Saunashiling-Pachel-Kamuwakula road

अल्मोड़ा : उत्तराखण्ड सरकार का पलायन आयोग भले ही चार साल बीत जाने के बाद भी यह पता नही कर पाया कि आखिर देवभूमि को क्या खाये जा रहा है और पहाड़ के गाँव लगातार क्यों उजड़ रहे हैं? लेकिन यदि इस यक्ष प्रशन का सटीक उत्तर ढूढना हो तो पहाड़ के गाँवों में बुनियादी सुविधाओं की बहाली के लिये सरकारी सिस्टम से वर्षों से जूझ रहे उत्तराखण्ड के जाने-माने युवा एक्टिविस्ट मोहन चंद्र उपाध्याय के अनुभवों का गम्भीरता से अध्धयन करना चाहिए। पहाड़ की ज्वलंत समस्याओं के पीछे सूबे के नेताओं और नौकरशाहों के काले कारनामों की पूरी कुंडली आपको समझ में आ जायेगी। कड़वा सच तो यह है कि सूबे के नेता पलायन तो छोड़िए प्रधानमंत्री के आदेश तक की परवाह नही करते हैं। ताजा मामला जागेश्वर विधानसभा के धौलादेवी ब्लॉक स्थित सौनाशिलिंग पचेल-कमुवाकूला सड़क मार्ग से जुड़ने वाले गाँव पातल, पचेल, बूंगा, कुरुटिया, खल्याणी और सीलिंग गाँव का है। उत्तराखण्ड के ग्रामीणों की अपनी खुद की स्वयंसेवी समाजिक संस्था “ग्रामीण विकास जनसंघर्ष समिति” के कार्यकारी निदेशक और स्वतंत्र पत्रकार मोहन चंद्र उपाध्याय के द्वारा स्थानीय नेताओं से त्रस्त इन गांवों की आम जनता के लिये सड़क निर्माण की गुहार अपने ग्रामसभा से लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक लगाई गई।

जिसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस मामले में संज्ञान लेकर उत्तराखण्ड सरकार को उक्त सड़क के निर्माण करने का निर्देश जारी किया। लेकिन दो साल बीत जाने के बाबजूद भी इस सड़क का निर्माण नही हो सका। अब ग्रामीणों में सड़क निर्माण में लापरवाही बरत रहे अधिकारियों और जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों के प्रति भारी आक्रोश फैलने की खबर है। ग्रामीणों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सड़क के अभाव में सभी मूलभूत बुनियादी सुविधाओं से वंचित ग्रामीण अपने जनप्रतिनिधियों से करीब पिछले 40 सालों से सौनाशिलिंग-कमुवाकूला सड़क मार्ग के निर्माण की माँग कर रहे हैं। लेकिन स्थानीय नेता लगातार सड़क निर्माण का झूठा आश्वासन देकर चुनाव आते ही हर पाँच साल में सड़क निर्माण के नाम पर एक के बाद एक फर्जी सर्वे करवाकर लोगों को गुमराह कर जगह-जगह पर लाल रंग के निशान और चूना डालकर वोट बटोर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि कई पंचवर्षीय आयी और गयी, कई छुटभैया नेताजी ब्लॉक प्रमुख से लेकर विधायक, सांसद और मंत्री बनते गये, लेकिन कभी किसी ने चुनाव जीतने के बाद फिर मुड़कर ग्रामीणों की तरफ नही देखा। नेताओं के इन शर्मनाक कारनामों से त्रस्त सड़क विहीन गाँवों की गर्भवती महिलाओं, बच्चों, बिमार औऱ बुजुर्गों की दुर्दशा से निजात पाने तथा स्वरोजगार से पहाड़ों में पलायन रोकने के उद्देश्य से ग्रामीण विकास जनसंघर्ष समिति के युवा एक्टिविस्ट मोहन चंद्र उपाध्याय ने पिछले कुछ वर्षों से ग्रामीण क्षेत्रों में “सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वरोजगार” के लिये एक मुहिम छेड़ रखी है। इसी अभियान के तहत सौनशिलिग पचेल-कमुवाकूला सड़क की भी कार्यवाही जनवरी 2019 में शुरू की गयी। क्षेत्र के सभी गाँवो के आम नागरिकों की गुहार पर युवा एक्टिविस्ट उपाध्याय ने एक सामुहिक मेजरनामा बनाकर उसकी प्रति अल्मोड़ा के जिलाधिकारी, जागेश्वर के विधायक, अल्मोड़ा के सांसद, उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री, केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री समेत देश के प्रधानमंत्री को भेजा गया। लेकिन इस मामले में एक हैरान कर देने वाली घटना तब सामने आयी जब ग्रामीणों के इस मेजरनामे में ना तो जिलाधिकारी ना विधायक, ना सांसद, ना मुख्यमंत्री ना केंद्रीय मंत्रियों ने कार्यवाही तो दूर ग्रामीणों के मेजरनामा का उत्तर भी देना मुनासिब नही समझा।

