डॉ. राजेंद्र कुकसाल
जलवायु में दशकों, सदियों या उससे अधिक समय में होने वाले दीर्घकालिक परिवर्तनों को जलवायु परिवर्तन कहते हैं। IPCC (Inter governmental Panel on climate change) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल संयुक्त राष्ट्र संघ का अधिकारिक पैनल है, जो वैज्ञानिक आधार पर जलवायु में बदलाव के प्रभावों और भविष्य के जोखिमों का नियमित मूल्यांकन करता है।
बढ़ते औद्योगिकरण, वाहनों की संख्या में वृद्धि, पैट्रोलियम ईंधन एवं ऊर्जा की बढ़ती खपत, जंगलों में आग, जंगलों का दोहन, बढ़ती आवादी, खेती में अधिक रासायनिक, कीट व्याधिनाशक दवाइयों का प्रयोग व अन्य कारणों से ग्रीन हाउस गैसों (कार्वन डाइ ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, मीथेन आदि) के उत्सर्जन में इजाफा हुआ है. जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। वैश्विक तापमान में हो रही इस वृद्धि को ही ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। पिछले कुछ सालों से पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों, मीडियाकर्मियों, जनप्रतिनिधियों तथा शिक्षित समाज के बीच ग्लोबल वार्मिंग एवं उसके कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन पर बहस शुरू हुई है। इस बहस में धरती पर जलवायु परिवर्तन की संभावना से लेकर उसके मानव सभ्यता एवं समस्त जीवधारियों पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव के बारे में विभिन्न लोग अपनी राय जाहिर कर रहे हैं और अपनी-अपनी समझ के अनुसार संभावित परिवर्तनों पर अपना दृष्टिकोण रख रहे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में बदलाव आया है।
बर्ष 2010-11में आक्सफॉम इण्डिया के सहयोग से मांउट वैली डैवलपमेंट एसोसिएशन द्वारा टिहरी गढ़वाल के तीन विकास खण्डों भिलंगना, जाखणीधार एवं कीर्तिनगर की बीस ग्राम सभाओं में जलवायु परिवर्तन से मौसम में बदलाव पर अध्ययन किया गया। रिपोर्ट के अनुसार बारिश के समय में अन्तर हुआ है.
पहले जुलाई, अगस्त और दिसंबर, जनवरी में अधिक बर्षा होती थी, लेकिन अब अगस्त सितम्बर और जनवरी फरवरी में अधिक बरिश हो रही है। पहले 7-8 दिनों तक लगातार बारिश होती थी अब एक से दो दिन तक ही लगातार बारिश होती है। बारिश का स्वरूप पहले से बदला है वर्तमान में 2-3 घंटों में जितनी बारिश हो रही है पहले 2 दिनों के अन्दर होती थी बारिश बहुत तेज व मोटी बूंदों वाली हो रही है। औसत बारिश में कमी हुई है।
पहले बादल फटने की घटनाएं कम होती थी अब बादल अधिक फट रहे हैं। ओलावृष्टि अधिक हो रही है। पहले घाटी वाले स्थानों में भी 1 फीट तथा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 3-4 तक बर्फ पड़ जाती थी, लेकिन अब घाटी वाले स्थानों पर बर्फ़ नहीं पडती है, साथ ही ऊंचाई वाले स्थानों में भी कम ही बर्फ देखने को मिलती हैं।
बर्षा कम होने से 50% जल स्रोत सूख गए हैं. बचे स्रोतों में पानी काफी कम हुआ है, जो स्रोत पहले 20 लीटर पानी प्रति मिनट देते थे वे स्रोत आज 1 लिटर प्रति मिनट से भी कम औसत पानी दे रहे है। हिमालय जो पहले बर्ष भर बर्फ से ढके रहते थे, अब कम बर्फ देखने को मिलती हैं। ग्लेसियर पीछे चले गए हैं। पाला अधिक गिरने लगा है रात का तापमान पहले से अधिक कम होने से रात अधिक ठंडी एवं दिन अधिक गर्म होने लगे हैं।
हिमालय क्षेत्र कृषि प्रधान है इन क्षेत्रों में कृषि, बर्षा/मौसम पर आधारित है। मौसम परिवर्तन का कृषि पर सीधा प्रभाव पड़ा है। जलवायु परिवर्तन का हिमालय क्षेत्र की जल, जंगल, जमीन तीनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से हमें कृषि कार्यों में वैज्ञानिक तकनीक एवं परमपरागत ज्ञान के सहारे आगे बढ़ना होगा। स्थानीय/ देशी बीजों पर निर्भरता, बीज वुवाई एवं पौध रोपण के समय में परिवर्तन, टपक सिंचाई पद्धति का उपयोग, मल्चिंग, जैविक/प्राकृतिक खेती, संरक्षित खेती (पौलीहाउस) ऐन्टी हैल नैट का उपयोग आदि पर ध्यान देना होगा।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने हेतु सरकार व समाज को मिल कर सामुहिक प्रयास करने होंगे।