से कार्य कर रही थी और उत्तराखंड आंदोलन के लिए वह हर व्यक्ति में अपनी वाणी से जोश भर दिया करती थी। उन्होंने कहा कि वह क्रांतिकारी परिवार में जन्मी थी और समाजसेवा उन्हें विरासत में मिली है। वह स्कूल अध्यापिका थी इसके बावजूद भी आंदोलन में सक्रिय थी. बकौल हरपाल रावत हमने उन्हें कई बार कहा भी की आप सरकारी कर्मचारी हैं और आपको इस तरह सक्रिय नहीं रहना चाहिए पर उनका विचार था कि अपना प्रदेश व समाज पहले नौकरी की कोई परवाह नहीं ऐसी थी कमला दी। अपने उदघोषण में डॉ. विनोद बछेती ने कहा कि वे दीदी के संपर्क में 2014 में आये। उन्होंने बताया कि दीदी कई संस्थाओं से जुड़ी थी साथ ही कोंग्रेस की सक्रिय सदस्य भी थी. इसके बावजूद वो पार्टी लाइन से ऊपर उठकर समाज के हित के लिए किसी भी हद में जा सकती थी। उनके मुताबिक दीदी की एक खासियत ये थी कि वो किसी भी कार्यक्रम के शुरू होने से पूर्व पूजा जरूर करती थी क्योंकि दीदी का मानना था कि ये हमारी सांस्कृतिक परंपरा है और इससे सब कार्य सफल हो जाते हैं। समाज के कार्यों के लिए वो दिन रात एक कर देती थी और उनके सानिध्य में समाज सेवा के लिए बहुत कुछ सीखने को मिला।

मंच का संचालन करते हुए साहित्यकार दिनेश ध्यानी ने गढ़वाली में अपनी बात रखी और दीदी के साथ बिताया एक संस्मरण बताया कि 2002 में उत्तराखंड में आई त्रास्दी में हम दीदी के साथ पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार, विनोद नगर इत्यादि में सहायता मांगने गए तो लोगों ने हमारे मुंडों पे कपड़े फेंके. देखने पर वे फटे हुए थे पर दीदी जी ने उनमें से कपड़े छांट कर बुगच्छा बनाया और कंधे पे टांक आगे बढ़ी कहने का तात्पर्य कि अपने समाज के लिए उनके दिल में दर्द था. जिसके लिए वे सब कुछ सहने को तैयार थी। दिनेश ध्यानी ने एक अच्छी बात ये कही कि हमारे समाज मे दीदी कमला रावत जैसी ही अनेक ऐसी हस्तियां हैं जिनके बारे में कोई लेख पढ़ने को नहीं मिलता जिससे भावी पीढ़ी उनके बारे में जान ही नही पाती। उन्होंने एक प्रस्ताव रखा कि दीदी के संस्मरणों को एकत्रित कर एक पुस्तक का रूप दिया जाए। इसके लिए उन्होंने कॉंग्रेस पार्टी के सह सचिव व डॉ. विनोद बछेती जी से विशेष आग्रह किया।

कमला दीदी के पति प्रेम सिंह रावत इस अवसर पर बहुत ही भावुक थे और डॉ. विनोद बछेती के बहुत आभारी भी। उन्होंने कहा कि कमला को उन्होंने हमेशा प्रेरित किया और अपना पूरा सहयोग उन्हें दिया। उनकी सेवाओं का ही परिणाम है कि आज समाज के लोग उन्हें याद रखे हुए है।  इस अवसर पर कमला दीदी के साथ काम कर चुके अनिल पंत व ठाकुर चंदन सिंह रावत, सुरेंद्र हालसी,  दयाल सिंह नेगी, गढ़वाल भवन के महासचिव श्री नेगी, उपाध्यक्ष भी मौजूद थे। साहित्यकारों व कवियों में सर्वश्री जयपाल सिंह रावत, दर्शन सिंह, चंदन प्रेमी जी, रमेश हितैषी, आर्य, व अन्य अनेकों लोगों के साथ ही आशा बरारा, रोशनी चमोली के साथ-साथ महिला शक्ति भी काफी संख्या में दीदी को याद करने पहुंची थी।

कमला दीदी से प्रेरित होकर इंदिरापुरम में रहने वाले धीरेंद्र कुमार उनियाल ने अपने उत्तराखंड से विलुप्त हो रहे रिंगाल के काश्तकारों को फिर से पहचान दिलाने व पलायन को रोकने का बेड़ा उठाया है। इसी सिलसिले में वह उनके द्वारा तैयार सामान लेकर यहां आए थे। वे व्यथित हैं कि इतनी बड़ी तादाद में हम उत्तराखंडी यहां रहते हैं लेकिन अपने काशकारों को फिर से खड़ा करने में कोई रुचि नही दिखा रहा। उनका कहना है कि अपनी संस्कृति व काश्तकारों को बचाने के लिए उनके प्रयास जारी रहेंगे।

उत्तराखंड एकता मंच व उत्तराखंड बोली भाषा साहित्य मंच का आभार कि उन्होंने एक नई पहल करते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं को पहचान दिलाने का प्रयास किया। इस अवसर पर डॉ. विनोद बछेती ने कहा कि दीदी कमला दीदी के सम्मान में अगले साल और भी व्यापक पैमाने पर कार्यक्रम किया जाएगा।

द्वारिका चमोली