नगाधिराज हिमालय की तलहटी में जन्में, पले और बढ़े लोग शुरू से ही कला और संस्कृति के प्रेमी रहें हैं। अब अगर हम बात मध्य हिमालय के उत्तराखंड इलाके की करते हैं तो यहां के मूल निवासी नृत्य और गायन की ओर अधिक आकृष्ट होते हैं। लोकगीत और लोकनृत्यों में पहाड़ का परिवेश और जनजीवन बहुत अच्छे से मुखरित होता है। बीते कुछ दशकों से पहाड़ के लोगों का रुझान शास्त्रीय संगीत और शास्त्रीय नृत्य की तरफ भी बढ़ा है। देवभूमि संवाद ने पहाड़ की उन प्रतिभाओं को अपने पाठकों से रूबरू कराने की पहल की है जो अभी अपने करियर के शुरुआती दौर में हैं। “उगती किरणें” काॅलम के अंतर्गत आज हम आपका परिचय करा रहे हैं उत्तराखंड की उभरती कथक नृत्यांगना “सौम्या वेदवाल” से। प्रस्तुत है सौम्या वेदवाल से सौरव कबटियाल की बातचीत के संपादित अंश।
सौरव :- आपका जन्म कहां हुआ और आप किस जगह से ताल्लुक रखती हैं।
सौम्या :- मेरा जन्म 28 फरवरी 2010 को हुआ है और मेरी पैदाइश देहरादून की है। मैं मूल रूप से जनपद पौड़ी में कल्जीखाल ब्लाॅक के तहत पश्चिम मनियारस्यू पट्टी के पीपली गांव से वास्ता रखती हूं।
सौरव :- आप अभी कौन सी कक्षा में पढ़ रही हैं और आपकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा कहां से हुई है।
सौम्या :- मैं अभी सातवीं कक्षा में पढ़ रही हूं और मेरी शुरू से लेकर अब तक की शिक्षा देहरादून में ही हुई है।
सौरव :- आपको कैसे और कब पता चला कि कथक भी कोई नृत्य है और आपको इसको सीखना चाहिए।
सौम्या :- मुझे बचपन से ही डांस का शौक था। लेकिन यह मालूम नहीं था कि कथक नृत्य क्या होता है। घर-परिवार में बड़ो की प्रेरणा और आशीर्वाद से धीरे-धीरे कथक नृत्य के बारे में पता चलता गया है। फिर कथक की विधिवत तालीम हासिल करने की हसरत जगी। मेरे दिवंगत दादा जी ने ( जिनका अभी हाल ही में निधन हुआ) ने मुझे कथक नृत्य सिखने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया।
सौरव : – यह बताइए कि आपने पहली बार कथक का नृत्य कहां पर किया था। और आपकी पहली स्टेज परफोर्मेंस की क्या यादें हैं।
सौम्या :- साल 2018 में मैंने पहले पहल अपने स्कूल के एक कार्यक्रम में कथक नृत्य की प्रस्तुति दी थी। मेरी परफोर्मेंस पर मुग्ध होकर मुख्य अतिथियों ने मुझे 500 रुपये के नोट और फूलों का गुलदस्ता दिया था। आपको बताऊं यह पहला कार्यक्रम और पहला पारितोषिक मेरे लिए आज भी बहुत अहम हैं।
उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी जन्मदिन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मेरा कथक नृत्य हो या फिर देहरादून में होने होली और महिला दिवस के आयोजन हो हर जगह मैं अपनी कला का प्रर्दशन करती आ रही हूं।
सौरव :- आपकी अब तक की उपलब्धियां क्या-क्या रहीं हैं।
