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Appointment of chief election commissioner: देश की सर्वोच्च अदालत ने आज दो बड़े महत्वपूर्ण फैसले दिए। सुप्रीम कोर्ट के दिए गए दोनों फैसलों में कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों को मजबूती मिली है। पहला सर्वोच्च अदालत ने हिंडनबर्ग मामले में गौतम अडानी को लेकर 6 सदस्य एक्सपर्ट कमेटी के गठन करने के आदेश दिए। बता दें कि केंद्र सरकार ने गौतम अडानी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट से अपने सदस्यों से कमेटी बनाने के लिए कहा था। केंद्र सरकार की इस अपील को ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला देते हुए एक्सपर्ट कमेटी गठित की है।

कोर्ट ने दूसरे फैसले में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। ‌अभी तक केंद्र सरकार मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन करती रही है। लेकिन अब कोर्ट ने केंद्र से यह अधिकार छीन लिए हैं। कोर्ट ने आदेश दिया कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई का पैनल इनकी नियुक्ति करेगा। पहले सिर्फ केंद्र सरकार इनका चयन करती थी। 5 सदस्यीय बेंच ने कहा कि ये कमेटी नामों की सिफारिश राष्ट्रपति को करेगी। इसके बाद राष्ट्रपति मुहर लगाएंगे।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में साफ कहा कि यह प्रोसेस तब तक लागू रहेगी, जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं बना लेती। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह चयन प्रक्रिया सीबीआई डायरेक्टर की तर्ज पर होनी चाहिए। जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखी जानी चाहिए। नहीं तो इसके अच्छे परिणाम नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि वोट की ताकत सुप्रीम है, इससे मजबूत से मजबूत पार्टियां भी सत्ता हार सकती हैं। इसलिए इलेक्शन कमीशन का स्वतंत्र होना जरूरी है। यह भी जरुरी है कि यह अपनी ड्यूटी संविधान के प्रावधानों के मुताबिक और कोर्ट के आदेशों के आधार पर निष्पक्ष रूप से कानून के दायरे में रहकर निभाए।

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर फिलहाल देश में कोई कानून नहीं है। नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया केंद्र सरकार के हाथ में है। अब तक अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के मुताबिक सचिव स्तर के मौजूदा या रिटायर हाे चुके अधिकारियों की एक सूची तैयार की जाती है। कई बार इस सूची में 40 नाम तक होते हैं। इस सूची के आधार पर तीनों नामों को एक पैनल तैयार किया जाता है। इन नामों पर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति विचार करते हैं।

इसके बाद प्रधानमंत्री पैनल में शामिल अधिकारियों से बात करके कोई एक नाम राष्ट्रपति के पास भेजते हैं। इन नाम के साथ प्रधानमंत्री के नोट भी भेजते हैं। इसमें उस शख्स के चुनाव आयुक्त चुने जाने की वजह भी बताई जाती हैं। देखा जाए तो इस प्रक्रिया में सरकार का पूरा रोल होता है। इनका कार्यकाल 6 साल या 65 साल की उम्र जो भी पहले हो तक होता है। इस प्रक्रिया से चुनाव आयुक्त चुने जाते हैं और इनमें से जो सबसे सीनियर होता है उसे मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया जाता है।