नैनीताल: उत्तराखंड के नैनीताल हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए प्रदेश सरकार को उपनल कर्मचारियों को एक साल के भीतर नियमावली के अनुसार नियमित करने का आदेश दिया है। अपने आदेश में कोर्ट ने यह भी कहा है कि उपनलकर्मियों को न्यूनतम वेतनमान जरूर मिले और उनको छह माह के अंदर एरियर तथा महंगाई भत्ता भी दिया जाए। कोर्ट ने सरकार को यह भी आदेश दिया है कि वह उपनलकर्मियों के एरियर से जीएसटी या सर्विस टैक्स की कटौती न करे। बता दें कि वर्तमान में प्रदेश के विभिन्न विभागों में 21 हजार से अधिक उपनलकर्मी तैनात हैं।
वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ ने इसकी सुनवाई की। पूर्व में कुंदन सिंह नेगी ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजकर उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम उपनल द्वारा की जा रही नियुक्तियों पर रोक लगाने की मांग की थी। पत्र में कहा गया था कि उपनल का संविदा लेबर एक्ट में पंजीकरण नहीं है, इसलिए यह असंवैधानिक संस्था है। उपनल का गठन पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों के लिए किया गया है लेकिन राज्य सरकार ने इस संस्था को आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्ति का माध्यम बना दिया है। उपनल पर पूर्ण नियंत्रण राज्य सरकार का है। उपनल कर्मियों के सामाजिक व आर्थिक स्थिति को देखते हुए भविष्य के लिए नीति बनाने की मांग की थी। हाई कोर्ट ने इस पत्र का स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया था।
कोर्ट ने इस मामले में हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एमसी पंत को न्यायमित्र नियुक्त किया था। अधिवक्ता पंत ने कोर्ट को बताया कि कर्मचारियों ने जब याचिका दायर की तो सरकार की ओर से बताया गया कि उन्हें साल में फिक्सनल ब्रेक दिया जाता है। कोर्ट ने इस ब्रेक को ना देने तथा इसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध माना था। सोमवार को हाई कोर्ट की ओर से उपनल कर्मियों को नियमावली के अनुसार नियमित करने तथा उन्हें न्यूनतम वेतनमान देने के आदेश पारित किए।