सनातन धार्मिक पद्धति वसुधैव कुटुंबकम को अपने में समाये हुए हैं। वहीं हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में जहां धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के पुरुषार्थ को आगे बढाने का मार्ग बताया गया है, वही वेदों में मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र, स्वास्थ्य, संगीत जैसे सभी विधाओं के बारे में विश्लेषण कर समाज को सही दिशा में आगे बढने का मार्ग प्रशस्त किया गया है। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में 12 महीनों में प्रत्येक माह का अपना महत्व और महात्म्य माना गया है। इसी प्रकार से श्रावण माह का अपना प्रभावकारी महत्व है। श्रावण माह में विवाह, वास्तुपूजन जैसे कार्य सम्पन्न नहीं किये जाते हैं लेकिन यह माह अनुष्ठान तन्त्र, मन्त्र, दिव्यता प्राप्त करने के लिए बड़ा ही शुभकारी माना जाता है। हमारे गढवाल में गते के आधार पर महीने की गणना की जाती है। सक्रांति के आधार पर ही नया महीना प्रारम्भ होता है। इस आधार पर हमारे उत्तराखंड और नेपाल में 16 तारीख से श्रावन का महीना शुरू हो रहा है। हालांकि देश के अन्य हिस्सों में सावन का महीना 06 जुलाई से शुरू हो चुका है। श्रावण मास में अनवरत भगवान शिव की पूजा की जाती है। नियमित शिवलिंग में जलाभिषेक करने से मनोकामना पूर्ण होती है। भक्तों को शिवालय मै जाकर प्रत्येक सोमवार को शिव सहस्त्र नाम का पाठ करते हुए 1100 बार ऊ नमः शिवायः का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। काल सर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही यह भी जरूरी है कि इस माह में रूद्राक्ष की माला धारण करनी चाहिये। इस विषय में शिव महापुराण में कहा गया है कि, जो भक्त रूद्राक्ष की माला धारण करता है, ललाट पर त्रिपुन्ड लगाता है और पंचाक्षर मन्त्र का जप करता है, वह परम पूजनीय की श्रेणी में आ जाता है और वह यमलोक नहीं जाता जाता है। श्रावण मास में शिव की पूजा के लिए बेलपत्र जरूरी हैं। बिना बेलपत्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। शिव महापुराण में इस तरह का विवरण है कि जो व्यक्ति दो अथवा तीन बेलपत्र शुद्धता पूर्वक भगवान शिव को श्रद्धां पूर्वक अर्पित करता है उसे निसन्देह भव सागर से मुक्ति मिल जाती है। बेलपत्र स्पर्श दर्शन से ही सम्पूर्ण पापों से मुक्ति मिल जाती है। बेलपत्र को चौथ, अमावस्या, अष्टमी, नवमी और सोमवार के दिन नहीं तोडना चाहिए।
श्रावण मास में सोमवार के साथ ही मंगलवार व्रत की भी अपनी अलग उपादेयता है। यह व्रत उन लडकियों के लिए बडा ही मंगलकारी है जो मंगली हैं और जिन्हें योग्य वर की प्राप्ति नहीं हो रही है या जिनका दाम्पत्य जीवन सही नहीं है। यह व्रत मां पार्वती के नाम से लिया जाता है। माँ पार्वती की पूजा करने से शिव भगवान बहुत जल्दी खुश हो जाते हैं। इसलिए भक्तों को श्रावण मास में भगवान शिव के साथ माँ पार्वती की पूजा भी अनिवार्य रूप से करनी चाहिए।
लेखक : अखिलेश चन्द्र चमोला, स्वर्ण पदक प्राप्त, राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित, हिन्दी अध्यापक तथा नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल