सतपुली : आज जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस संक्रमण के चलते ठहर सी गई है। सारे उद्योग-धंधे रुक गए। जिसका सबसे बड़ा असर इस क्षेत्र में कार्यरत कामगारों पर पड़ा है। इस संकट के समय जो बचा है वह है खेती-बाड़ी, जिससे जुड़े किसान अपने ही नहीं बल्कि देश के लिए भी अन्नदाता की बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
उत्तराखंड के परिपेक्ष में कहा जाए तो अपने खेत-खलिहान से जुड़े कुछ लोग आज अपने संघर्षों के माध्यम से न सिर्फ अपने खेत-खलिहानों को आबाद कर रहे हैं बल्कि अपना घर-गांव छोड़ छोटी-बड़ी कंपनियों में हाड तोड़ मेहनत कर दो जून की रोटी के कमाने के लिए संघर्षरत नौजवानों को अपने घर-गांव लौटाने की राह भी दिखा रहे है।
इसी लीक से जुड़ा नाम है दिल्ली, नोएडा, देहरादून, चंडीगढ़ जैसे बड़े शहरों से नौकरी छोड़कर गांव में आकर स्वरोजगार कर रहे पौड़ी गढ़वाल के कैंडूल गाँव के चार युवा। जो कृषि एवं बागवानी कार्य कर जैविक सब्जियां उत्पादन कर बेरोजगार एवं पलायन करने वालो युवाओं को भी राह दिखा रहे हैं। पौड़ी गढ़वाल के कैंडूल गाँव के चार युवाओं परपेंद्र रावत, संदीप रावत, रॉबिन सिंह रावत और सुखेदव नेगी ने अपनी पुरानी बंजर भूमि को चेक बनाकर खुद अपने निजी प्रयासों से घेरबाढ़ कर सामूहिक खेती करना शुरू किया। जिसका सफल परिणाम है कि इस वर्ष प्रथम चरण में इन युवाओं ने रात-दिन मेहनत कर 10 कुन्तल आलू और मटर बेचने के साथ ही गेंहू की खेती भी की है। इन दिनों इनकी मेहनत की नर्सरी में प्याज, मिर्च, सीता फल, बीन्स, टमाटर, भिंडी, बैगन आदिसब्जियां तैयार है।
आपको बता दें कि इन चारो युवकों के सामने खेतों में सिंचाई के लिए प्रयाप्त मात्रा में पानी नहीं है। लघु सिंचाई की नहर जगह-जगह क्षतिग्रस्त है। लेकिन इन युवाओं ने हार नहीं मानी है। उन्होंने राज्य सरकार से भी सहयोग की अपील की है। इस बारे में जिला उद्यान अधिकारी डाक्टर नरेन्द्र सिंह ने बताया की उन्होंने द्वारीखाल ब्लॉक के सम्बंधित नोडल अधिकारी को सहयोग एवं सम्पर्क करने को कहा है।
वहीँ इन नौजवानों का कहना हैं कि हम संघर्षों के साथ आगे बढ़ रहे है। शहर में प्रदुषण और भीड़-भाड़ से दूर एक सुंदर प्राकृतिक परिवेश में स्वरोजगार के जरिए कई अन्य लोगों को भी रोजगार दे रहे हैं। युवाओं का कहना है कि हमारे परिजन भी खेती बाड़ी सहयोग करते है। हम अपनी मेहनत के साथ अपने खेत-खलिहानों में खुश हैं।
आपको बता दें कि इन नौजवानों ने अपनी नर्सरी में रहने के लिए छपर बनाया है। वही जंगली जानवरों से बचावा के लिए कुत्ते पाल रखे है। यदि ऐसे नौजवानों को सरकार की तरफ से समय-समय पर सहयोग प्रदान किया जाता है तो एक दिन हम कह सकते हैं कि पहाड़ से हो रहे निरंतर पलायन को तो रोका ही जा सकता है। साथ ही खंडहर हो चुके पहाडों को भी आबाद किया जा सकता है।
आज के बदलते परिवेश में जहां प्रवासी उत्तराखंडी पहाड़ों का रुख कर रहे हैं ऐसे समय केंडुल गांव के ये चार युवक और लोगों को भी प्रेरणा दे सकते हैं। आज वक्त आ गया है कि शहरों की चमक-दमक को देखकर युवा रोजगार की तलाश में शहरों की ओर रुख करने के बजाय गांवों में ही काश्तकारी और बागवानी को रोजगार का जरिया बना सकते हैं।
जगमोहन डांगी