श्रीनगर गढ़वाल: बुध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर शुक्रवार कल्याणेश्वर धर्मशाला, श्रीनगर में हिमालयन कला एंव साहित्य परिषद् चेरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में नामचीन साहित्यकार असिस्टेंट प्रोफेसर राजकीय महाविद्यालय जोशीमठ के डॉ. चरण सिंह केदार खंडी के द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘मैं लौट कर आऊंगा चिनार’ का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर डीआर पुरोहित, विशिष्ट अतिथि डाइट प्राचार्य देहरादून राकेश जुगराण रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिमालय साहित्य कला परिषद की मुख्य ट्रस्टी प्रोफेसर उमा मैठाणी तथा कार्यक्रम का संचालन नीरज नैथानी व डॉ. प्रकाश चमोली ने सयुंक्त रूप से किया। सस्कृत महाविद्यालय के छात्रों द्वारा वचन व मां सरस्वती की वंदना के साथ आरंभ हुआ।
कार्यक्रम में पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष कृष्णा नंद मैठाणी, विमल बहुगुणा, जय कृष्ण पैन्युली, राजीव विश्नोई, गंगा असनोडा थपलियाल, देवेंद्र उनियाल, महेश गिरि, व्यापार सभा के जिला अध्यक्ष वासुदेव कण्डारी, बीरेंद्र रतुडी, शम्भू प्रसाद भट्ट, आरपी कपरवाण, अनिल स्वामी, डॉ. दीपक, रेखा रावत, माधुरी नैथानी, आखर के अध्यक्ष संदीप रावत, रक्षा उनियाल, रेखा चमोली, पूनम रतूडी, प्रेस क्लब श्रीनगर गढ़वाल के अध्यक्ष श्रीकृष्ण उनियाल व देवेंद्र गौड़ आदि मौजूद रहे।
मैं लौटकर आऊंगा चिनार…
मैं लौटकर आऊंगा चिनार….कश्मीरी पंडितों के दर्द को उकेरती और घाटी के जल, जमीन और जंगल से एक दिन लौट आने का वादा करती 60 कविताओं का संग्रह है। प्रो. केदारखंडी एक गहन अध्येता हैं, उनका चिंतन और लेखन संवेदनाओं से पगा है। जो अच्छा पढ़ेगा वो अच्छा लिखेगा और बोलेगा भी। केदारखंडी इन सभी मानकों पर खरे उतरते हैं। भाषाविद होने के कारण शब्द जैसे उनके इशारों पर चलते हैं।
कश्मीर की बेबसी पर केंद्रित इस काव्य संग्रह में दर्द है, हताशा है, अविश्वास है, बर्बरता है, आक्रोश है लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण भाव है वह आशा और उम्मीद का है। कहते हैं उम्मीद पर सब कायम है। दर्द और वेदना के इस दस्तावेज में अंततः “शव को शिव” में बदलने का संकल्प है। ये संकल्प और उम्मीद ही इस संग्रह की कविताओं का केंद्रीय तत्व है। कवि ने उम्मीद से भरी शीर्षक कविता “मैं लौटकर आऊंगा चिनार” में मंगलकामना के इसी उदघोष को कलमबद्ध किया है……..
आम कश्मीरी की व्यथा कथा का दस्तावेज़ है… मैं लौटकर आऊंगा चिनार…….
केदारखण्डी के दूसरे काव्य संग्रह का नाम ही अथक उम्मीद से लबरेज़ एक वायदा है घाटी का प्रतिनिधित्व करते चिनारो से। चिनार क्या खूबसूरत नाम और क्या खूबसूरत दरख्त है!!
कहते हैं कि जब औरंगजेब को ये सूचना दी गई कि कश्मीर में एक ऐतिहासिक मस्जिद में आग लग गई है तो उसने कहा कि मस्जिद तो दुबारा तामीर हो जायेगी लेकिन मस्जिद के आंगन में खड़े चिनारों को हर हाल में बचाया जाना चाहिए क्योंकि अगर चिनार जल गए तो हज़ार औरंगजेब भी मिलकर एक बूढ़े चिनार को पैदा नहीं कर सकते।
कवि पुस्तक की भूमिका में लिखता है कि आदमी उस समय सबसे बदसूरत और खूंखार दिखता है जब वह किसी दूसरे व्यक्ति से देश, जाति, धर्म और लिंग के आधार पर नफ़रत करने लगता है।
सारे धर्म मनुष्यता की बात करते हैं फिर कौन है जो मनुष्यता के बीच विभाजन रेखा खींच देता है। कवि इस दर्द को और भी डूब कर महसूस करता है, परिणाम कागज़ पर दिखलाई पड़ता है। केदारखंडी लिखते हैं कि यदि इस दर्द को मैं कागज़ न देता तो यह मेरा मस्तिष्क भेदकर बाहर निकल जाता….! डॉ. चरण सिंह तमाम वेदना और आक्रोश को महसूस करते हुए उम्मीद का दामन थामे हुए हैं,
यदि कश्मीर के बाशिंदे खुले मन से अपने हमवतनों का खैरमकदम करें तो चिनार फिर से रंगत में आ जायेगा,नदी झरनों से अमन का संगीत फूट पड़ेगा।झेलम के दोनों किनारों पर मंदिर की घंटियां बज उठेंगी।