गढ़वाल की ब्राह्मण जातियां : कुछ समय पहले हमने आपको गढ़वाल की 100 राजपूत जातियों के इतिहास के बारे में बताया था। आज हम आपको गढ़वाल मण्डल की प्रमुख ब्राह्मण जातियों के बारे में बतायेंगे। यूँ तो गढ़वाल मण्डल में 100 से भी अधिक ब्राह्मण जातियां निवास करती हैं। परन्तु आज हम आपको गढ़वाल मण्डल की 75 प्रमुख ब्राह्मण जातियों के बारे में बतायेंगे। इतिहासकारों द्वारा गढ़वाल मण्डल में ब्राह्मण जातियां मूल रूप से तीन हिस्सो में बांटी गई हैं। 1. सरोला, 2. गंगाड़ी, 3. निरोला (नाना गोत्री या खस ब्राह्मण)।
माना जाता है कि सरोला और गंगाड़ी ब्राह्मण 8वीं से 10वीं शताब्दी के मध्य में मैदानी भागों से आकर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में आये और यहीं बस गए। सरोला पंवार शासक के राजपुरोहित के रूप में आये थे। गढ़वाल में आने के बाद सरोला और गंगाड़ी लोगों ने नाना गोत्र के ब्राह्मणों से शादी की। सरोला ब्राह्मण के द्वारा बनाया गया भोजन सब लोग खा लेते है परंतु गंगाड़ी जाती का अधिकार केवल अपने सगे-सम्बन्धियो तक ही सिमित है।
इस तरह गढ़वाल की ब्राह्मण जातियों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है।
(1) सरोला ब्राह्मण : इसके अंतर्गत वे ब्राह्मण जातियां आती हैं जिनका मुख्य काम शादी-विवाह व अन्य शुभ-अवसरों पर सम्पूर्ण गांव-कुटुंब-भयात के लिए भात पकाना (खाना पकाना) था। इसीलिए इन्हें सरोला कहा जाता है। सरोला ब्राह्मण वे ब्राह्मण हैं जिन्हें प्राचीन समय में चांदपुर गढ़ी के राजा ने रसोई के रूप में नियुक्त किया था। ‘सर’ का सरोला ‘गाड’ का गंगाड़ी। इस उक्ति के अनुसार ऊंचे स्थानों पर रहने वाले ब्राह्मण सरोला तथा नदी घाटी के निवासी ब्राह्मणों को गंगाड़ी कहा जाने लगा। आरम्भ में सरोलों की बारह जातियां ही थीं। कहा जाता है कि नौटियालों का पूर्व पुरुष जो नौटी गांव में बसा था, गढ़ नरेशों के पूर्वज कनकपाल के साथ गढ़वाल में आया था।
- नौटियाल : संवत 945 में नौटियाल जाति के सरोला लोग धार मालवा से राजा कनकपाल के साथ आकर तल्ली चांदपुर के नौटी गांव में बस गए। नौटियाल जाति के लोगों के बसने के कारण ही इस गांव का नाम नौटी गांव पड़ा। नौटियाल जाति के वंशजों का आरम्भ इसी गांव से माना जाता है। जो कि राजा कनकपाल के साथ आयी थी। ढंगाण, पल्याल, मंजखोला, गजल्डी, चान्दपुरी, बौसोली नामक छह जाति संज्ञा इसी एक जाति की शाखा हैं।
- सेमल्टी : इतिहासकार पं हरिकृष्ण रतूड़ी जी के अनुसार, इनके आदि पुरुष संवत 965 में वीरभूम, बंगाल से गढ़वाल के सेमल्टा गांव में आकर बसे थे। सेमल्टा गांव के निवासी होने के कारण ये सेमल्टी कहलाए।
- मैटवाणी : गढ़वाली आद्य गौड़ ब्राह्मण मैटवाणी गौड़ देश छखात, बंगाल से संवत 975 में गढ़वाल चांदपुर गढ़ी के मैटवाणा नामक गांव में आकर बसे। इस जाति के मूल पुरुष रूपचंद त्र्यम्बक थे।
- गैरोला : आद्य गौड़ सरोला ब्राह्मण गैरोला जाति के लोगों का पैतृक गांव चांदपुर में माना जाता है। इनके आदि पुरुष जयानन्द और विजयानन्द संवत 972 में गैरोली गांव में आकर बसे थे। इसी कारण ये गैरोला कहलाए।
