Bageshwar assembly by-election 2023

दिनेश शास्त्री

Bageshwar assembly by-election: बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव बेशक अभी प्रीमेच्योर स्थिति में है, लेकिन नामांकन से पूर्व की स्थिति दिलचस्प तो है ही। कांग्रेस यहां अपनों की कीमत पर दूसरे दल से आयातित प्रत्याशी पर दांव खेलने जा रही है। एक बार बसपा और एक बार आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके बसंत से पार्टी में हरियाली लाने की कोशिश कितनी सफल होगी, इसका पता तो आठ सितंबर को मतगणना के बाद चलेगा। लेकिन कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशी रहे रंजीत दास के भाजपा में शामिल होने के बाद परसेप्शन की लड़ाई कांग्रेस हार चुकी है। अभी तक के संकेतों के अनुसार कांग्रेस जिस कारोबारी पर दांव खेलने जा रही है, पिछले दो चुनावों में उसकी निजी उपस्थिति बहुत ज्यादा उत्साहजनक नहीं दिखी है।

भाजपा का इस उपचुनाव को लेकर गणित क्या है, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है लेकिन कुमाऊं की राजनीतिक हलचलों पर पैनी नजर रखने वाले पत्रकार नवीन जोशी मानते हैं कि कांग्रेस गोत्र के पूर्व पराजित प्रत्याशी पर भाजपा शायद ही दांव खेले। जोशी के अनुसार रंजीत दास को अगले चुनाव अथवा आगामी निकाय चुनाव के लिए रिजर्व रखा गया है लेकिन उसका लाभ प्रतिष्ठा के इस चुनाव में उठाया जाएगा। जाहिर है टिकट दिवंगत चंदन राम दास के परिवार से ही किसी को मिल सकता है। सूत्रों की मानें तो भाजपा ने आलाकमान के पास जिन तीन नामों का पैनल भेजा है, उसमे चंदनराम दास के परिवार को ही पहले स्थान पर रखा है। आखिर भाजपा दिवंगत नेता के प्रति सहानुभूति को क्यों नहीं भुनाना चाहेगी।

भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो पिछले चुनाव में कांग्रेस के पराजित प्रत्याशी रंजीत दास को जब यह भरोसा हो गया कि पार्टी इस बार उन्हें टिकट नहीं दे रही है तो उन्होंने भाजपा का दामन थामने में ही भलाई समझी, ताकि भविष्य को सुनिश्चित किया जा सके। पार्टी के रुख को भांपने के बाद ही उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहने का निर्णय लिया। इसके साथ ही बागेश्वर उपचुनाव का परिदृश्य भी बदल सा गया है।

अब एक नजर बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र के पिछले साल हुए विधान सभा निर्वाचन पर डालें। बागेश्वर के लोगों ने 14 फरवरी 2022 को उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए मतदान किया था और परिणाम 10 मार्च को घोषित  हुए थे। चंदन राम दास ने इस सीट पर बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी।

उससे पहले 2017 में भी पांच उम्मीदवार मैदान में थे। उस समय भी भाजपा के चंदन राम दास ने ही यहां से जीत दर्ज की। उस समय एकतरफा मुकाबला था जिसमें भारतीय जनता पार्टी के चंदन राम दास ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बालकृष्ण को भारी अंतर से हराकर आसानी से चुनाव जीत लिया था। 2012 में भी भाजपा के चंदन राम दास ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राम प्रसाद टम्टा को हराया था। उससे पहले के चुनाव में भी चंदन राम दास ही जीते थे। यानी 2007 के बाद से यह सीट भाजपा का अभेद्य किला बनी हुई है।

आगामी 17 अगस्त तक इस सीट के लिए नामांकन होना है, 5 सितंबर को वोटिंग और 8 सितंबर को नतीजे घोषित होंगे। ऐसे में अब इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच एक बार फिर से टक्कर देखने को मिल सकती है।

भूगोल की दृष्टि से देखें तो करीब 665 वर्ग किलोमीटर में फैला ये निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। यहां करीब सवा लाख मतदाता हैं। बरसात के मौसम में कितना मतदान होगा, उसका अनुमान फिलहाल लगा पाना मुश्किल है लेकिन उम्मीद की जा सकती है कि तब तक मौसम सुधरेगा।

बहरहाल भाजपा और कांग्रेस में दूसरे दलों के नेता अपने पाले में करने का प्रयास चल रहा है। इससे चुनाव परिणाम पर जो भी असर पड़े, किंतु परसेप्शन तो बन ही रहा है और परसेप्शन के युद्ध में अभी तक कांग्रेस पिछड़ी हुई है। जिस नेता पर कांग्रेस दांव लगाने जा रही है, सर्व समाज में उसकी स्वीकार्यता होगी, इसमें सदेह तो है ही। बाकी फैसला तो मतदाताओं के हाथ में है। वैसे कांग्रेस के पास इस उपचुनाव के रूप में बेहतरीन मौका था और उसके पास सर्व स्वीकार्य नेता भी थे। ऐसे में सवाल वॉक ओवर का भी उभरने की आशंका से कैसे इनकार कर सकते हैं।