People got excited after watching the movie “Pithrikuda” in Jaipuria Mall of Indirapuram.

Garhwali Film Pithrikuda: उत्तराखंड की अनूठी लिंगवास परम्परा पर बनी उत्तराखंडी फीचर फिल्म पितृकुड़ा आज से जयपुरिया मॉल (इंदिरापुरम) के RR सिनेमा हॉल में प्रदर्शन के लिए लग गई है। आज यानी 1 मार्च 2024 को दोपहर बाद करीब 3 बजे क्षेत्र के प्रतिष्ठित समाजसेवियों, कलाप्रेमियों द्वारा फ़िल्म की सह नायिका आरुषि जुयाल की उपस्थिति में रिबन काटकर फिल्म के पहले दिन के शो का शुभारंभ किया गया।

उद्घाटन अवसर पर समाजसेवी खुशहाल बिष्ट, सुशीला रावत, उत्तराखंडी फिल्मों के निर्माता/निर्देशक राकेश गौड़, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सतीश कालेश्वरी, के एन डंगवाल, भाजपा की वरिष्ठ नेत्री बिमला रावत, भगवती प्रसाद जुयाल, विनोद कबटियाल, जगमोहन सिंह रावत, संजय चौहान, हरीश उनियाल, सत्येन्द्र नेगी, अंजू भंडारी, अन्नू राणा, रेनू घिल्डियाल तथा निभा फाउंडेशन की टीम समेत कई सम्मानित लोग उपस्थित रहे।

भावनात्मक रिश्तों पर बनी मार्मिक फिल्म को देखकर दर्शक भावुक हो गए। फिल्म देखकर निकले रंगमंच के मंजे हुए कलाकार जगमोहन सिंह रावत ने फिल्म के बारे में बताया कि पितृकुड़ा एक पारिवारिक फिल्म है जो भावानात्मक रिश्तों पर बनी है। फिल्म में पितरों की खुशी एवं नाराजगी के असर को दर्शाया गया है। उन्होंने बताया कि जिस तरह आज की पीढ़ी अपने उत्तराखण्ड (पहाड़) से विमुख सी हो गई है, उनके लिए “पितृकुड़ा” शब्द भ्रमित करने वाला होगा, वे इस शब्द से स्वयं को नही जोड़ पायेंगे। अतः उनके लिये फिल्म के निर्माता प्रदीप भंडारी द्वारा लिखित, निर्देशित फ़िल्म “पितृकुड़ा” सार्थक सिद्ध हो सकती है। आज की पीढ़ी को बहुत आसान और स्प्ष्ट शब्दों में बताया गया है, इस शब्द का शब्दार्थ, और साथ ही जाने वाली पीढ़ी को भी चेताया गया है कि अपने बूढ़े हो चले जीवित माता-पिता का असगार न ले और न ही अपनी मातृ भूमि को भूले… वरना हमारे पितर जानते है कि कैसे अपनी संतानों को बुलाना है उन्हें पितरों की भूमि में।

उन्होंने बताया कि सभी कलाकारों ने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है, वरिष्ठ कलाकार नेपाली रामु बने भाई राजेश जोशी ने तो कमाल का काम किया है। अंत मे नेपाली बने राजेश जोशी के माध्यम से फ़िल्म निर्माता ने जो संदेश दिया है, वह मन को छू सा गया है। उस संदेश को सुनने व पूरी फ़िल्म को देखने आप सभी को सिनेमा हॉल में आना होगा।

फिल्मकार राकेश गौड़ ने बताया कि पर्वतीय बिगुल फिल्मस् के बैनर तले बनी गढ़वाली फिल्म पितृकुड़ा परिवार के भावनात्मक रिश्तों पर बनी बहुत मार्मिक फिल्म है, जो बड़े बुजर्गों के प्रति प्रेम और पहाड़ में मौजूद अपनी मूल जड़ों से जुड़े रहने के लिए दर्शकों के दिलों को छूती है। उन्होंने कहा कि फिल्म दादा-दादी से लेकर पोता-पोती तक हर उम्र के दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाली है।

