पहाड़ का जीवन हमेशा से पहाड़ के मानिदं कठोर रहा है। पहाड़ मे जीवन की आधार या यूं कहें धुरी तो आज भी महिला ही हैं। सुबह से लेकर देर शाम तक लगातार बिना थके हाड-तोड मेहनत करती महिला। कहा जाता है कि हमारे पहाड़ों की अर्थव्यवस्था मनीआर्डर आधारित अर्थव्यवस्था है, दूसरी महिला ही है जो परिवार की आर्थकी का जिम्मा ढो रही है। पहाड़ी भागों के प्रति अब तक केन्द्र व राज्य सरकारों की नीतियां सौतेली रही हैं। विकास के नाम पर कुछ भी नही हुआ, राज्य गठन के बाद सड़कों के मामले मे थोड़ा बहुत सुधार हुआ है। खेती वर्षा आधारित है, खेती को आज भी यहाँ रोजगार नही माना जाता या माना जा सकता है। स्वास्थ्य सेवायें, झोलाछाप डाक्टरों के भरोसे चल रही है। आये दिन वन्य जीव यहाँ के लोगों व उनके बच्चों को अपना शिकार बना रहे है। हिंसक वन्य जीव भी पहाड़ी गांवो से मानव विस्थापन की एक बड़ी वजह हैं। पहाड़ी भागों मे सरकारी स्कूलों की हालत दयनीय है। अधिकांश शिक्षक शिक्षिकाएं मैदानी भागों से पहाड़ी भागों के स्कूलों मे रोज आवागमन कर रहे हैं। एक उदारहण कोटद्वार से ही लें अधिकांश टीचर पौड़ी से बीस किलोमीटर पहले तक कोटद्वार से अप डाउन कर रहे है। एक दिन मे लगभग ढाई सौ किमी तक अप-डाउन समय आवागमन मे ही चला जाता है। पढ़ाई राम भरोसे, नौनिहालों का भविष्य तबाह हो रहा है। पहाड़ों मे खेती परिवार का पालन करने की गारंटी नही है, तो महिलाओं को पहाड़ छोडने मे प्रोत्साहन करने वाले कारक के रूप मे देखना भी थोडा सही नही माना जायेगा। सरकार व पहाड़ी युवा दोनो को मिलकर पहाड़ों को पुन:जींवत करने मे बराबर पहल करनी होगी। सुविधा भोगी टीचरों की पहिचान कर उनके अन्तर्जनपदीय तबादले करने होंगें। पहाडों मे हिसंक जीवों से मानव जीवन को बचाने के लिए जो भी किया जा सकता है, वह सरकार करे, स्वास्थ्य सुविधाओं मे सुधार, झोलाछाप डाक्टरों पर कार्यवाही हो। आज आवश्यकता है, पहाड़ों मे महिलाओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी जाँच के लिए एक विशेष योजना बनायी जाये और इसकी सुविधा समय-समय पर प्रत्येक गाँव मे उपलव्ध करायी जाये। इसके अलावा सरकार के स्वरोजगार के नारे को सार्थक करते हुए हर पर्वतीय महिला को स्वावलंबी बनाया जाए। अगर नारी स्वस्थ, सुखी, सम्पन्न, संतुष्ट व प्रसन्न होगी तो पहाड़ की मुस्कराहट को कोई नहीं रोक सकता है। रोजगार व विशेषकर पर्यटन से रोजगार जैसे कार्यक्रमो् से युवाऔं को जोड़ा जाए।
अजय तिवाडी
देवभूमि संवाद