लोकतंत्र की दुनिया में महिलाओं के लिए आज की ऐतिहासिक तारीख है। 129 साल पहले आज के दिन  28 नवंबर 1893 को न्यूजीलैंड में पहली बार महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। ‌इसके लिए सोशल एक्टिविस्ट महिला केट शेफर्ड ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हीं की वजह से दुनिया में पहली बार लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी हुई थी। महिलाओं को वोट दिलाने के लिए केट शेफर्ड ने बहुत ही संघर्ष किया।

केट ने 1891, 1892 और 1893 में वोटिंग के लिए आंदोलन किये थे। महिलाओं को वोटिंग का अधिकार दिलाने की लड़ाई के लिए वुमंस क्रिश्चियन टेम्परेंस यूनियन बना, जिसकी लीडर केट शेपर्थ थीं। केट शेपर्थ ने ही महिलाओं को वोटिंग के अधिकार की लड़ाई लड़ी। इसके लिए उन्होंने एक पिटीशन पर साइन करवाए। शेपर्थ ने करीब तीन साल मेहनत की। तब जाकर 32 हजार महिलाओं के साइन मिल पाए। ये उस समय की न्यूजीलैंड की महिला आबादी का करीब एक चौथाई था। उनकी पिटीशन पर समर्थन मिलने के बाद 8 सितंबर 1893 को बिल लाया गया। इसके बाद 19 सितंबर को लॉर्ड ग्लास्गो ने बिल पर साइन कर इसे कानून बनाया। तब जाकर महिलाओं को वोटिंग का अधिकार मिला।

काफी संघर्षों और प्रदर्शन के बाद न्यूजीलैंड की सरकार को केट की मांगे पूरी करनी पड़ी और इसी तरह वहां की महिलाओं को मतदान करने का अधिकार मिला । आखिरकार 28 नवंबर 1893 को हुए आम चुनाव में महिलाओं ने पहली बार वोट डाले। पहले चुनाव में 1.09 लाख महिला वोटर थीं, जिसमें से 82% यानी 90,290 महिलाओं ने वोट डाला। न्यूजीलैंड दुनिया का पहला देश है, जिसने सबसे पहले महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया था। इसके बाद धीरे-धीरे दूसरे देशों ने भी इस रास्ते को अपनाया।

न्यूजीलैंड के बाद ऑस्ट्रेलिया ने 1902 में महिलाओं को ऐसे अधिकार दिए। उसके बाद फिनलैंड ने 1906 में इसकी शुरुआत की, जबकि नॉर्वे ने 1913 में महिलाओं को मताधिकार दिए। अमेरिका जैसे देश में भी पहले महिलाओं को वोटिंग करने का अधिकार नहीं था, वहां 1919 में ऐसा कानून लागू किया गया। अगर भारत की बात करें तो, यहां आजादी मिलने के बाद से ही महिलाओं को वोटिंग करने का अधिकार दे दिया गया था। आज लोकतांत्रिक देश में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

शंभू नाथ गौतम