- चमोली : मूलरूप से सरोला द्रविड़ ब्राह्मण हैं, जो रामनाथ विल्हित नामक स्थान से संवत 924 में आकर गढ़वाल के चांदपुर परगने के चमोली नामक गांव में आकर बसे। यह जाति सरोलाओं में प्रमुख मानी जाती है और ‘बारह- थोकी’ समुदाय का अंग है। नंदादेवी राजजात यात्रा में इस जाति के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- डिमरी : डिमरी ब्राह्मण दक्षिण भारत के द्रविड़ ब्राह्मण माने जाते हैं। इनके मूल पुरुष राजेन्द्र और बलभद्र संतोली, कर्नाटक से आकर गढ़वाल में चांदपुर के डिम्मर गांव में आकर बस गए थे, जिसके फलस्वरूप ये डिमरी कहलाए।
- थपलियाल : संवत 980 में थपलियाल सरोला गौड़ ब्राह्मण जाति के लोग चांदपुर के थापली नामक गांव में आकर बस गए। थपलियाल जाति के लोग चांदपुर गढ़ी के अलावा देवलगढ़, श्रीनगर और टिहरी में भी प्रसिद्ध रहे हैं।
- सेमवाल : आद्य गौड़ सरोला ब्राह्मण सेमवाल संवत 980 में वीरभूम, बंगाल से गढ़वाल के सेम गांव में आकर बसे और फिर यहीं के निवासी हो गए। इनके मूल पुरुष प्रभाकर और निरंजन थे।
- बिजल्वाण : गौड़ ब्राह्मण बिजल्वाण जाति के आदि पुरुष बिज्जू नामक व्यक्ति थे। जो संवत 1100 में वीरभूम, बंगाल से आकर गढ़वाल में बसे थे। संभवतः उन्हीं के नाम पर ही इस जाति का नाम बिजल्वाण पड़ा।
- लखेड़ा : आद्य गौड़ सरोला ब्राह्मण लखेड़ा जाति के मूल पुरुष नारद और भानुवीर संवत 1117 में प. बंगाल के वीरभूम से आकर गढ़वाल के लखेड़ी नामक गांव में आकर बसे।
- खण्डूड़ी : गढ़वाल में सरोलाओं के बारह- थोकी समुदाय में से एक ब्राह्मण जाति खंडूड़ी मूलतः गौड़ ब्राह्मण जाति है। जिनका गढ़वाल के खंदूड़ा गांव में आगमन संवत 945 में वीरभूम बंगाल से हुआ।
- कोटियाल/ कोठियाल : गौड़ ब्राह्मण कोटियाल/ कोठियाल गढ़वाल के सरोला जाति की एक प्रमुख जाति है। जो चांदपुर के कोटी गांव मैं आकर बसी थी और यहां कोटियाल अथवा कोठियाल नाम से प्रसिद्ध हुई।
- मैराव के जोशी : ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण कुमाऊं से गढ़वाल में आकर बसे और यहीं के निवासी हो गए।
- रतूड़ी : इस जाति को सरोला समुदाय की प्रमुख जाति माना जाता है। यह आद्य गौड़ ब्राह्मण जाति गौड़ देश से संवत 980 में गढ़वाल में आयी और चांदपुर के समीप रतुड़ा गांव में बस गयी। टिहरी के राजा के राजदरबार में वजीर पंडित रहे प. हरिकृष्ण रतूड़ी को सर्वप्रथम गढ़वाल का प्रामाणिक इतिहास लिखने का श्रेय भी जाता है।
- नवानी : इनकी पूर्व जाति सती थी और ये संवत 980 में गुजरात से गढ़वाल के नवन गांव में आकर बसे जिसके कारण इस जाति का नाम नवानी पड़ा।
- हटवाल : गौड़ ब्राह्मण हटवाल वीरभूम, बंगाल से 1059 संवत में गढ़वाल के हाटगांव में आकर बसे जिसके कारण ये हटवाल कहलाए। इनके मूल पुरुष सुदर्शन और विश्वैश्वर थे।
- सती : गढ़वाल की ये सरोला जाति गढ़वाल में गुजरात से आई और चांदपुर गढ़ी में बसी है। ब्राह्मण जाति नवानी इस जाति की एक उप-शाखा है। सती जाति के लोग गढ़वाल के अलावा कुमाऊं में भी हैं।
