Yagyopavit Sanskar : मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को हरिद्वार गंगा तट पर अपने दोनों बेटों का यज्ञोपवीत संस्कार कराया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शुक्रवार देर रात परिवार सहित गोपनीय ढंग से हरिद्वार पहुंचे। यहां आज सुबह गंगा घाट पर उनके बड़े पुत्र दिवाकर धामी और छोटे पुत्र प्रभाकर धामी का यज्ञोपवीत संस्कार पूरे विधि विधान के साथ कराया गया। इस दौरान सीएम के साथ उनकी पत्नी सहित परिवार के लोग मौजूद रहे। इस दौरान सीएम ने अपने तीर्थ पुरोहित के पास अपनी बही वंशावली में नाम लिखवाया।
यज्ञोपवीत संस्कार और उसका महत्व
सनातन धर्म में कुल 16 संस्कार हैं जिन्हें क्रमशः गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारंभ, केशांत, समावर्तन, विवाह एवं अन्त्येष्टि कहा जाता हैI हिंदू धर्म के अनुसार इन 16 संस्कारों का हमारे जीवन में बहुत ही महत्व माना गया है. इन्हीं 16 संस्कारों में से एक प्रमुख संस्कार है ‘यज्ञोपवीत संस्कार’। यज्ञोपवीत का अर्थ है यज्ञोपवीत = यज्ञ +उपवीत, अर्थात् जिसे यज्ञ करने का पूर्ण रूप से अधिकार हो। इसे उपनयन या जनेऊ संस्कार भी कहते हैं। संस्कृत भाषा में जनेऊ को ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है। जनेऊ सूत से बना एक पवित्र धागा होता है, जो ‘यज्ञोपवीत संस्कार’ के समय पुरोहित के द्वारा पूजन व मन्त्रों के द्वारा अभिमंत्रित करके धारण कराया जाता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज में ‘ यज्ञोपवीत संस्कार’ की परंपरा है। बालक की आयु 10-12 वर्ष का होने पर उसका यज्ञोपवीत किया जाता है। प्राचीन काल में जनेऊ पहनने के पश्चात ही बालक को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलता था। यह प्राचीन परंपरा न केवल धर्म के अनुसार वरन वैज्ञानिक कारणों से भी बहुत महत्व रखती है।
यज्ञोपवीत (जनेऊ) तीन धागों वाला सूत से बना पवित्र धागा होता है। जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है, यानी इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे। यह एक धागा नहीं है बल्कि इसके साथ विशेष मान्यताएं भी जुड़ी हैं। जनेऊ धारण करने के बाद व्यक्ति को अपने जीवन में नियमों का पालन करना पड़ता है। उसे अपनी दैनिक जीवन के कार्यों को भी जनेऊ को ध्यान में रखते हुए ही करना होता है। यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण किये बिना किसी को भी वेद पाठ या गायत्री जप का अधिकार प्राप्त नहीं होता। सनातन धर्म में आज भी बिना जनेऊ संस्कार के विवाह पूर्ण नहीं माना जाता है। सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है कि वो जनेऊ धारण करे और उसके नियमों का पालन करे।
किस व्यक्ति को कितने धागे वाले यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करना चाहिए?
ब्रह्मचारी के लिए तीन धागे वाले यज्ञोपवीत (जनेऊ) का विधान है, विवाहित पुरुष को छह धागे वाले यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करना चाहिए। यज्ञोपवीत (जनेऊ) के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे उसकी अर्धांगिनी अर्थात पत्नी के बताये गए हैं। आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली कन्या को भी जनेऊ धारण का अधिकार है।