बाल-श्रम की समस्या भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने बाल श्रम की वैश्विक सीमा और इसे खत्म करने के लिए आवश्यक कार्रवाई और प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 2002 में बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस का शुभारंभ किया। प्रत्येक वर्ष 12 जून को, बाल मजदूरी के प्रति विरोध एवं जगरूकता फैलाने के मकसद से बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। आज विश्व में जितने बाल श्रमिक है, उनमें सबसे ज्यादा भारत में हैं; एक अनुमान के अनुसार विश्व के बाल-श्रमिकों का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा भारत में है। आज दुनिया भर में लगभग 215 मिलिययन से ज्यादा ऐसे मजदूर हैं जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है, इन बच्चों का जीवन (बचपन) स्कूल में कॉपी-किताब, दोस्तों और मनोरंजन के बीच नहीं बल्कि होटलों, घरों, उद्योगों में बर्तनों, झाड़ू-पौंछे और औजारों के बीच दम तोड़ रहा है। शहरीकरण के चलते ये समस्या दिनों दिन बढ़ चली जा रही है, अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी इसके मुख्य कारण है। भारत में 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ, इस अधिनियम के अनुसार बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई, इस समिति की सिफारिश के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति नहीं की जा सकती है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरूद्ध अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है, अनुच्छेद 23 के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों को रोजगार पर रखना प्रतिबंधित है। वहीं संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 साल से कम उम्र का बच्चा किसी भी फैक्टरी या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा, और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा, फैक्टरी कानून 1948 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिद्ध करता है। 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में तभी नियुक्त किये जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो, साथ ही प्रतिदिन साढ़े चार घंटे की कार्य अवधि तय की गई है। रात में काम करने पर प्रतिबंध है। फिर भी इतने कड़े कानून के चलते भी बच्चों से होटलों, कारखानों, घरों, दुकानों, ढाबों आदि में दिन-रात काम करवाया जाता है। इस तरह कानून का उल्लंघन करते हुए मासूम बचपन को रौंधा जा रहा है।
हालांकि फैक्ट्री अधिनियम, बाल अधिनियम, बाल श्रम निरोधक अधिनियम आदि भी बच्चों के अधिकार को सुरक्षा देते हैं। इसके बावजूद भी सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 2 करोड़ बाल मजदूर है, अंर्तराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार तो भारतीय सरकारी आंकड़ों से लगभग ढाई गुना 5 करोड़ बाल मजदूर है।
गरीबी ही बच्चों को बाल मजदूर बनने के लिए मजबूर करती है।
वर्तमान में भारत में कई जगहों पर आर्थिक तंगी के कारण मां-बाप थोड़े पैसों के लिए अपने बच्चों को ऐसे ठेकेदारों के हाथ सौंप देते हैं, जो अपनी सुविधानुसार उनकों होटलों, कोठियों और कारखानों आदि में काम पर लगा देते हैं, इसके बाद प्रारंभ होती है शोषण की कहानी, नियोक्ता बच्चों का पटोखे बनाना, कालीन बुनना, वेलडिंग करना, ईट के भट्टों में कम करना, ताले बनाना, पीतल उद्योगों, कांच उद्योगों, हीरा उद्योगों, पत्थरों, कोयले की खदानों, सीमेंट आदि खतरनाक जगहों पर अपनी मर्जी से काम करवाते हैं, श्रम करते-करते बच्चों को कई बार यौन शोषण का भी शिकार भी होना पड़ता है, साथ ही इन उद्योगों में काम करने के चलते कैंसर, टी.बी. जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार भी होना पड़ता है इस तरह नारकीय जीवन जीने के लिए बाल श्रमिक मजबूर हो जाता है।
सरकार ने बाल श्रम पर नए कानून को और सख्त किया है, जिसकी मंजूरी पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के दौरान 2016 में दी, इसके तहत अब किसी भी काम के लिए 14 साल से कम उम्र के बच्चे को नियुक्त करने वाले व्यक्ति को दो साल तक कैद की सजा तथा 50,000/- रु. का अधिकतम जुर्माना लगेगा।
International Labour Organization (ILO), Walk Free Foundation और International Organization for Migration (IOM) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई रिपोर्ट में दुनिया भर में 6.4 करोड़ लड़कियां और 8.8 करोड़ लड़कों सहित कुल 15.20 करोड़ बच्चे श्रमिक है। यह आंकड़ा दुनिया भर के बच्चों का 10वां हिस्सा है।
हालांकि भारत ने World Childhood Index में अपनी रैकिंग में सुधार किया है, वैश्विक बाल अधिकार समूह “Save The Children” द्वारा 175 देशों की सूची में 2018 में भारत 113वें स्थान पर पहुंच गया है, जबकि 2011 में भारत इस सूची में 116वें स्थान पर था।
नोवेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का कहना है कि भारत मे बाल श्रमिकों की संख्या मे कमी आई है लेकिन बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा के मामले बढ़े हैं।
सत्यार्थी ने बाल मजदूरी और बाल उत्पीडन के खिलाफ न केवल देश मे बल्कि दुनिया भर मे अभियान चलाया है। 63 वर्षीय सत्यार्थी ने कहा है कि समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार के भारोंसे नहीं छोड़ी जा सकती है। युवाओं को भी सोशियल मीडिया के माध्यम से बंधुआ बाल श्रमिकों की तकलीफों के बारे मे जागरूकता फैलानी चाहिए। श्री सत्यार्थी स्वयंसेवी संस्था “बचपन बचाओ” आन्दोलन का नेतृत्व करते हैं।
दुनियाभर मे फैली बाल मजदूरी और वयस्कों मे बेरोजगारी के बीच सीधा सम्बन्ध है सरकारी, गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाएं, UNO सभी बाल श्रमिकों पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए आवश्यक कदम उठा रही है वहीँ जरुरत है प्रत्येक नागरिक को जागरूक होने की, तभी बच्चों का बचपन श्रम के दलदल से मुक्त हो पायेगा।