- कंडवाल : ये मूलतः सरोला ब्राह्मण हैं, जो गढ़वाल के कांडा गांव में बसने से कंडवाल कहलायी। कंडवाल जाति के लोग कुमाऊं के कांडई नामक गांव से चांदपुर परगने में आकर बसे थे।
(2) गंगाड़ी ब्राह्मण : इसके अंतर्गत उन ब्राह्मण जातियों को रखा जाता है जिनकी व्यवहारिकता का क्षेत्र केवल अपनी बिरादरी और अपने सगे-सम्बंधियों या इसके अतिरिक्त कुछ विशेष जातियों तक ही सीमित होता है। पं. रतूड़ी जी का मानना है कि सरोला और गंगाड़ी ब्राह्मण वही ब्राह्मण हैं जिनके मूल पुरुष इस देश के आदिम निवासियों में नहीं थे। बल्कि वे लोग क्रमशः आठवीं या नवीं शताब्दी से और उसके पश्चात भी इस देश में आकर बसे, और बसते रहे। नानागोत्री या खस ब्राह्मण गढ़वाल के आदिम निवासी और नवागन्तुक लोगों की मिली-जुली संतान पायी जाती है, जिसके साक्षी रूप उनके आचार-विचार विद्यमान हैं, जो अब भी उनके बीच उसी तरह पाये जाते हैं। गंगाड़ी और सरोला ब्राह्मणों के गोत्र भी एक हैं और धार्मिक और लौकिक रिवाज भी एक हैं। केवल भेद इतना है कि सरोला जाति का पकाया हुआ दाल चावल सब जातियां खा लेती हैं, जबकि गंगाड़ी ब्राह्मणों का पकाया हुआ दाल चावल उनकी रिश्तेदारी में ही चलता है।
- बुधाणा/बहुगुणा : गढ़वाल में गंगाड़ी ब्राह्मणों में प्रमुख आद्यगौड़ ब्राह्मण बहुगुणा जाति सम्वत 980 में गौड़ बंगाल से गढ़वाल के बुघाणी नामक गांव में आकार बसी। बुघाणी गांव में बसने के कारण ये बहुगुणा कहलाए। बहुगुणा जाति को चौथोकी समुदाय’ (डोभाल, बहुगुणा, डंगवाल और उनियाल) के अंर्तगत रखा जाता है।
- डंगवाल : डंगवाल जाति के द्रविड़ मूल के गंगाड़ी ब्राह्मण संवत 982 में संतोली, कर्नाटक से डांग गांव में बसे थे। इनके मूल पुरुष धरणीधर थे।
- डोभाल : डोभाल जाति के लोग संवत 945 में संतोली, कर्नाटक से आकर गढ़वाल के डोभा गांव में आकर बसे, इसीलिए ये डोभाल कहलाए। इस जाति के मूल पुरुष कर्णजीत डोभा सर्वप्रथम वे ही डोभा गांव में आकर बसे थे।
- उनियाल : संवत 981 में मिथिला से जयाचंद और विजयाचंद नामक दो पृथक गोत्री ममेरे-फुफेरे भाई श्रीनगर, गढ़वाल के वेणी गांव में आए और वहीं बस गए। वे मैथिल ब्राह्मण थे। वहीं से उनियाल जाति का आरम्भ हुआ।
- घिल्डियाल : घिल्डियाल जाति को आद्यगौड़ ब्राह्मण श्रेणी में रखा जाता है। इस जाति के लोग गौड़ देश से संवत 1100 में गढ़वाल में आकर बसे। इसलिए इनका नाम घिल्डियाल पड़ा।
- नैथानी/नैथाणी : नैथानी मूलरूप से कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं जो सम्वत 1200 कन्नौज से आकर गढ़वाल के नैथाणा नामक गांव में आकार बस गए। आपके मूलपुरुष कर्णदेव और इंद्रपाल जो सबसे पहले नैथाना गाँव, पौड़ी गढ़वाल में आकर बसे। श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ (मन्दिर) का प्रबन्ध एवं व्यवस्था नैथानी जाति के लोग देखते हैं।
- जुयाल : गंगाड़ी ब्राह्मणों की महाराष्ट्रीय जाति जुयाल दक्षिण भारत से जुया गांव में संवत 1700 में इनके आदि पुरुष बासुदेव और विजयानंद के निर्देशन में गढ़वाल में आयी और तत्पश्चात यहीं बस गयी।
