नई दिल्ली : दिल्ली पैरामेडिकल एण्ड मैनेजमेंट इन्टीट्यूट सभागार, न्यू अशोक नगर, दिल्ली में रविवार 08 नवंबर को रावत डिजिटल (बुक पब्लिशिंग हाउस) द्वारा प्रकाशित गढ़वाली एवं कुमाउनी भाषा के लगभग तीन सौ से अधिक रचनाकारों के साझा कविता संग्रह “बिनसिरि” का लोकार्पण हिन्दी, संस्कृत एवं गढ़वाली-कुमाउनी-जौनसारी भाषा अकादमी के सचिव डॉ. जीतराम भट्ट, डीपीएमआई के चेयरमैन एवं समाजसेवी, भाषा संरक्षक डॉ. विनोद बछेती, सुप्रसि़द्ध साहित्यकार, चिटठी-पत्री पत्रिका के सम्पादक एवं सिनेअभिनेता मदन मोहन डुकलाण, सुप्रसिद्ध समाजसेवी, भाषा प्रेमी दिग्मोहन नेगी एवं उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक एवं साहित्यकार दिनेश ध्यानी, रावत डिजिटल के प्रकाशक, बिनसिरि के सम्पादक मण्डल के सदस्य अनूप सिंह रावत, आशीस सुन्दरियाल, श्रीमती रामेश्वरी नादान आदि द्वारा किया गया।
बिनसिरि कविता संग्रह पर वरिष्ठ साहित्यकार मदन मोहन डुकलाण ने कहा कि गढ़वाली-कुमाउनी साहित्यकारों की साझा कविता संग्रह पचास के दशक से चली आ रही परम्परा में एक और कड़ी जोड़ती है। युवा प्रकाशक एवं सम्पादक मण्डल ने बहुत मेहनत की है। ऐसे युवाओं से ही आने वाले समय में हमारी भाषाएं पोषित एवं संरक्षित होंगी।
दिल्ली में गढ़वाली-कुमाउनी-जौनसारी भाषा अकादमी के गठन की मुख्य धुरी रहे डॉ. जीतराम भट्ट ने कहा कि गढ़वाली-कुमाउनी-जौनसारी भाषाओं के सतत विकास के लिए दिल्ली में इन भाषाओं के लिए अकादमी प्रतिबद्ध है। बस कोरोना काल की जल्दी समाप्ति हो और अकादमी सुचारू रूप से पुनः कार्य शुरू कर सके। अभी बहुत सारे कार्य होने हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली में उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच लगातार भाषा के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। जो कि हमारी भाषाओं के लिए अच्छी बात है और अब रावत डिजिटल प्रकाशन भी इस क्षेत्र में कार्य कर रहा है। उम्मीद है कि उत्तराखण्ड में भी हमारी भाषाओं के विकास के लिए अच्छी पहल होगी।
डीपीएमआई के चेयरमैन डॉ. विनोद बछेती ने कहा कि बिनसिरि हमारी भाषाओं के लिए एक नई सुबह लेकर आई है। हम सबको प्रयास करना है कि हमारी गढ़वाली, कुमाउनी भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हों एवं हमारी नई पीढी अपनी भाषा और सरोकारों से जुडे और उनका संरक्षण करे। उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच लगातार इस दिशा में प्रयास कर रहा है।
सुप्रसिद्ध समाजसेवी दिग्मोहन सिंह नेगी ने कहा कि रावत डिजिटल प्रकाशन के माध्यम से प्रकाशित बिनसिरि कविता संग्रह ने दिल्ली एनसीआर में कोरोनाकाल में देश और विदेश में रह रहे उत्तराखण्ड के लगभग तीन सौ से अधिक लोगों की कविताओं को एक ग्रंथ के रूप में छापकर बहुत सराहनीय कार्य किया है।
गढ़वाली एंव कुमाउनी भाषा के साहित्यकार एवं बिनसिरि कविता संग्रह के सह-सम्पादक, संकलन मण्डल के सदस्य रमेश हितैषी ने कहा कि हमारी भाषाओं के साहित्यकारो को एक मंच पर लाकर रावत डिजिटल प्रकाशन ने बेहतरीन काम किया है। मैं भी इस टीम का सदस्य हूं यह मेरे लिए गर्व की बात है।
युवा कवि, भाषा पर गहरी पकड़ रखने वाले युवा व बिनसिरि कविता संग्रह के सम्पादक आशीष सुन्दरियाल ने कहा कि बिनसिरि की परिकल्पना अनूप सिंह रावत की है और उन्होंने जब इस बारे में मुझे बताया तो मुझे उनका यह विचार काफी अच्छा लगा और हमने इस कार्य को मूर्त रूप देना शुरू किया। हमने जहां इस संकलन में नब्बे वर्ष के वरिष्ठ साहित्यकार महाकवि प्रेमलाल भट्ट की कविता को भी स्थान दिया है तो सुदूर गांव में कक्षा आठ-नौ के छात्र-छात्राओं की कविताओं को भी स्थान दिया है। जब ये पीढियां एक दूसरे की कविताओ को पढेंगी तो लगेगा कि कविता कितने समय से अनवरत लिखी जा रही है।
