shatrughan sinha tmc

हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता और भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा के लिए 32 साल के सियासी सफर में आज खास दिन है। 3 साल से सियासी मैदान में ‘खामोश’ बैठे बिहारी बाबू ने एक बार फिर से लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में ‘एंट्री’ की है। शत्रुघ्न साल 2019 से अपने राजनीतिक करियर के सबसे खराब दौर में थे । 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहारी बाबू कांग्रेस की टिकट पर पटना साहिब से चुनाव हार गए थे। उसी साल उनकी पत्नी पूनम सिन्हा भी सपा के टिकट पर लखनऊ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से चुनाव हार गई थीं। उसके बाद साल 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में शत्रुघ्न के पुत्र भी पटना से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव हार गए थे। आज अभिनेता और नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने पिछले 3 सालों से मिली हार की भरपाई कर ली है। अब बिहारी बाबू भाजपा की धुर विरोधी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की छांव में टीएमसी के लोकसभा सांसद बन गए हैं ।

पूर्व भाजपा के केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा ने आज से अपनी सियासत की तीसरी पारी शुरू कर दी है। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में स्वास्थ्य और जहाजरानी मंत्री रहे शत्रुघ्न ने मोदी युग आने के बाद 6 अप्रैल, साल 2019 को भाजपा को अलविदा कह दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए ‌‌। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर पटना साहिब से लोकसभा चुनाव लड़े थे लेकिन भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने उन्हें हरा दिया था। ‌शत्रुघ्न सिन्हा 1992 में भाजपा में शामिल हुए थे, दो बार लोकसभा सदस्य बने । 3 वर्षों से बिहारी बाबू सियासत में सक्रिय नहीं थे। पिछले दिनों बिहारी बाबू पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए । ममता ने शत्रुघ्न सिन्हा को बंगाल की आसनसोल लोकसभा के उपचुनाव सीट से टीएमसी का उम्मीदवार बनाया।

बता दें कि पश्चिम बंगाल के आसनसोल लोकसभा सीट के आज घोषित किए गए नतीजों में शत्रुघ्न सिन्हा चुनाव जीतकर टीएमसी के सांसद बन गए हैं। उन्होंने भाजपा की अग्निमित्रा पॉल को 2 लाख 64 हजार 913 वोट से हराया। ये सीट पिछले साल पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी। सुप्रियो बीजेपी छोड़कर टीएमसी में शामिल हो गए थे। अब एक बार फिर संसद में लोकसभा सदस्य के रूप में शत्रुघ्न सिन्हा मोदी सरकार के सामने होंगे।

बता दें कि देश की एक लोकसभा और चार विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों के नतीजे आ चुके हैं। चारों राज्यों में बीजेपी प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा है। पश्चिम बंगाल के आसनसोल लोकसभा सीट से शत्रुघ्न सिन्हा और बालीगंज विधानसभा सीट से बाबुल सुप्रियो की जीत हुई है। वहीं बिहार के बोचहां सीट से राजद के प्रत्याशी अमर पासवान ने जीत हासिल की है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर उत्तरी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी जयश्री जाधव को जीत हुई है। छत्तीसगढ़ की खैरागढ़ विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस की यशोदा वर्मा विजयी हुईं हैं। इन उपचुनाव में भाजपा खाली हाथ रही है। बता दें कि चार राज्यों की 5 सीटों पर उपचुनाव के लिए 12 अप्रैल को मतदान हुआ था।

साल 1992 में शत्रुघ्न सिन्हा ने भाजपा के साथ शुरू किया था अपना सियासी सफर

बता दें कि 1991 में लाल कृष्ण आडवाणी ने गांधी नगर और दिल्ली, दो सीटों से चुनाव लड़े और जीते भी। बाद में आडवाणी ने दिल्ली सीट छोड़ दी और वहां से 1992 में उपचुनावों में शत्रुघ्न सिन्हा को मौका मिला। शत्रुघ्न के सामने बॉलीवुड के सुपरस्टार राजेश खन्ना चुनाव मैदान में थे। लेकिन उस लोकसभा उपचुनाव में राजेश खन्ना ने शत्रुघ्न सिन्हा को हरा दिया था। ‌ कुछ ही दिनों में वह अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी जैसे नेताओं के करीबी हो गए और इसका फायदा उन्हें कई मौकों पर मिला। 1996 में बीजेपी ने शत्रु को राज्यसभा को भेजा। एक कार्यकाल पूरा होने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा को दोबारा राज्यसभा भेजा गया। अटल बिहारी वाजपेयी के विश्वस्त लोगों में शामिल रहे शत्रुघ्न को 2002 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री बनाया गया। 2003 में उन्हें जहाजरानी मंत्री भी बनाया गया था। 2009 में लाल कृष्ण आडवाणी ने उन्हें बिहार की पटना साहिब सीट से उतारा जहां से शत्रुघ्न ने जबरदस्त जीत हासिल की। इसके बाद 2014 में उन्हें फिर से इसी सीट से टिकट दिया गया। यहां से उन्हें जीत मिली। चुनाव जीतने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा को उम्मीद थी कि वह मंत्री बनेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यहीं से शत्रुघ्न सिन्हा की नाराजगी शुरू हो गई। धीरे-धीरे बिहारी बाबू की भाजपा के प्रति दूरियां और बढ़ती चली गई। उसके बाद साल 2019 में शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस में शामिल हो गए। करीब 3 साल रहने के बाद कांग्रेस पार्टी में रहने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने अब फिर से टीएमसी से अपनी सियासी पारी शुरू की है।

शंभूनाथ गौतम