सौम्या :- ( हंसते हुए) उपलब्धियां हासिल करने के लिए तो अभी सफर शुरू ही हुआ है। हां इतना जरूर मैं कहना चाहूंगी कि अब तक के सफर में कुछ ऐसे अहम पड़ाव आए हैं जोकि मेरे को खुशियों से भर देते हैं। जब साल 2020 में बलूनी क्लासेज के आन लाइन डांस कंप्टीशन में मैं सभी प्रतिभागियों में अव्वल रही। कोविड-19 महामारी के चलते कथक नृत्य की यह डांस प्रतिस्पर्धा आॅन लाइन ही हुई थी लेकिन जब मुझे प्रथम पुरस्कार लेने कोटद्वार बुलाया गया तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। चार राउंड तक चली इस आॅन लाइन कथक नृत्य की प्रतियोगिता में जो प्रतिभागी थे उनके हुनर और फनकारी की मैं दाद देती हूं लेकिन जीत का रोमांच तब और अधिक बढ़ जाता है जब आपके विपक्षी भी दमदार हों। बलूनी क्लासेज की आयोजन समिति ने मुझे कोटद्वार बुलाकर सम्मानपूर्वक पांच हजार रुपये और प्रथम विजेता की ट्रॉफी दी जो मेरे लिए बहुत गौरवशाली क्षण थे। वहीं मैं टेलेंट हंट की कथक नृत्य प्रतियोगिता में भी टाॅप फाइव में रही। इसी महीने के 21 तारीख को मुझे आल इंडिया लेवल के कथक डांस कंप्टीशन में पहला स्थान हासिल हुआ। जबकि 25 जून को आॅल इंडिया लेवल के एक और कथक डांस कंप्टीशन में मुझे फिर से पहला स्थान हासिल हुआ तो मेरी आंखें छलक आई। मैं अपनी सारी सफलताओं को अपने दिवंगत दादा जी स्वर्गीय सुरेंद्र दत्त वेदवाल जी को समर्पित करती हूं। मेरे दादाजी ने मुझे बचपन से ही पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ कथक डांस में भी बहुत मोटिवेट किया है। अभी पिछले ही महीने दादा जी का निधन हुआ है। काश अगर आज दादा जी होते तो उन्हें मेरी इस सफलता पर मुझसे ज्यादा खुशी होती।
सौरव :- कथक डांस की बात हो और आपके गुरुजी का उल्लेख नहीं हो ऐसा भला कैसे हो सकता है?
सौम्या :- जी बिल्कुल, गुरू का स्थान तो सबसे पहले है। कबीरदास जी कह भी गए हैं कि गुरू गोविन्द दोऊ खड़े…मेरे गुरूजी परम आदरणीय श्री दीपक आनंद भट्ट जी और गुरूमाता परम आदरणीया श्रीमती संगीता कुकरेती भट्ट जी हैं। साल 2019 में मुझे परम आदरणीय पंडित बिरजू महाराज जी की वर्कशाप में भी प्रतिभाग करने का सुअवसर मिला है।
सौरव :- अच्छा एक बात बताइए कि आपको अपना मनियारस्यूं पीपली गांव कैसे याद आता है और कितना याद आता है।
सौम्या :- (मुस्कुराते हुए) याद तो वह चीज़ आती है जिसे हम भूल जाते हैं। मेरा पीपली गांव तो मेरे जीवन का अहम हिस्सा है। काश पहाड़ों में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के साधन होते तो हम लोग शायद पलायन को मजबूर नहीं होते। मेरी एक तमन्ना है कि मैं अपने पीपली गांव में अपने कथक नृत्य की प्रस्तुति दूं और उसे शूट करूं।
सौरव :- कथक नृत्य के क्षेत्र में आने वाली नई प्रतिभाओं के लिए आपका क्या संदेश है।
सौम्या :- (शर्माते हुए) संदेश देने वाली मैं भला कौन होती हूं। अभी नाही तो मैंने कथक नृत्य के क्षेत्र में कुछ अनूठा किया है कि जो मैं अपनी उपलब्धियों के आधार पर कुछ कह सकूं। और ना ही मेरी इतनी उम्र है कि जो मैं अपने अनुभव के आधार पर ही कुछ कह सकूं। हां मैं इतना भर जरूर कहूंगी कि कथक नृत्य बहुत साधना मांगता है। बहुत रियाज की दरकार होती है एक अच्छे कथक नृतक या नृत्यांगना बनने के लिए। ऐसे में यह हमने ही तय करना है कि पढ़ाई और नृत्य के अभ्यास में कैसे तालमेल बिठाना है। साथ ही माता-पिता,अभिभावकों और गुरूजनों के बताए मार्ग पर चलकर ही सफलता मिल सकती है। कथक नृत्य में सफलता के लिए कोई शाॅटकट नहीं होता है।
यहाँ देखें सौम्या के कथक नृत्य की एक झलक