- सकलानी/सकल्याणी : कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की यह शाखा सम्वत 1700 के आसपास अवध से आकर गढ़वाल के सकलाना गांव में बसी। इनके मूल पुरुष नाग देव ने ही सकलाना गांव बसाया था। कालांतर में इस जाति के नाम पर इस पट्टी का नाम भी सकलाना पट्टी पड़ा। इस जाति के लोगों को ‘पुजारी’ भी कहा जाता है।
- जोशी : जोशी जाति के ब्राह्मणों की पूर्व जाति द्रविड़ मानी जाती है। ये जाति कुमाऊं से सम्वत 1700 में गढ़वाल आई और उसके बाद यहीं बस गयी।
- तिवारी/तिवाड़ी : त्रिपाठी मूल के तिवाड़ी सरोला ब्राह्मण लगभग 1700 संवत में कुमाऊं से आकर गढ़वाल के अलग-अलग हिस्सों में बस गए और तत्पश्चात वहीं के निवासी हो गए।
- पैन्यूली : पैन्यूली मूलतः गंगाड़ी गौड़ ब्रह्मण हैं जो संवत 1207 में दक्षिण भारत से आकर गढ़वाल के पाण्याला गांव रमोलि में बसे थे। इनके मूल पुरुष ब्रह्मनाथ थे।
- चंदोला : इनकी पूर्व जाति सारस्वत है। ये पहले पंजाब से चंदोसी और उसके बाद सम्वत 1633 में गढ़वाल आए आए। इनके मूल पुरुष लूथराज माने जाते हैं। सम्भवतः चंदोसी में बसने के कारण ही ये चंदोला हुए।
- ढौंडियाळ/ढौंडयाल : गढ़वाल के नरेश राजा महिपति शाह द्वारा चोथोकी समुदाय में वृद्धि करते हुए 32 अन्य जातियों को भी इस समुदाय में शामिल किया गया, जिनमें ढौंडियाल प्रमुख जाति थी। इस जाति के मूल पुरुष रूपचंद गौड़ ब्राह्मण थे जो राजपुताना से सम्वत 1713 में गढ़वाल के ढौंड गांव में आकर बस गए थे। इनके द्वारा ही ढौंड गांव बसाया गया था, जिस कारण इन्हें ढौंडियाल कहा गया।
- नौड़ियाल/नौडियाल/नौरियाल : ये मूलतः गढ़वाली गंगाड़ी गौड़ ब्राह्मण हैं। जो अपने मूल स्थान भृंग चिरंगा से सम्वत 1600 में गढ़वाल के नौड़ी गांव में आए और वहीं बस गए। इनके मूलपुरुष पंडित शशिधर द्वारा ही नौड़ी गांव बसाया गया था। इसी गांव के नाम पर ही इस जाति को नौडियाल कहा गया।
- ममगाईं : ममगाईं मूलतः गौड़ ब्रह्मण है जो उज्जैन, महाराष्ट्र से आकर गढ़वाल में बसे और मामा के गांव में बसने के कारण ममगाईं नाम से प्रसिद्ध हुए। इस जाति के लोग मूलतः पौड़ी जिले में बसे हैं, लेकिन टिहरी और उत्तरकाशी में भी इस जाति के कुछ गांव मिलते हैं।
- बड़थ्वाल : बड़थ्वाल मूलतः सारस्वत ब्राह्मण हैं जो संवत 1543 में गुजरात से आकर गढ़वाल में बसे। इस जाति के मूल पुरुष पंडित सूर्य कमल मुरारी गुजरात से आकर गढ़वाल के बड़ेथ नामक गांव में बसे, बाद में इनके वंशज बड़थ्वाल नाम से प्रसिद्ध हुए।
- कुकरेती : ये द्रविड़ ब्रह्मण है, जो विलहित नामक स्थान से संवत 1409 में आकर गढ़वाल में बसे और फिर यहीं के निवासी हो गए। इनके मूल पुरुष गुरुपति कुकरकाटा नाम गांव में आकर बसे थे, यही कुकरकाटा नामक गांव में बसने के कारण ही ये कुकरेती नाम से प्रसिद्ध हुए।
- धस्माना/धस्माणा : धस्माना गंगाड़ी गौड़ ब्राह्मण हैं। जो उज्जैन से संवत 1723 में गढ़वाल आए और धस्मण गांव में बस गए थे। इनके मूल पुरुष हरदेव, वीरदेव और माधोदास थे।
