द्वी आखरों कु ज्ञान दे

श्रीनगर गढ़वाल: उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की कई स्कूलों में इन दिनों गढ़वाली भाषा में सरस्वती वन्दनाएं हो रही हैं। गढ़वाली बोल एवं बेहतरीन कम्पोजिसन की वजह से ऐसी कुछ वन्दनाओं को काफी पसन्द किया जा रहा है।  इनमें से कुछ बेहतरीन सरस्वती वन्दनाएं श्रीनगर निवासी एवं कीर्तिनगर ब्लाक के रा.इ.कॉ. धद्दी घण्डियाल, बडियारगढ़ में रसायन विज्ञान के प्रवक्ता एवं गढ़वाली कवि संदीप रावत ने भी गढ़वाली भाषा में लिखीं हैं, एवं उनकी धुन स्वयं तैयार की हैं। शिक्षक संदीप रावत द्वारा रचित गढ़वाली सरस्वती वन्दना..

”तेरु ही शुभाशीष च हे जो कुछ बि पायि मिन,
माता सरस्वती हे माँ, माता भगवती हे माँ”

विगत वर्ष से उनके विद्यालय की प्रार्थना सभा में हारमोनियम एंव ढ़ोलक के साथ हो रही है. गढ़वाली में रचित इस सरस्वती वन्दना को जिसे कई कवि सम्मेलनों में शिक्षक संदीप रावत द्वारा एवं छात्राओं द्वारा भी विभिन्न कार्यक्रमों में इसकी प्रस्तुतियां दी जा चुकी हैं।

आजकल एकबार फिर गढ़वाली कवि एवं शिक्षक संदीप रावत एवं द्वारा तैयार की गई एक और नई गढ़वाली सरस्वती वन्दना  अज्ञानै अँध्यारी रात मा द्वी आखरों कु ज्ञान दे, घुली जौ रस बाच मा वीणा कि इन तू तान दे” चर्चाओं में है, इस वन्दना को भी बहुत सराहना मिल रही है। उनके विद्यालय की छात्र- छात्राएं इस सरस्वती वन्दना का बखूबी गायन कर रहे हैं।

संदीप रावत की यह गढ़वाली सरस्वती वंदना भी शब्दों के बोल, बेहतर कम्पोजिसन व सुर – लय-ताल की वजह से लोगों द्वारा बहुत पसंद की जा रही है। यह गढ़वाली सरस्वती वन्दना Rawat Digital Youtube Chanel पर भी देखी-सुनी जा सकती है।

संदीप रावत अब तक गढ़वाली भाषा में चार पुस्तकें प्रकाशित कर चुके हैं और उनके सैकड़ों गढ़वाली लेख-निबन्ध व कविताएं कई पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं।  सुर-ताल की जानकारी होने की वजह से वह अपने गीत काव्य को स्वयं सुर, लय-ताल देते हैं।  साथ ही वह गढ़वाली भाषा एवं गढ़वाली साहित्य को समर्पित “आखर ” समिति, श्रीनगर गढ़वाल के अध्यक्ष हैं। शिक्षण एवं लेखन कार्य के अतिरिक्त वे विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ करते हैं और नई पीढ़ी व अन्य लोगों को अपनी मातृभाषा से जोड़ने का काम कर रहे हैं।