देश में राजनीतिक दलों के नेताओं पर आरोप लगते रहे हैं। घोटाले, भ्रष्टाचार और घूसखोरी समेत कई मामलों में नेता घिरे रहे। लेकिन देश में एक ऐसे भी नेता हुए हैं जो ईमानदारी और सरल स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। आज 11 जनवरी को देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि है। शास्त्री जी को साफ-सुथरी छवि और सादगी पूर्ण जीवन जीने के लिए आज भी याद किया जाता है। राजनीतिक या निजी जीवन में भी उन पर कभी कोई दाग नहीं लगा। प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए भी सादा जीवन जीते रहे। हम बात कर रहे हैं देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की। आज शास्त्री जी की पुण्यतिथि है। 11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री जी का निधन हो गया था। शास्त्री ने ही ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था। वो करीब 18 महीने तक प्रधानमंत्री रहे। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में हुआ था। उनकी कार्यक्षमता, सत्यनिष्ठा, और विनम्र स्वभाव के लिए याद किया जाता है। स्वतंत्रता संग्राम में लाल बहादुर शास्त्री कई बार शास्त्री भी गए। 1930 में हुए ‘नमक सत्याग्रह’ के चलते उन्हें ढाई साल जेल में रहने पड़ा। इसके बाद फिर स्वतंत्रता आंदोलन की वजह से उन्हें 1 साल जेल की सजा हुई। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें 4 साल तक जेल में रहने पड़ा। बाद में 1946 में उन्हें जेल से रिहा किया गया था। 9 बार शास्त्री जेल गए।
देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री, जय जवान जय किसान का दिया था नारा
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे पीएम बने और उन्होंने देश को जय जवान जय किसान का नारा दिया। पीएम नेहरू के बाद प्रधानमंत्री पद की दौड़ में लाल बहादुर शास्त्री और मोरारजी देसाई का नाम सबसे आगे था लेकिन देश को शास्त्री जी प्रधानमंत्री के रूप में मिले और उन्होंने इस पद को बखूबी निभाया। 9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री ने भारत के प्रधानमंत्री की शपथ ली थी और अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने देश की विकास यात्रा को आगे बढ़ाने का काम किया। उन्होंने देश में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान चलाया, जिसे ‘श्वेत क्रांति’ के रूप में जाना जाता है। साथ ही ‘हरित क्रांति’ के जरिए देश में अन्न का उत्पादन बढ़ा। उनके नेतृत्व में भारत ने 1965 की जंग में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। उजबेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
शंभू नाथ गौतम