आज के दौर में शहरों में प्रदूषण, बेतहाशा गर्मी, बेरहम ठंड, बारिश से उत्पन्न परेशानी, सैकड़ों बीमारियां, कूड़े-कचरे की दिक्कत, विद्युत-पेयजल आपूर्ति की समस्या, पारिवारिक कलह, चोरी चकारी, लूट-मार और लचर कानून व्यवस्था से न जाने कितने ही लोग परेशान हैं, इसे बयां नहीं किया जा सकता है।

हम या हमारी सरकार जैसे तैसे व्यवस्था करती भी है तो कुछ भी प्रतिफल दिखाई नहीं देता, बल्कि समस्याएं जस की तस ही रहती है। ऐंसा क्यों है कि विशाल रूप से सरकार अगर विकास करती है तो दिखता है समस्या और ज़्यादा बढ़ गयी है, जैसे किसी पार्किंग में 50 वाहनों की जगह बनाई गई, तो अगले ही दिन 100 वाहन वहीं पार्किंग ढूंढते हैं।

एक माह बाद एक हजार वाहन और बढ़ जाते है अगर सरकार एक हजार वाहन की पार्किंग स्थल बनाती है तो दूसरे माह  तीन हजार वाहन और लाइन में खड़े होकर पार्किंग पार्किंग चिल्लाते हुए उन एक हजार के लिए भी समस्या करते हैं जिन्हें पार्किंग उपलब्ध है।

समझ गये होंगें आप कि जब वाहन के लिए इतनी सरदर्दी है, तो इंसानों के लिए क्या नहीं करना पड़ता। वर्तमान के हिसाब सेदेखें तो सरकार जितना भी करेगी उससे तक तक समस्या हल नहीं निकलेगा जब तक इस बारे में सोचा नहीं जायेगा कि हमें किसी स्थान विशेष पर कितनी-कितनी आबादी बसानी है।

शहरों में निर्माण कार्य, बसावट, जंगल, कृषि, पानी आदि की सुविधा एक निश्चित आबादी के लिए तय होनी चाहिए तभी हम संतुलित जीवन जी सकते है। नहीं तो न देहरादून की लीची रहेगी न काशीपुर का चावल।

अनियोजित शहरीकरण और विकास हमें कहीं नहीं ले जा रहा बल्कि सड़ा रहा है जिसकी तपन, दुर्गंध, और जख्म हमारे भविष्य को भी जीर्ण शीर्ण कर सकते है और कर रहे हैं।

स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन आज समाज में बढते जहर के कारण कोई भी सुरक्षित नहीं है। हर घर एक नयी कहानी कहना चाहता है। लेकिन किसी से कह भी नहीं सकता, क्योंकि शहरों में लोगों को एक दूसरे पर विश्वास भी नहीं है।

हमें थोड़ी खुली जगह में जीना सीखना होगा, आजकल शहरों मे पलायित माता पिता अपने बच्चें को बिल्कुल परेशानी में नही देखना चाहते हैं। जाहिर है गांव से शहर गये तो पैसा तो है? सो थोड़ी गर्मी हुई और एसी चालू, मैने बहुत से बड़े घरों के बच्चों को गर्मी में बाहर निकलते ही नही देखा, जिम भी अंदर है, सामान भी आनलाइन, तो बताइये यदि किसी दिन गर्मी में बाहर खड़ा होना पड़े तो कैसे झेल पायेगा, सोचिए। उसका स्वास्थ्य क्या होगा?

एक बार मै दिल्ली किसी माल में अंदर गया, तो बड़ा मजा आया, काफी देर बाद बाहर आया, तो चुपचाप बैठ गया, कितनी गर्मी, फिर थोड़ी देर बाहर ही रहा। जब अनुकूलता आयी घर आया और सोचा कि क्या कारण था, माल के बाहर ज्यादा गर्मी क्यों थी। बहुत दिनों बाद समझ आया वो एसी बाहर गर्म हवा फेंकता है। इसकी भी एक सीमा हो कि किसी शहर को कितने एसी सामान्य रख सकते हैं। अभी तो बेतहाशा वृद्धि जारी है। इंसान बढ़ेंगे तो स्वभाविक है कि हर चीज की मांग बढ़ेगी, प्राकृतिक चीजें घटेंगी, लेकिन किस हद तक घटेंगी बढेंगी। यह तो नीति नियम स्पष्ट होने चाहिए या चलता रहेगा।

आज शहरों में कूड़ा प्रबन्धन सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है। जिससे विकट परेशानियां उत्पन्न हो रही हैं। और जब तक हर 50 किमी पर हम इसका ट्रीटमेंट प्लांट नही लगा लेते तो इसके गम्भीर परिणाम आ सकते है। उन खतरों से शायद हम अंजान हैं।

पंकज सुंदरियाल की कलम से