देहरादून: अंकिता भंडारी की बरसी पर धाद द्वारा अंकिता के न्याय और महिला सुरक्षा के प्रश्नों को लेकर प्रेस क्लब देहरादून मे एक संवाद सत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम मे अंकिता भंडारी को न्याय दिलाने के साथ साथ जो लकड़ियां पढ़ाई या काम के लिए घर से बाहर निकल रही है उन्हें एक सुरक्षित माहौल देने की बात भी प्रमुखता से की गई।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ताओं मे से एक वरिष्ठ पत्रकार संजीव कंडवाल ने कहा कि महिला हिंसा से जुड़ी हर घटना के बाद हम यह संकल्प तो बांधते हैं कि फिर ऐसी कोई वारदात न हो, लेकिन कभी अंकिता, कभी निर्भया तो कभी अंशु नौटियाल के रूप में बार- बार होने वाली ऐसी घटनाएं बताती हैं कि जमीनी स्तर पर अब भी बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है। उन्होंने कहा कि यह कानून व्यवस्था के साथ-साथ अधिक लैंगिक उदंडता का मामला भी है। यह समस्या जाति,  धर्म यहां तक की भौगोलिक भिन्नता के बावजूद हर जगह समान रूप से पाई जाती है। अपेक्षाकृत विकसित समझे जाने वाले समाज में भी महिलाओं को यौन हिंसा, सामाजिक हिंसा और सांस्कृतिक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने अंकिता भंडारी के संदर्भ में कहा कि इस घटना ने पहाड़ की लाखों बेटियों के भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं। अब बड़ी संख्या में बेटियां पढ़ लिखकर आर्थिक रूप से मजबूत बनने के लिए बड़े शहरों में नौकरी के लिए जा रही है, लेकिन वहां उनकी सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा? राज्य जिस पर्यटन के क्षेत्र में झंडे गाढ़ने का दावा कर रहा है, क्या वहां महिलाओं को सुरक्षित कामकाजी माहौल मिल पाएगा, यह एक बड़ा सवाल है। खासकर तब जब घूमने फिरने के नाम पर लोगों के मनो मस्तिष्क पर अजीब तरह की आवारगी हावी रहती हो।

उन्होंने कहा कि कोई भी सरकार इस तरह की घटनाएं नहीं होने देना चाहती है, लेकिन दिक्कत यह है कि जब ऐसी घटनाएं हो जाती हैं तो कानून व्यवस्था लागू करने वाली एजेंसियों से लेकर न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया में तक पीड़ित पक्ष ही दबाव में रहता है। जितना जरूरी इस तरह की वारदात पर लगाम लगाना है उतना ही जरूरी ऐसी घटनाओं के बाद एजेसियों के स्तर पर पर्याप्त संवेदनशीलता बरते जाने की भी है।

महिला मुद्दो की विशेषज्ञ दीपा कौशलम ने कहा यूं तो खुद को सभ्य समझने वाले हमारे समाज में लगातार घटने वाली महिला हिंसा और अपराध की घटनाएं उस समाज के मूल्यों, समझ और धारणाओं पर प्रश्नचिन्ह लगा देती हैं लेकिन अंकिता भंडारी के मामले में अपराधियों का राजनीतिक पृष्ठभूमि से होना एक महत्वपूर्ण पक्ष रहा है, उसी राजनीतिक सत्ता का दुरुपयोग साक्ष्यों को मिटाने और न्यायिक प्रक्रिया को गुमराह करने में किया गया है।

दूसरी बात कोर्ट कचहरी की लंबी और थकान भरी यात्रा की भी है। हमारे देश में दिल्ली गैंगरेप के बाद गठित जस्टिस वर्मा कमेटी के रिकमेंडेशन के बाद भले ही फॉस्ट ट्रैक कोर्ट बनाए गए हों लेकिन प्रक्रिया फास्ट नही है । अंकिता के माता पिता अपनी जवान बेटी को खोने के बाद एक दिन ये साबित करते करते थक जाएंगे कि उनकी बेटी के साथ राजनीतिक संरक्षण में अन्याय हुआ है। हमें इन जटिल व्यवस्थाओं को सुगम और त्वरित करने की आवश्यकता समझनी होगी वरना “Justice delayed is justice denied” वाली बात सच साबित होती रहेगी।

धाद की ओर से सत्र का संचालन अंकिता एक ज्योति कार्यक्रम की सचिव अर्चना ने किया। कार्यक्रम मे विभिन्न संस्थाओं जैसे संयुक्त नागरिक संगठन, अस्तित्व, आदि ने भी भाग लिया । कार्यक्रम मे टीम वन यू के के सदस्यो के साथ आशा डोभाल, नीना रावत, मुकुंद कृष्ण, सुशील कुमार त्यागी, पी सी नांगिया, मुकेश नारायण शर्मा, जितेंद्र ढंढोना, ओमवीर सिंह, राजीव पांथरी, रामकृष्ण मुखर्जी, उत्तम सिंह रावत, शिव प्रसाद जोशी, गणेश चन्द्र उनियाल, सुभागा देवी, चंद्रभागा शुकला, घनश्याम दत्त भगत, प्रदीप कुकरेती, स्वाति डोभाल, सौरव उपस्थित थे।