राजभाषा बनाम राष्ट्रभाषा : भाषा मनुष्य को एक दूसरे से जोड़ती है। हमारी अभिव्यक्ति उसी भाषा में सशक्त होती है जिस भाषा में हम पलते-बढ़ते हैं। ऐसे में हम देखें तो हिंदी एक ऐसी भाषा के रूप में निकल कर आती है जो भारत के एक बड़े भू-भाग में बोली जाती है और पूरे भारत में एक संपर्क भाषा के रूप में कार्य कर रही है।

भाषा के इसी महत्व को समझते हुए संविधान सभा में एक लंबी बहस के बाद 14 सितंबर 1949 को संवैधानिक तौर पर ‘हिंदी’ को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया गया। संविधान में अनुच्छेद 343 से लेकर 351 तक में राजभाषा से संबंधित व्यवस्था की गई।

उस समय भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा, “आज पहली ही बार ऐसा संविधान बना है जबकि हमने अपने संविधान में एक भाषा रखी है, जो संघ के प्रशासन की भाषा होगी। इस अपूर्व अध्याय का देश के निर्माण पर बहुत प्रभाव पड़ेगा।”

उस समय ऐसी व्यवस्था की गई थी कि आने वाले कुछ वर्षों में अंग्रेजी को पूर्णतः शासकीय भाषा से हटा कर हिंदी भाषा को प्रशासन के भाषा बना दिया जाएगा। परंतु दृढ़ इच्छाशक्ति और लचर व्यवस्था के चलते यह कार्य आज तक संपन्न नहीं हो पाया है।

इसी के चलते हिंदी राजभाषा बनने के बावजूद अभी तक राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है। कुछ लोगों के राजनैतिक स्वार्थ के कारण हिंदी अभी भी राष्ट्रभाषा के लिए जूझ रही है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बहस में राष्ट्र स्पष्टता दो भागों में बंट जाता है – हिंदी भाषी प्रदेश और गैर-हिंदी भाषी प्रदेश, जबकि भाषा के आधार पर यह वर्गीकरण निराधार है। भाषा तो बहता नीर है। उसका किसी से कोई वैमनस्य नहीं। वह तो मानव मस्तिष्क की सरल, सहज अभिव्यक्ति है। हिंदी दिवस के अवसर पर मैं प्रशासन के सभी शीर्षस्थ लोगों से पुरजोर सिफारिश करती हूं कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए क्योंकि महात्मा गांधी के शब्दों में “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।” आजादी के 75 वर्षों के बाद ‘अमृत महोत्सव’  के बावजूद अगर हम अपने राष्ट्र को एक भाषा नहीं दे पाए हैं तो इसमें दोष किसका है?

प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है, इस दिवस पर हिंदी भाषा से संबंधित अनेक गतिविधियां, सम्मेलन, सेमिनार और गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है, जिससे हिंदी के प्रचार-प्रसार में सहायता मिल सके। विश्व में बोली जाने वाली हिंदी तीसरी बड़ी भाषा के रूप में उभरी है। अब समय आ गया है कि तमाम तरह के भाषा-भेद को दरकिनार कर हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन कर दिया जाना चाहिए।

राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर

  • राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है, जबकि राष्ट्रभाषा स्वाभाविक रूप से सृजित शब्द इस प्रकार राजभाषा प्रशासन की भाषा है तथा राष्ट्रभाषा जनता की भाषा।
  • समस्त राष्ट्रीय तत्वों की अभिव्यक्ति राष्ट्रभाषा में होती है, जबकि केवल प्रशासनिक अभिव्यक्ति राजभाषा में होती है।
  • राजभाषा की शब्दावली सीमित है, जबकि राष्ट्रभाषा की शब्दावली विस्तृत।
  • राजभाषा, नियमों से बंधी होती है, जबकि राष्ट्रभाषा स्वतंत्र या मुक्त प्रकृति की होती है।
  • राजभाषा में शब्दों का प्रवेश, निर्माण अथवा अनुकूलन (विशेषकर तकनीकी प्रकृति के शब्दों का) विद्वानों एवं विशेषज्ञों की समिति की राय से किया जाता है, जबकि राष्ट्रभाषा में शब्द समाज से आते हैं तथा प्रचलन के आधार पर रूढ़ होकर मान्यता प्राप्त करते हैं। इसके निर्माण में सभी का हाथ होता है।
  • राजभाषा, हिंदी भाषा का प्रयोजन मूलक रूप है इसलिए तकनीकी सृजन है। जबकि राष्ट्रभाषा, हिंदी भाषा का स्वाभाविक तथा पारंपरिक रूप है।
  • राजभाषा के प्रयोग का क्षेत्र सीमित होता है, जबकि राष्ट्रभाषा का क्षेत्र इतना व्यापक कि उसका व्यवहार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी होता है।
  • राजभाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग उत्तरोत्तर अंग्रेजी की जगह पर हो रहा है जबकि राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग स्वाभाविक स्वरूप से देश-विदेश सर्वत्र हो रहा है।

सरोज पंत

शिक्षिका, लेखिका, समाजसेवी