युवा कवि एवं बिनसिरि कविता संग्रह के सम्पादक मण्डल, संकलन के सदस्य सन्तोष जोशी ने कहा कि बिनसिरि युवाओं को लेखन के प्रति जागरूक करने का एक सफल माध्यम है और हमें भी खुशी हुई कि गढ़वाली-कुमाउनी भाषाओं के कवियों को एक साथ एक पुस्तक में स्थान मिला है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच के संयोजक, साहित्यकार दिनेश ध्यानी ने कहा कि बिनसिरि बहुत ही संग्रहणीय ग्रंथ है। इसमे न सिर्फ गढ़वाळी, कुमाउनी कवियों की कविताये हैं बल्कि तीन सौ से अधिक साहित्यकारों के पते और सम्पर्क सूत्र भी हैं। जिससे भविष्य में लोगों को आपसे में जुडे रहने में सुविधा होगी। ध्यानी ने कहा कि हमारी गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाने और पाठकों एवं समाज को अपनी भाषाओं के प्रति जागरूक करने के लिए निकट भविष्य में दिल्ली में एक दो दिवसीय साहित्य सम्मेलन एवं पुस्तक मेले का आयोजन किया जायेगा।
युवा कवि, रावत डिजिटल प्रकाशन के प्रकाशक एवं बिनसिरि कविता संग्रह के सम्पादक अनूप सिंह रावत ने सभी लोगों का धन्यवाद करते हुए कहा कि पहले जब हमने इस किताब पर विचार किया और लोगों से सम्पर्क किया तो कई लोगों को विश्वास नही हुआ। उनका कहना था कि कई लोगों ने हमसे हमारी कविता मांगी लेकिन किताब नही छपी। लेकिन आज जब हमने ये कर दिखाया तो लोगों का हम पर विश्वास भी बढ़ा है और हमारे काम का आप लोग आकलन भी करेंगे कि कैसा किया है। हो सकता है कि कुछ त्रुटियां भी रह गई होंगी जो समय के साथ साथ सुधार दी जायेंगी लेकिन फिर भी हमने प्रयास किया कि अच्छा से अच्छा हम दे सकें। बिनसिरि के प्रकाशन में सहयोग कि लिए वरिष्ठ अधिवक्ता एवं समाजसेवी संजय शर्मा दरमोड़ा, डीपीएमआई के चेयरमैंन डॉ. विनोद बछेती, समाजसेवी एवं गजल गायक अशोक जोशी, वॉइसऑफ़ माउण्टेन के संयोजक जगमोहन जिज्ञासु, सुप्रसिद्ध समाजसेवी दिग्मोहन सिंह नेगी आदि का भी रावत ने आभार व्यक्त किया।
ज्ञातव्य हो कि रावत डिजिटल प्रकाशन पिछले वर्ष फरवरी से प्रकाशन के क्षेत्र मे कार्य कर रहा है और लगभग बीस पुस्तकों का प्रकाशन कर चुका है। गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी एवं रंवाल्टी भाषा प्रेमियों के लिए यह बहुत ही गर्व की बात है।
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार ललित केशवान, पयाश पोखड़ा, जगमोहन सिंह रावत, जयपाल सिंह रावत छिप्वडु दा, अगस्त मुनि से आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल, चन्दन प्रेमी, दर्शन सिंह रावत, डॉ. सतीश कालेश्वरी, श्रीमती रूचि जैमल, सार्बभौमिक संस्था के संयोजक अजय सिंह विष्ट, भगवती प्रसाद जुयाल गढ़देशी, कुंज बिहारी मुण्डेपी कळजुगी, ओम प्रकाश आर्य, श्रीमती लक्ष्मी नौड़ियाल, श्रीमती विजय लक्ष्मी भट्ट, बीरेन्द्र जुयाल उपरि, यूके टाईम से श्रीमती यशोदा जोशी, विमल सजवाण, उदय मंमगांई राठी, सुरेन्द्र सिंह रावत सुरू भाई, सुरेन्द्र सिंह रावत लाटु, धीरेन्द्र बर्तवाल, अनोप सिंह नेगी खुदेड़, गोविन्द रात पोखरियाल साथी, श्रीमती ममता रावत, प्रवीण सिंह रावत बढियारगढी, सुनील सिन्दधववाल, हरीश मंमगांई, मनोज बिष्ट, नवीन बहुगुणा समेत कई गण्यमान्य लोग उपस्थित थे।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया था। जिसमें कई कवियों ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार दिनेश ध्यानी ने किया।