उत्तराखण्ड : राज्य की कठिन भगौलिक परिस्तिथियों के बीच बुनियादी सुविधाओं के घोर अभाव के चलते लगातार हो रहे पलायन से उत्तराखण्ड के कई हजार गाँवों का अस्तित्व अब तक समाप्त हो चुका है. और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। राज्य के कुल क्षेत्रफल के 71.05 फीसदी वन भूभाग वाले राज्य उत्तराखण्ड में वनभूमि हस्तांतरण के कठोर और अव्यवहारिक मानकों के चलते सूबे में अब सड़क निर्माण समेत अधिकतर विकास कार्य पूर्णतः ठप पड़ चुके हैं। पलायन की विभीषिका से उत्पन्न मौजूदा अनियंत्रित हालातों पर यथासंभव नियंत्रण लाने के उद्देश्य से अब सूबे के समाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी वर्ग एवं सामाजिक विद्वानों ने भी सरकार से सीधे संवाद कर समाधान तलाशने के लिये कमर कस ली है।
उत्तराखण्ड के जाने-माने समाजिक कार्यकर्ता और स्वयंसेवी संस्था “ग्रामीण विकास जनसंघर्ष समिति” के कार्यकारी निदेशक मोहन चंद्र उपाध्याय ने अब इस मामले में एक बड़ी पहल करते हुये सूबे के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, उत्तराखण्ड के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर समेत प्रधानमंत्री मोदी से इस मामले में सँयुक्त रूप से दखल देने की गुहार लगाई है। समाजिक कार्यकर्ता उपाध्याय लम्बे समय से पहाड़ में मूलभूत बुनियादी सुविधाओं की बहाली कर ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन की त्रासदी को रोकने के प्रयास के तहत दशकों से लंबित सड़कों एवं अन्य निर्माण कार्यों के निर्माण के लिये वनभूमि हस्तांतरण के मामलों में सरकारी सिस्टम से लगातार जूझ रहे हैं।
ज्ञात रहे कि सड़क समेत विकास के सभी निर्माण कार्यों के लिये वन भूमि हस्तांतरण के मौजूदा मानकों के तहत क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के लिये दोगुने क्षेत्रफल में सिविल सोयम भूमि और डीग्रेडेड भूमि की आवश्यकता होती है। लेकिन उत्तराखण्ड में सिविल सोयम भूमि की उपलब्धता न होने से अधिकतर सड़कें एवं विकासकार्य अनिश्चितकाल के लिए लंबित हैं। लोकनिर्माण विभाग, पीएमजीएसवाई समेत निर्माण से जुड़े सभी विभाग, वनभूमि कानूनों का हवाला देकर दशकों पहले से अपने हाथ खड़े कर चुके हैं। प्रधानमंत्री के नाम लिखे अपने गुहार पत्र में युवा एक्टिविस्ट उपाध्याय ने ऐसे ही विभिन्न स्तरों पर लटकी सूबे के करीब एक हजार लंबित सड़कों का उल्लेख करते हुऐ मौजूदा वन भूमि हस्तांतरण कानूनों में आवश्यक परिवर्तन कर 5-10 हेक्टेयर तक वनभूमि हस्तांतरण के अधिकार राज्य सरकार को दिये जाने की माँग की है। अपने पत्र के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्ता उपाध्याय ने केंद्र सरकार से उत्तराखंड के गाँवों की महादुर्गति एवं दर्दनाक स्तिथ का जिक्र करते हुऐ उल्लेख किया कि विकास की इस इक्कीसवीं सदी में भी किस तरह से बिना सोचे समझे गलत कानूनों को जबरन थोपने से पहाड़ के उजड़ते गांवों में गर्भवती महिलायें, बिमार, बुजुर्ग सभी अकाल मरने को मजबूर हैं। एक्टिविस्ट उपाध्याय ने सूबे की भीषण पलायन से राज्य के अस्तित्व पर मंडरा रहे गम्भीर संकट के साथ ही देश की सामरिक सुरक्षा पर लग रही सेंध की तरफ भी सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुऐ केंद्र सरकार को समय रहते जरूरी ठोस कदम उठाने की अपील की है। अपने पत्र में पलायन और विकास के मामलों में जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों की घोर उदासीनता का जिक्र करते हुऐ समाजिक कार्यकर्ता उपाध्याय ने अपनी पीढ़ा बयां करते हुये बताया कि इस मसले में वह दर्जनों बार विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री से लेकर वन मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों से बकायदा लिखित में गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अफसोस हर बार कार्यवाही के नाम पर एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय को पत्र भेजने की महज औपचारिकतायें पूरी कर मामले को नजरंदाज कर दिया गया।
काफी कोशिशों के बाबजूद वन हस्तांतरण मामले में कोई समाधान न मिलता देख अब समाजिक कार्यकर्ता उपाध्याय ने इस मामले में पहाड़ के लिये समर्पित होकर काम करने वाले उत्तराखंड के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के दफ्तर का रुख करने का फैसला लिया है। उनका मानना है कि उत्तराखण्ड में अनिल बलूनी एकमात्र ऐसे जनप्रतिनिधि हैं, जो वास्तव में पहाड़ की पीढ़ा को ध्यान में रखकर जनहित में बड़े और कड़े फैसले लेकर काम करने में विश्वास करते हैं। उसके लिये बकायदा उनके द्वारा सांसद बलूनी को पत्र भेजकर उनसे उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री, केंद्रीय वनमंत्री और प्रधानमंत्री से मुलाकात कर उत्तराखण्ड के विकास में वन कानूनों को लेकर आ रही समस्याओं और उनका निदान करवाने की गुहार लगाई है। अब देखना ए होगा कि सांसद अनिल बलूनी इस मामले में किस तरह से समाधान निकलवाकर सड़कों से वंचित पहाड़ के लाखों लोगों के सपनों को साकार कर पाते हैं। समाजिक कार्यकर्ता उपाध्याय की वन भूमि हस्तांतरण कानूनों में जरूरी परिवर्तनों की माँग का समर्थन करते हुऐ समाजिक कार्यकर्ता तारादत्त शर्मा, गिरीश चंद्र जोशी, केशवदत्त जोशी, दयाल पांडेय, IIT रिसर्च स्कॉलर भूवन उपाध्याय, उत्तराखण्ड हाईकोर्ट बार के पूर्व अध्यक्ष पूरन सिंह बिष्ट, पंजाब हाईकोर्ट के अधिवक्ता मदन-मोहन पांडेय, युवा समाजिक कार्यकर्ता शांतनु बिष्ट, मधु पाण्डेय, गोविंद बल्लभ उपाध्याय, नित्यानंद जोशी समेत सैकड़ों अन्य समाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे राज्य की आम जनता के कल्याण के साथ-साथ राष्ट्रहित के लिये बेहद जरूरी कदम बताया।