Rifleman Jaswant Singh Rawat

Rifle Man Jaswant Singh Rawat : उत्तराखंड को यूं ही वीर भूमि नहीं कहा जाता है। यहाँ से जांबाज सैनिकों ने न सिर्फ देश के लिए अपनी प्राणों की आहुति बल्कि शहीद होने से पहले जांबाजी के ऐसे ऐसे हैरतअंगेज कारनामे कर गए कि दुश्मन भी उनकी वीरता का कायल हो गया। ऐसे ही एक जांबाज योद्धा थे राइफल मैन जसवंत सिंह रावत, जिनकी सौर्य गाथा भारत ही नहीं अपितु दुनियाभर में मशहूर है।

आज देश के महान सपूत जसवंत सिंह रावत का जन्मदिवस है। जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त, 1941 को उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल जिले में हुआ था। उनके अंदर देशप्रेम इस कदर भरा था कि 17 साल की उम्र में ही सेना में भर्ती होने चले गए। लेकिन कम उम्र के चलते उन्हें नहीं लिया गया। हालांकि, 19 अगस्त 1960 को जसवंत को सेना में बतौर राइफल मैन शामिल कर लिया गया। 14 सितंबर, 1961 को उनकी ट्रेनिंग पूरी हुई। इसके एक साल बाद ही यानी 17 नवंबर, 1962 को चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करने के उद्देश्य से हमला कर दिया। इस दौरान सेना की एक बटालियन की एक कंपनी नूरानांग ब्रिज की सेफ्टी के लिए तैनात की गई, जिसमें जसवंत सिंह रावत भी शामिल थे। चीनी सेना हावी होती जा रही थी, इसलिए भारतीय सेना ने गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुला लिया। लेकिन इसमें शामिल राइफलमैंन जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी और गोपाल गुसाई नहीं लौटे। ये तीनों सैनिक एक बंकर से गोलीबारी कर रही चीनी मशीनगन को छुड़ाना चाहते थे। तीनों जवान चट्टानों और झाड़ियों में छिपकर भारी गोलीबारी से बचते हुए चीनी सेना के बंकर के करीब जा पहुंचे और महज 15 यार्ड की दूरी से हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए दुश्मन सेना के कई सैनिकों को मारकर मशीनगन छीन लाए। इससे पूरी लड़ाई की दिशा ही बदल गई और चीन का अरुणाचल प्रदेश को जीतने का सपना पूरा नहीं हो सका। हालांकि, इस गोलीबारी में त्रिलोकी और गोपाल मारे गए। परन्तु जसवंत सिंह रावत ने हार नहीं मानी और लगातार 72 घंटे भूखे-प्यासे रहकर चीनी सैनिकों न सिर्फ रोके रखा, बल्कि दुश्मन देश के 300 सैनिकों को अकेले ढेर कर दिया था। जसवंत सिंह रावत ने अकेले ही अपनी पोस्ट बदल-बदल कर चीनी सैनिकों इस भ्रम में रखा कि अभी भारत के काफी जवान वहां पर है, जो कई जगहों से गोलियां चला रहे हैं। जसवंत सिंह ने सभी पोस्ट पर रायफल रख दी थी और पोस्ट बदल बदल कर कई जगहों से अकेले ही गोलियां चला रहे थे। इस तरह से उन्होंने अकेले ही लगभग 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया। इसकी भनक जब चीनी सैनिकों लगी तो उन्होंने जसवंत रावत को घेर लिया। परन्तु इस महान योद्धा ने दुश्मन की गिरफ्त में आने से पहले ही स्वयं एक गोली अपने सीने में दाग दी और शहीद हो गए। कहा जाता है कि चीनी सैनिक उनका सिर काटकर ले गए। इसके बाद 20 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी। राइफलमैन रावत को 1962 के युद्ध के दौरान उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

जसवंत सिंह रावत को मृत्यु के बाद भी मिलता रहा प्रमोशन

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत भारत-चीन युद्ध में अरुणाचल प्रदेश में नूरानांग की लड़ाई के दौरान 17 नवंबर 1962 को शहीद हो गए थे। परन्तु अरुणाचल के लोग उन्हें आज भी मृत नहीं मानते हैं। माना जाता है कि वह आज भी सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं। यही नहीं वे भारतीय सेना के अकेले सैनिक हैं, जिन्हें मौत के बाद प्रमोशन मिलना शुरू हुआ था। पहले राइफल मैन से नायक बने, फिर कैप्टन और फिर मेजर जनरल बने। इस दौरान उनके घरवालों को पूरी सैलरी भी पहुंचाई गई।

जिस चौकी पर जसवंत सिंह ने आखिरी लड़ाई लड़ी थी उसका नाम अब जसवंतगढ़ रख दिया गया है और वहां उनकी याद में एक मंदिर बनाया गया है। मंदिर में उनसे जुड़ीं चीजों को आज भी सुरक्षित रखा गया है। पांच सैनिकों को उनके कमरे की देखरेख के लिए तैनात किया गया है। वे पांच सैनिक रात को उनका बिस्तर करते हैं, वर्दी प्रेस करते हैं और जूतों की पॉलिश तक करते है। सैनिक सुबह के 4.30 बजे उनके लिए बेड टी, 9 बजे नाश्ता और शाम में 7 बजे खाना कमरे में रख देते हैं। शहीद जसतंव सिंह रावत के शौर्य गाथा पर एक फिल्म 72 Hours Martyr Who Never Died भी बनी है।