National Mathematics Day : आज 22 दिसम्बर है और हमारे देश में हर साल 22 दिसंबर को नेशनल मैथमेटिक्स डे (राष्ट्रीय गणित दिवस) के रूप में मनाया जाता है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साल 2012 में भारत के महान गणितज्ञ रामानुजन के सम्मान में उनके जन्मदिन 22 दिसंबर को नेशनल मैथमेटिक्स डे के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी।
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को तमिलनाडु के एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी मां का नाम कोमलताम्मशल और पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था। रामानुजन के जन्मा के बाद इनका पूरा परिवार कुंबाकोनम में बस गया, जहां रामानुजन अपने पिता के साथ एक कपड़े की दुकान में काम करने लगे। रामानुजन ने कुंभकोणम के सरकारी कॉलेज में पढ़ाई की थी, लेकिन गैर-गणितीय विषयों में उनकी रुचि न होने से वह 12वीं की परीक्षा में लगातार दो बार फेल हो गए थे। जिस स्कूल में वो 12वीं में दो बार फेल हुए आज उसका नाम रामानुजन के नाम पर है।
रामानुजन बचपन में सामान्य बच्चों की तरह ही थे। जब उनका स्कूशल में एडमिशन हुआ, तो वहां पढ़ाने का घिसा-पिटा अंदाज उन्हें बिल्कुजल भी पसंद नहीं आया। हालांकि इसके बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और प्राइमरी एग्जाम में पूरे जिले में टॉप किया। रामानुजन जब 15 साल के थे, तब उन्होंने ‘ए सिनॉपसिस ऑफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइट मैथमेटिक्स ‘ नामक गणित की बेहद पुरानी बुक को पूरा पढ़ लिया था। इस किताब में हजारों थियोरम थे, जो उन्हें पूरी तरह याद हो गए। उनकी इस प्रतिभा का ही फल था कि, उन्हें अपनी आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉनलरशिप मिली गई।
रामानुजन पढ़ाई तो सभी विषयों की करते थे, लेकिन उनका मन सिर्फ मैथ्स में लगता था। दूसरे विषय इन्हें याद ही नहीं होते थे, जिसके कारण उन्हें पहले गवर्नमेंट कॉलेज का फिर यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास की स्कॉलरशिप गंवानी पड़ गई। हालांकि इसके बाद भी मैथ्स के प्रति रामानुजन का लगाव कम नहीं हुआ। वर्ष 1911 में इंडियन मैथमेटिकल सोसाइट के जर्नल में रामानुजन का 17 पन्नों का एक पेपर पब्लिैश हुआ, जो बर्नूली नंबरों पर आधारित था। रामानुजन ने 1912 में मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में एक क्लर्क के रूप में काम करना शुरू किया। यहीं पर पहली बार उनके एक सहकर्मी ने उनकी गणित की प्रतिभा को पहचाना, जो खुद भी एक गणितज्ञ था। उस सहकर्मी ने रामानुजन को ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएच हार्डी के पास जाने को कहा।
इस बीच 16 साल की उम्र में रामानुजन की शादी जानकी अम्माल से हो गई। मगर गणित से प्यार तब भी कम न हुआ। इसी बीच, लेटर के जरिए कुछ उन्होंने कुछ फॉर्मूला कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएच हार्डी को भेजा। हार्डी उनसे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने रामानुजन को लंदन बुला लिया और उनके मेंटर बन गए। दोनों ने मिलकर गणित के कई रिसर्च पेपर पब्लिश किए। उनकी रिसर्च को अंग्रेजों ने भी सम्मान दिया।
ट्रिनिटी कॉलेज से जुड़ने के बाद, रामानुजन को 1916 में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री मिली। 1917 में उन्हें लंदन मैथमेटिकल सोसाइटी में जगह दी गई। इसके अगले साल उन्हें गणित पर उनकी रिसर्च के लिए रॉयल सोसायटी में जगह मिली। अक्टूबर 1918 में रामानुजन ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने।
रामानुजन की गणितीय प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महज 32 साल के जीवन में उन्होंने गणित के 4 हजार से ज्यादा ऐसे प्रमेय (थ्योरम) पर रिसर्च की थी, जिन्हें समझने में दुनियाभर के गणितज्ञों को भी सालों लग गए।
1919 में वह लंदन से भारत लौट आए। रामानुजन को टीबी हो गई और एक साल बाद ही 1920 में उनका निधन हो गया। जिस महान गणितज्ञ ने पूरी दुनिया पर अपनी प्रतिभा से छाप छोड़ी थी, उसे मरने के बाद अपनों के ही बीच तिरस्कार झेलना पड़ा। उनकी मौत के बाद पंडितों ने उन्हें मुखाग्नि देने से इसलिए इनकार कर दिया था, क्योंकि उन्होंने समुद्री यात्रा से लौटने के बाद प्रायश्चित के लिए रामेश्वरम् की यात्रा नहीं की थी।
रामानुजन ने अपने छोटे से जीवन में बिना किसी सहायता के हजारों रिजल्ट्स, इक्वेशन के रूप में संकलित किए। इनमें प्रमुख रूप से रामानुजन प्राइम, रामानुजन थीटा फंक्शन, विभाजन सूत्र और मॉक थीटा फंक्शन, डाइवरजेंट सीरीज सिद्धांत, 1729 नंबर हार्डी-रामानुजन और जेटा फंक्शन के कार्यात्मक समीकरणों पर उनके द्वारा किया गया काम प्रमुख है।
बहुत कम समय में इस दुनिया को छोड़ देने वाले रामानुजन ने अपने काम से गणितीय इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया। गणित के क्षेत्र में किसी तरह की औपचारिक प्रशिक्षण न लेने के बाद भी रामानुजन ने कई ऐसी खोज की, जिससे पूरी दुनिया हतप्रत रह गई। श्रीनिवास रामानुजन को गणित के क्षेत्र में गौस, यूलर और आर्किमिडीज के बराबर दर्ज मिला हुआ है।
रामानुजन को भगवान में बहुत विश्वास था। उनके द्वारा दिए गए फॉर्मूले की खोज के बारे में जब उनसे पूछा जाता था तो, वो कहते थे कि ईष्ट देवी नामगिरी देवी की कृपा से उन्हें यह फॉर्मूला मिला। रामानुजन कहते थे कि, ‘मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार न मिलता हो।’
प्रसिद्ध गणितज्ञ नीना गुप्ता को मिला इस वर्ष का रामानुजन पुरस्कार
इंडियन स्टैटिस्टकल इंस्टीट्यूट (ISI) कोलकाता की प्रोफेसर और प्रसिद्ध गणितज्ञ नीना गुप्ता को गणित के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक रामानुजन पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार पाने वाली नीना गुप्ता चौथी भारतीय हैं। नीना को विकासशील देशों के युवा गणितज्ञों के लिए जारिस्की रद्दीकरण समस्या की दिशा में उनके काम के लिए डीएसटी-आईसीटीपी-आईएमयू रामानुजन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
नीना गुप्ता ने विकासशील देशों के युवा गणितज्ञों के लिए डीएसटी-आईसीटीपी-आईएमयू रामानुजन पुरस्कार जीता है। उन्हें एफाइन बीजीय ज्यामिति और कम्यूटेटिव बीजगणित में अच्छे काम करने और विशेष रूप से स्पेस के लिए जारिस्की रद्दीकरण समस्या को हल करने के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया है।