उत्तराखण्ड राज्य से पलायन पर चर्चा और राजनीति, राज्यस्थापना से कई समय पूर्व से जारी है, हालांकि राज्य स्थापना के बाद इसमे रोक लगनी चाहिऐ थी, किंतु पलायन बदस्तूर व बहुतायत जारी है। सरकारें आयोग गठित करती है, आयोग अपनी संस्तुतियां सरकारों को सौंपते हैं, बिचार गोष्ठियां होती हैं, लम्बी-लम्बी चर्चायें होती हैं, लेकिन हासिल फिर भी सिफर है। 2011 की जनगणना के सरकारी आंकडों के अनुसार, राज्य मे कुल 1048 गाँव ऐसे हैं, जहाँ एक भी परिवार नहीं रह रहे हैं । इन गाँवों को “भूतिया गाँव” (GHOST VILLAGE) नाम दिया गया है। ये आंकड़े आज से लगभग 6-7 वर्ष पूर्व के हैं, वर्तमान मे “घोस्ट विलेज” की संख्या कई ज्यादा हो चुकी होगी। पहले पलायन केवल रोजगार के लिऐ हो रहा था, किन्तु रोजगार मिल जाने पर भी उत्तराखण्ड से पलायन जारी है।
नब्बे के दशक के बाद लोगों का जीवन स्तर यकायक बदला है, यद्यपि गरीबी बेरोजगारी विद्यमान है, किंतु निजी कम्पनियों मे रोजगार हासिल भी हुआ। लोगों के पास धन की उपलब्धता बढ़ी है, जीवन स्तर सुधारने बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं, बेहतर जीवन शैली के लिऐ लोगों ने गाँव छोडने शुरु किये। यद्यपि आज पहाड़ी भागों मे सड़क सुविधा व परिवहन के साधन बहुत सुधर गये हैं, किंतु मैदानी, शहरी भागों मे बसने की अंध-होड़ ने गाँव के गाँव खाली कर दिये, यद्यपि आज भी गावों मे कुछ ऐसे मजबूत जीवट के लोग टिके हैं, जो मजबूत आर्थिक स्थति के होते हुऐ भी अपने गाँव, पहाड़ से बेपनाह लगाव के कारण अपनी जड़ जमीन मे टिके हैं।
लेकिन अधिसंख्य लोग लगातार निकल रहे हैं, यद्यपि पहाडों मे आज भी समस्यायें हैं, बाजार की अनुपलब्धता कृषि को रोजगार का साधन बनाने से रोकती है, स्वरोजगार हेतु बैंकों से युवाओं को कर्ज उपलब्घ कराने मे बैंक कर्मियों और युवाओं मे संवादहीनता, जिसका एक कारण पहाड़ी भागों मे सरकारी व गैर सहकारी बैंको की सीमित संख्या, बैंक प्रबंधकों का अनमना व्यवहार, युवाओं मे स्वरोजगार हेतु प्रोत्साहन न होना, स्वरोजगार को रोजगार के रुप मे ना देखना, तथा नौकरी व सरकारी नौकर बनने की लालसा, गाँव मे रहने वाले युवाओं को जो पशु पालन व खेती से आजीविका का साधन बनाते हैं, उनके प्रति हेय की भावना भी एक कारण है।
इसके अतिरिक्त वन्य जीवों से होने वाली जान माल की हानि, भी बडा कारण है, बिगत दिवस यमकेश्वर मे भालू गाँव मे घुसकर दो लोगों को मरणासन्न कर देता है, तो कहीं गुलदार आंगन से बच्चे उठाकर ले जाता है, अपनी व अपने नौनिहालों की वन्य जीवों से सुरक्षा भी पलायन एक कारण है, बर्षा आधारित खेती खाद्य सुरक्षा की गारंटी नही देती, वन्य जीवों द्वारा मवेशियों के मारे जाने पर वन विभाग की असहयोग व आम गरीब के साथ उचित व्यवहार न होना, आदि कई काऱण है। परन्तु पलायन का सबसे बड़ा कारण गांवो में स्वास्थ्य सुविधाओं का न होना है। जिसकी ओर सरकार बिलकुल भी ध्यान नहीं दे रही है। पहले ही उत्तराखण्ड में अस्पतालों की भारी कमी है। और जहाँ अस्पताल हैं, वहां डॉक्टर नहीं हैं, हाल के आंकड़ो के मुताबिक उत्तराखण्ड में डॉक्टरों के लगभग 50 से 60 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं।
हालाँकि स्वास्थ्य सेवा सम्बन्धी समस्याओं को छोड़कर पलायन की उपरोक्त अन्य समस्याऔ के निराकरण हेतु उत्तराखण्ड की वर्तमान सरकार व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिहं रावत ने, दिलचस्पी दिखाई है, खासकर राज्य मे रोजगार के अवसर एवं स्वरोजगार की दिशा मे आगे बढ़ रही है। “घेस” जो की सीमांत का एक गाँव है वहां के स्थानीय किसानो को मटर की खेती पर पचास रुपये किलो सरकारी खरीद ,किसान प्रोत्साहन हेतु उठाये गये कदमों मे एक है।
इस तरह की योजनायें सरकार के प्रति विश्वास पैदा करती हैं। परन्तु अभी भी इस दिशा मे बहुत काम करना बाकि है एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखण्ड राज्य मे कुल 7555 ग्राम पंचायतें, 16793 गांव हैं, जिनमे से लगभग 3000 गाँव अब तक खाली हो चुके है, लगभग 32 लाख लोगों ने पहाड़ छोड़ दिया है, 2 लाख 80 हजार घरों में ताले लटके हैं, 650 जर्जर गाँव आपदाग्रस्त घोषित, 5000 गाँव सड़क सु़विधा से वंचित, 2344 प्राथमिक व जूनियर हाईस्कूल बंदी के कगार पर हैं।