नयी दिल्ली: श्राद्ध या पिण्डदान दोनो एक ही शब्द के दो पहलू है. 15 दिनों के पितृपक्ष (श्राद्ध) में पितरों की संतुष्टि के लिए अन्न के पिण्ड (गोला) बनाकार अपने पितरों को श्रद्धा पूर्वक अर्पण करने को पिन्डदान या श्राद्ध कहते है. इस वर्ष 13 सितंबर (पूर्णिमा) को ऋषि तर्पण और श्राद्ध होगा. तथा 14 सितंबर से पितृपक्ष श्राद्ध आरंभ हो जाएगा जो 28 सितंबर तक चलेगा। पितृपक्ष पितरों का याद करने का समय माना गया है। पितर 2 प्रकार के होते हैं एक दिव्य पितर और दूसरे पूर्वज पितर। दिव्य पितर ब्रह्मा के पुत्र मनु से उत्पन्न हुए ऋषि हैं। और दूसरे प्रकार के पितर पूर्वज होते हैं। पितृपक्ष में लोग अपने पितरों को याद करते हैं और इनके नाम से पिंडदान, श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन करवाते हैं।
श्राद्ध क्यों करना चाहिए
श्राद्ध क्यों करना चाहिए इस बारे में ज्योतिषाचार्य पं. आनन्दवर्धन नौटियाल बताते है कि पितृपक्ष में तिथि के अनुसार पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले तर्पर्ण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है. पितृ पक्ष में जिन तिथियों में पूर्वज यानी पिता, दादा, परिवार के लोगों की मृत्यु हुई होती है उस तिथि को उनका श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध का नियम है कि दोपहर के समय पितरों के नाम से श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए।
इस वर्ष पितृपक्ष श्राद्ध की तिथि निम्न हैं
13 सितंबर शुक्रवार को पूर्णिमा का श्राद्ध होगा।
इस बार श्राद्ध पक्ष 14 सितंबर से शुरू होगा
14 सितंबर शनिवार प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध
15 सितंबर रविवार द्वितीया तिथि का श्राद्ध
17 सितंबर मंगलवार तृतीया तिथि का श्राद्ध
18 सितंबर बुधवार चतुर्थी तिथि का श्राद्ध
19 सितंबर बृहस्पतिवार पंचमी तिथि का श्राद्ध
20 सितंबर शुक्रवार षष्ठी तिथि का श्राद्ध
21 सितंबर शनिवार सप्तमी तिथि का श्राद्ध
22 सितंबर रविवार अष्टमी तिथि का श्राद्ध
23 सितंबर सोमवार नवमी तिथि का श्राद्ध
24 सितंबर मंगलवार दशमी तिथि का श्राद्ध
25 सितंबर बुधवार एकादशी का श्राद्ध/द्वादशी तिथि/संन्यासियों का श्राद्ध
26 सितंबर बृहस्पतिवार त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध
27 सितंबर शुक्रवार चतुर्दशी का श्राद्ध
28 सितंबर शनिवार अमावस्या व सर्वपितृ श्राद्ध. इसी दिन श्राद्धों का समापन होगा।
ज्योतिषाचार्य पं. आनन्दवर्धन नौटियाल