वहीँ अन्नू राणा ने बताया कि फिल्म पहाड़ की लोक परंपराओं को दर्शाती है। इससे नई पीढ़ी को जरूर देखना चाहिए ताकि वे अपने पित्रों का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। फिल्म में पलायन के दर्द को भी दिखाया गया है। साथ ही पहाड़ों में नेपालियों की भूमिका को भी विशेष स्थान दिया गया है। यह फिल्म निश्चित की लोगों के दिलों को छुएगी।

बता दें कि पर्वतीय बिगुल फिल्मस् के बैनर तले बनी गढ़वाली फिल्म पितृकुड़ा इससे पहले बीते 2 फरवरी को देहरादून के रिटज सिनेमा हॉल में रिलीज की गई थी। यहाँ फिल्म को अपार सफलता मिलने के बाद अब इस फिल्म को दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले प्रवासी उत्तराखंडियों के लिए एक मार्च से इंदिरापुरम (गाजियाबाद) के जयपुरिया मॉल (RR सिनेमा) में प्रदशित किया गया है। कल से इस फिल्म का प्रदर्शन प्रतिदिन दोपहर बाद 3.30 बजे से होगा। हर रोज केवल एक ही शो चलेगा। टिकट की बात करें तो फिल्म का टिकट रुपये 120/- से 150 /- तक रखा गया है।

क्या है पितृकुड़ा (लिंगवास) परम्परा

देवभूमि उत्तराखण्ड की अपनी अनेक दुलर्भ परम्पराएं और संस्कार हैं। जिसके लिए वह दुनिया में एक विशिष्ट स्थान रखती है। इन्हीं में से एक अहम परम्परा है अपने परिवार के दिवंगत परिजनों का ‘पितृकुड़ा’ (पितरों का घर) में लिंग स्थापना संस्कार, जिसे लिंगवास भी कहा जाता है। ‘पितृकुड़ा’ अर्थात पत्थरों से बना एक छोटा सा घरनुमा स्थल। ‘पितृकुड़ा’ संस्कार विशेष रूप से उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र में निभाया जाता है।

देवी देवताओं की भांति पूजा जाता है

केदारखण्ड में यह लोक मान्यता है कि यदि मृतक व्यक्ति को उचित समय पर विधि विधान से ‘पितृकुड़ा’ में स्थापित नहीं किया गया तो उसकी आत्मा को मनुष्य योनि से मुक्ति नहीं मिलती है और वह भटकती रहती है तथा नाराज होने पर पितृदोष भी करती है। लोक मान्यता है कि पितृकुड़ा में स्थापित होने के बाद उनके पूर्वज पितर देवता के रूप में परिवार जनों की रक्षा करते हैं और घर में सुख शान्ति और वैभव बढ़ाते हैं। फिल्म के निर्देशक प्रदीप भण्डारी का कहना है कि पहाड़ में पितरों को वर्तमान दौर में अपने मूल से दूर होते पहाड़ वासियों एवं नई पीढ़ी के समक्ष पितृकुड़ा की विशेषता, महत्वता और उसकी दिव्यता को परभाषित एवं प्रदर्शित करना अत्यन्त आवश्यक हो गया है। इसी उद्देश्य से उन्होंने एक कहानी के माध्यम से पितृकुड़ा के महत्व को बताया है, जो काफी लोकप्रिय हो गयी है।

फिल्म के मुख्य कलाकारों में हैं राजेश जोशी, पदम गुसांई, प्रदीप भण्डारी, शुभ चन्द्रा, शिवानी भण्डारी, सुषमा व्यास, कोमल नेगी राणा, आयुषी जुयाल, बीनीता नेगी, अनामिका राज, गोकुल पंवार, गम्भीर जयाड़ा, बृजेश भट्ट, रवि नेगी, दीपक रावत, शिव कुमार, आरपी बडोनी आदि हैं। फिल्म के गीतों को तीन प्रमुख संगीतकारों संजय कुमोला, अमित वी। कपूर तथा सुमित गुसांई ने संगीत दिया है। जबकि गीतों को जितेन्द्र पंवार, पदम गुसांई, संजय कुमोला, प्रीती काला, प्रेरणा भण्डारी नेगी, रवि गुसांई और राजलक्ष्मी ने अपने स्वरों से सजाया है।