- कैंथोला : कैंथोला की पूर्व जाति गुजराती भट्ट थी। ये गुजरात से संवत 1669 में अपने मूल पुरुष रामवितल के निर्देशन में गढ़वाल के कैंथोली गांव में आये और वहीं बस गए थे।
- सुयाल : सुयाल जाति के ब्राह्मणों के मूलपुरुष दजल और बाज नारायण गुजरात से आकर गढ़वाल के सुई गांव में बसे और यहीं के निवासी हो गए।
- बंगवाल : बंगवाल गौड़ वंशीय ब्राह्मण हैं। ये सम्वत 1725 में मध्यप्रदेश से गढ़वाल के बांगा गांव में आकर में बसे और यहीं के निवासी हो गए।
- अन्थ्वाल/अणथ्वाल : अणथ्वाल सारस्वत ब्रह्मण हैं। जो संवत 1612 में पंजाब से गढ़वाल के अणेथ गांव में आए और तत्पश्चात यहीं के निवासी हो गए। अणथ्वाल जाति के लोग मूलतः अफगानिस्तान मूल के माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि अणथ्वाल नाम की एक जाति लाहौर, पाकिस्तान में भी रहती है, जो वहां के हिन्दू मंदिरों की पूजा सम्पन्न कराने का काम करती है।
- बौखण्डी : महाराष्ट्र वंशीय बौखंडी ब्राह्मण जाति विलहित से संवत 1700 में गढ़वाल आए और यहां के निवासी हुए। यह जाति स्वयं को भुकुण्ड कवि की संतान बतलाती है।
- जुगराण/जुगड़ाण : पांडे मूल वंश के जुगराण नामक गंगाड़ी ब्राह्मण कुमाऊं से संवत 1700 में गढ़वाल आए और यहां के जुगड़ी नामक गांव में बसने के कारण जुगड़ाण और बाद में जुगराण कहलाए।
- मालकोटी : गौड़ सरोला ब्राह्मण मालकोटी संवत 1700 में अज्ञात स्थान से आकर गढ़वाल के मालकोटी गांव में बस गए और मालकोटी नाम से प्रचलित हुए। इनके मूल पुरुष बालकदास थे।
- बलोदी : दविड़ वंश गंगाड़ी ब्राह्मण बलोदी संवत 1400 में दक्षिण भारत से आकर गढ़वाल के बलोद नामक गांव में बसने के कारण बलोदी कहलाए।
- घनसाला/घणसाला : घणसाला गौड़ ब्राह्मण जाति के लोग संवत 1600 में गुजरात से आकर गढ़वाल के घनसाली अथवा घणसाली नामक गांव में बसने के कारण घनसाला अथवा घणसाला नाम से जाने गए।
- देवरानी/देवराणी : ये भट्ट जाति के ब्राह्मण हैं। जो संवत 1500 में गुजरात से गढ़वाल में आकर बस गए थे।
- पोखरियाल : ये मूलतः गौड़ ब्रह्मण हैं. इनकी पूर्व जाति सज्ञा विल्हित थी, जो संवत 1678 में विलहित से आने के कारण हुई। इस जाति के मूल पुरुष जो पहले विलहित और बाद में पोखरी गाँव, जिला पौडी गढ़वाल में बसने से पोखरियाल प्रसिद हुए। इस जाति की कुछ ब्रह्मण जातीय हिन्दू राष्ट्र नेपाल में भी है, जो प्रसिद शिव मंदिर पशुपति नाथ में पूजाधिकारी भी है। ये जाति गढ़वाल में पौडी के अतिरिक्त चमोली में भी बसी हुई है, टिहरी में इसी जाती नाम से राजपूत जाती भी है, जो सम्भवतः किसी पुराने गढ़ के कारण पड़ी हुई हो।
- डबराल : डबराल महाराष्ट्र वंशीय ब्राह्मण जाति के लोग संवत 1433 में अपने मूल पुरुष विश्वनाथ और रघुनाथ के साथ गढ़वाल के डाबर गांव में आकर बसे थे।
- सुंदरियाल : सुंदरियाल ब्राह्मण जाति के लोग संवत 1711 में गढ़वाल आए। ये कर्नाटक वंश के ब्राह्मण हैं जो गढ़वाल के सुन्द्रोली नामक गांव में बसने के कारण सुंदरियाल कहलाए।