लेकिन राहत भरी बात यह रही कि जब ग्रामीणों का यही मेजरनामा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय राजधानी दिल्ली पहुँचा, तो पीएमओ ऑफिस ने इस मेजरनामे को तत्काल प्रधानमंत्री लोकशिकायत रजिस्टर में दर्ज कर ऐक्शन लेते हुए उत्तराखण्ड सरकार से इस मामले में संज्ञान लेकर ग्रामीणों के लिये सड़क निर्माण के आदेश जारी किये। पीएमओ के ऐक्शन के बाद उत्तराखण्ड सरकार के सचिवालय ने हरकत में आते हुये 5 मार्च 2019 को प्रधानमंत्री कार्यालय के आदेश का उल्लेख करते हुऐ उत्तराखण्ड लोकनिर्माण विभाग के मुख्य सचिव को उक्त सड़क के निर्माण हेतु अग्रिम कार्यवाही के निर्देश दिये। लेकिन कई महीने बीतने के बाद भी जब लोकनिर्माण विभाग से ग्रामीणों को सड़क निर्माण के मामले में कोई जबाब नही मिला तो समाजिक कार्यकर्ता मोहन चंद्र उपाध्याय ने अल्मोड़ा के जिला अधिकारी को इसकी लिखित शिकायत देकर पीएमओ और सीएमओ कार्यालय के आदेश को सम्बंधित विभागों से तामील करवाने का अनुरोध किया, साथ ही मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी इस मामले को उठाकर लिखित शिकायत दी गयी। उसके बाद मुख्यमंत्री लोकशिकायत निवारण के माध्यम से जब लोकनिर्माण विभाग से लिखित में गाँव की सड़क निर्माण की दिशा में हुई प्रगति का ब्यौरा  पूछा गया तो लोकनिर्माण विभाग ने ऐसे किसी भी आदेश से अनभिज्ञता जताते हुये बगलें झाँकना शुरू कर दिया। जिसके बाद लोकनिर्माण विभाग को मुख्य सचिव कार्यालय के आदेश की कॉपी सौंपी गयी, तो अधिकारियों ने नई सड़क के आगड़न हेतु नये सिरे से प्राईमरी इन्क्वायरी करने की बात बताई।

युवा एक्टिविस्ट उपाध्याय के द्वारा जब चुनाव के वक्त हर पाँच साल में उक्त सड़क में सर्वे और लाल रंग के निशान और चूना डालने के सम्बंध में विभाग से प्रश्न पूछा तो पता चला कि यह विभाग का नही बल्कि नेताओं के द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला महज एक चुनावी हथकंडा था। जिसका उपयोग वह दशकों से लगातार जनता को भर्मित कर वोट हॉसिल करने के लिए कर रहे थे। विभाग ने माना कि इस सड़क मार्ग पर उनके द्वारा एक बार सर्वे तो किया गया लेकिन क्षतिपूरक वृक्षरोपण हेतु सिविल स्वयं भूमि गलत जगह पर देने के कारण सड़क की कोई भी प्रक्रिया आज तक अग्रसर नही हो पाई है। विभाग ने आगे बताया कि वह मुख्य सचिव के निर्देश पर अब इस सड़क की प्रकिया गतिमान करना चाहते तो हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश वर्तमान में अब अल्मोड़ा जिले में सिविल स्वयं भूमि मौजूद नही है। जिसके लिए उनके द्वारा जिलाधिकारी अल्मोड़ा को सिविल भूमि की ब्यवस्था कराने के लिये निवेदन पत्र भी भेज दिया गया है। लोकनिर्माण विभाग के द्वारा जब नियमों का हवाला देते हुये सिविल भूमि की ब्यवस्था होने तक सड़क निर्माण में असमर्थता जताई गयी तो समाजिक कार्यकर्ता उपाध्याय ने केंद्र सरकार द्वारा संचालित पीएमजीएसवाई विभाग को उक्त सड़क के निर्माण के लिए आवेदन किया। लेकिन पीएमजीएसवाई ने जनसँख्या मानकों का हवाला देकर भविष्य में होने वाले संशोधित नये मानकों के अपडेट होने तक सड़क निर्माण में असमर्थता जताई। उसके बाद युवा एक्टिविस्ट उपाध्याय के द्वारा पुनः लोकनिर्माण विभाग को उक्त सड़क का दूसरा रूट सुझाया गया। परन्तु पीडब्ल्यूडी ने सड़क की दूरी को लेकर अपने नए नियमों का हवाला देकर सुझाये गये नये रूट की फाइल को जिला पंचायत को प्रेक्षित कर दिया है।

फिलहाल सौनाशिलिंग, पचेल-कमुवाकूला सड़क निर्माण के लिये केंद्र और राज्य सरकार के तीन विभागों में जिसमें लोकनिर्माण विभाग, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना तथा जिला पंचायत में फाइल अग्रिम कार्यवाही के लिए लंबित है। चूँकि प्रधानमंत्री कार्यालय के आदेश को ज्यादा दिन तक टालमटोल करना किसी भी विभागों के लिये संभव नही है। इसलियें अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री कार्यालय और सीएमओ का सड़क निर्माण का आदेश कौन सा विभाग सबसे पहले तामील कर ग्रामीणों के सपनों को साकार कर पाता है। इस पूरे प्रकरण में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के द्वारा गाँव की सड़क के निर्माण में बरती जा रही घोर लापरवाही को लेकर ग्रामीण विकास जनसंघर्ष समिति के वरिष्ठ समाजिक कार्यकर्ता गिरीश चंद्र जोशी, तारा दत्त शर्मा, आईआईटी रिसर्च स्कॉलर भूवन उपाध्याय, उत्तराखण्ड हाईकोर्ट बार के अध्यक्ष अधिवक्ता पूरन सिंह बिष्ट, अध्यक्ष केशवदत्त जोशी, पंजाब हाईकोर्ट के अधिवक्ता मदन मोहन पांडेय, दयाल पांडेय, गोविंद बल्लभ उपाध्याय, मधु पांडेय, मनोरथ उपाध्याय समेत दर्जनों अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस मामले अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुये सरकार से प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देशों की पालन करते हुऐ अविलंब सड़क निर्माण करवाने की माँग दोहराई है।