- किमोटी : ये गौड़ वंशीय गंगाड़ी ब्राह्मण बंगाल के मूल निवासी हैं जो कि संवत 1617 में अपने मूल पुरुष रामभजन किमोटा के नेतृत्व में बंगाल से गढ़वाल आए और यहीं किमोता गांव में बस गए।
- बडोला/बुडोला : बडोला गौड़ वंश के गंगाड़ी ब्राह्मण हैं। संवत 1798 में उज्जैन से अपने मूल पुरुष उज्जल के साथ आकर बडोली अथवा बुडोला नामक गांव में बसने से बुडोला कहलाए।
- पांथरी : गढ़वाल के गंगाड़ी सारस्वत ब्राह्मण पांथरी जाति के आदि पुरुष अन्थू और पंथराम संवत 1600 में जालंधर से आकर गढ़वाल के पांथर गांव में आकर बसे और पंथारी नाम से जाने जाते हैं।
- बलोनी/ बलोणी : बलोनी सारस्वत मूल के ब्राह्मण हैं जो जालंधर से 1776 संवत में गढ़वाल के बलोण गांव में आकर बसे और यहीं के निवासी हो गए। जीवराम इनके मूल पुरुष थे।
- पुरोहित : ये जम्मू कश्मीर राजपरिवार के कुल पुरोहित और वहां पुरोहिताई करते थे यही कारण है कि ये पुरोहित नाम से प्रसिद्ध हुए। इनके पहले गांव दसोली में माने जाते हैं तत्पश्चात ये नागपुर पट्टी में भी बस गए थे।
- बडोनी/बडोणी : बडोनी गौड़ ब्राह्मण जाति के लोग सम्वत 1600 में बंगाल से आए और बडोन गांव में बस गए। बडोन गांव में बसने के कारण ही ये बडोनी कहलाए।
- रुडोला : तैलंग मूल के ब्राह्मण रुडोला सिंध हैदराबाद से आकर गढ़वाल के अलग-अलग हिस्सों में बस गए।
- सुन्याल : अज्ञात स्थान से आकर गढ़वाल के सोनी गांव में बसने के कारण ये सुन्याल नाम से जाने गए।
- कोटनाला : ये गौड़ ब्राह्मण जाति बंगाल के निवासी माने जाते हैं जो बंगाल से से सम्वत 1725 में गढ़वाल के कोटी गांव में आकर बस गए। कोटी गांव में बसने के कारण ये कोटनाला कहलाए।
- काला : ऐसा माना जाता है कि काला जाति के लोग गढ़वाल में काली कुमाऊं क्षेत्र से आये और पौड़ी गढ़वाल के सुमाड़ी नामक गांव में बस गए।
- कौंस्वाल : कौंस्वाल जाति के गंगाड़ी गौड़ ब्राह्मण संवत 1722 में गढ़वाल आए और यहां के कंस्याली नामक गांव में बसने के कारण कौंसवाल कहलाए।
- वैरागी : गौड़ मूल के ब्राह्मण वैरागी गढ़वाल में आकर बस गए।
- मलासी : गौड़ वंश के मलासी ब्राह्मण अज्ञात स्थान से आकर मलासू गांव में आकर बसे।
- फरासी : ये द्रविड़ वंश के ब्राह्मण हैं जो संवत 1791 में दक्षिण भारत से गढ़वाल में आए और यहां के फरासू नामक गांव में बसने से फरासी नाम से जाने गए।
- बदाणी/बधाणी : बदाणी अथवा बधाणी कान्यकुब्ज वंश के गंगाड़ी ब्राह्मण संवत 1722 में कन्नौज से गढ़वाल आए। ये सर्वप्रथम गढ़वाल बधाण परगने में बसे इसीलिए बधाणी अथवा बदाणी कहलाए।
- गोदुड़ा : यह गंगाड़ी ब्राह्मण जाति पहले भट्ट थी जो संवत 1718 में दक्षिण भारत से आकर गढ़वाल में बसे। इनके मूलपुरुष गोदू थे। संभवतः उनके नाम से ही इस जाति का नाम गोदुड़ा पड़ा होगा।
- सैल्वाल : ये किसी अज्ञात स्थान से आकर गढ़वाल के सैल गांव में बसने के कारण सैल्वाल कहलाए।
- कुड़ियाल : कुड़ियाल जाति के गौड़ वंशीय ब्राह्मण बंगाल के मूल निवासी हैं जो संवत 1600 में बंगाल से यहां आए। गढ़वाल के कूड़ी नामक गांव में बसने के कारण ये कुड़ियाल कहलाए।
- भट्ट : यह सामान्यतः एक प्रकार की उपाधि थी, जो राजाओं दी जाती थी। कालांतर में ये एक ब्राह्मण जाति के रूप में प्रचलित हुई। भट्ट जाति के लोग मूलतः दक्षिण भारतीय मूल के माने जाते हैं। यह गढ़वाल की एकमात्र जाति है जो सरोला, गंगाड़ी और नागपुरी ब्राह्मणों की सूची में शामिल की गयी है।
- बौराई/बौड़ाई : ये गौड़ वंश के ब्राह्मण हैं जो कि अज्ञात स्थान से संवत 1500 में गढ़वाल आए और वहां के बौधर या बौर गांव में बस गए।
- मैकोटी : कान्यकुब्ज वंश के मैकोटी गंगाड़ी ब्राह्मण संवत 1622 में कन्नौज से गढ़वाल आए। गढ़वाल के मैकोटी नामक गांव में बसने से ये मैकोटी कहलाए।
- बिंजोला : ये द्रविड़ वंश के ब्राह्मण हैं जिनके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।
- सिलवाल : सिलवाल जाति के ब्राह्मण द्रविड़ वंश से सम्बद्ध हैं और ये सम्वत 1600 में बनारस से आकर गढ़वाल के सिल्ला गांव में बसने से सिलवाल हुए।
- भदोला : ये द्राविड वंश के हैं।
- ध्यानी : ध्यानी आदि शंकराचार्य के साथ बद्रीनाथ धाम आए थे और तीर्थ पुरोहित के रूप में कार्य करने लगे। इस जाति के लोग धयेणी गाँव फिर रणकोट और देवप्रयाग के अन्य गाँवों में रहने लगे फिर कालांतर में वहां से एक शाखा लैंसडौन के पास एगर गाँव में बसी और वहाँ से दोबा, दलमोटा और खंद्वारी होते हुए आगे की ओर इडियाकोट, बदलपुर, नैनी डांडा के अन्य गावों से होते हुए अल्मोड़ा की ओर फैली।
(3) अन्य ब्राह्मण : इस श्रेणी में वे सभी ब्राह्मण आते हैं जो उपर्युक्त दोनों श्रेणियों में शामिल नहीं हैं।
बेंजवाल : बेंजवाल कान्यकुब्ज ब्राह्मण जाति के लोग गढ़वाल के अगस्त्यमुनि क्षेत्र में बेंजी नामक गांव के निवासी हैं जो 11वीं शताब्दी में महाराष्ट्र से यहां आकर बसे। बेंजी गांव में बसने के कारण ही इन्हें बेंजवाल कहा गया। प्रसिद्ध इतिहासकार एटकिन्सन ने हिमालयन गजेटियर मैं इस जाति वर्णन किया है। ऐसा माना जाता है कि यह ब्राह्मण जाति अगस्त्य ऋषि के साथ आये 64 गोत्रीय ब्राह्मणों में से एक थी।
पंत : ये मूलतः भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण हैं। जिनके मूल पुरुष जयदेव पंत महाराष्ट्र से 10वीं सदी में तत्कालीन राजाओ के साथ कुमाऊं में आगमन हुआ। तत्पश्चात इनके वंशज चार थोकों में विभाजित हुए जिनसे बाद में मूल कुमाऊंनी पंत ब्राह्मण जाति का आविर्भाव हुआ। बाद में इस जाति के कुछ परिवार गढ़वाल के विभिन्न इलाको में बसे और वहीं के मूल निवासी हो गए। इसके अलावा जखमोला, गोदियाल, उपाध्याय, कुकसाल/खुग्साल, खंतवाल, कब्टियाल/कवटियाल, खरक्वाल/खड़क्वाल आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं लेकिन इनके बारे में जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी।
संकलनकर्ता – नवीन चन्द्र नौटियाल
शोधार्थी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली
मूल निवासी- गांव – रखूण, पट्टी – सितोनस्यूं, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
वर्तमान निवासी- जनकपुरी, नई दिल्ली।
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