mango orchards in hills of uttarakhand

योजनाओं में आपूर्ति किये गये आम के पौधों में Feeder roots काफी कम होती है तथा मुख्य जड़ कटी हुई होती है। यदि आप आम के इन पौधों की पिन्डी (जड़ों पर लिपटी मिट्टी) को हटायेगें तो स्थिति स्पष्ट हो जायेगी। खेत में इन पौधों को लगाने पर प्रथम वर्ष में ही 40 से 60 % तथा आगामी एक या दो वर्षो में 80 % तक मृत्युदर हो जाती है। इससे कृषकों को काफी आर्थिक नुकसान पहुंचता है।

अतः कृषकों को सलाह दी जाती है कि यथा स्थान (in situ) ग्राफ्टिगं कर, आम के बाग विकसित करें। आम उत्तराखंड का एक प्रमुख फल है। उद्यान विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 35,911 हैक्टेयर क्षेत्र फल आम के बाग हैं, जिनसे 1,49,727 मैट्रिक टन फसल प्राप्त होती है।

पहाड़ी क्षेत्रो में आम की फसल मैदानी क्षेत्रो की अपेक्षा एक माह बाद (जुलाई/अगस्त) में पक कर तैयार होती है। इस प्रकार यहां का आम उत्पादक आम की फसल से अच्छा आर्थिक लाभ ले सकता है।

पहाड़ी क्षेत्रो में आम के बीजू पौधे 1400 मीटर (समुद्र तल से ऊंचाई) तक देखे जा सकते है। किन्तु आम की अच्छी उपज समुद्र तल से 1000 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानो से ही प्राप्त होती है। अधिक ऊंचाई वाले स्थानो में उपज कम हो जाती है।

उधान विभाग द्वारा विभिन्न योजनाओ-जिला योजना, राज्य सैक्टर, भारत सरकार की हार्टिकल्चर टैक्नोलॉजी मिशन, कृषि विकास योजना, ग्राम्या, जलागम विभिन्न गैर सरकारी संगठनों द्वारा विगत कई वर्षों से आम फल पट्टी विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। किन्तु वास्तविकता यही है कि हजारों करोड रुपये के लाखों पौधे प्रति बर्ष योजनाओं में लगाने के बाद भी पहाड़ी क्षेत्रों में आम की नई फल पट्टियां विकसित होती नहीं दिखाई देती है। आम के कलमी पौधे रोपण हेतु पहाड़ी क्षेत्रों में राज्य के मैदानी क्षेत्रो या उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद, सहारनपुर आदि स्थानों की पंजीकृत पौधालयों से आपूर्ति किये जाते है।

योजनाओं में आपूर्ति किये गये इन आम के पौधों में Feeder roots काफी कम होती है तथा मुख्य जड़ कटी हुयी होती है। यदि आप आम के इन पौधों की पिन्डी (जडो पर लिपटी मिट्टी) को हटायेगें तो स्थिति स्पष्ट हो जायेगी। ऐसा पौध उत्पादकों का अधिक आर्थिक लाभ लेने की वजह से मानको का पालन न करना है।

मैदानी क्षेत्र से आपूर्ति किये गये इन पौधों की ज्यादातर पिन्डियां सड़क द्वारा यातायात में मानकों का पालन न करना (दो ट्रकों के पौधे एक ही ट्रक द्वारा ढुलान, भले ही कागजों में ढुलान पर दो ट्रक दिखाये जाते हों) एंव सड़क से किसान के खेत तक पहुचाने में टूट जाती हैं, जिससे पौधों को काफी नुकसान होता है। खेत में इन पौधों को लगाने पर प्रथम वर्ष में ही 40 से 60 % तथा आगामी एक या दो वर्षो में 80 % तक मृत्युदर हो जाती है। इससे कृषकों को काफी आर्थिक नुकसान पहुंचता है तथा उसका योजनाओं से विश्वास भी हटता जा रहा है।

यह क्रम विगत कई वर्षो से चल रहा है विभागों को इस प्रकार की योजनाओ का वास्तविक मूल्याकन कर योजनाओ में अपेक्षित परिवर्तन कर सरकारी धन के दुरपयोग को रोकना चाहिए।

पहाड़ी क्षेत्रों में कैसे विकसित करें आम के बाग

In-situ (यथा स्थान) ग्राफ्टिग कर पहाड़ी क्षेत्रों में आम के बाग विकसित करें. आम के बाग लगाने हेतु समुद्र तल से 1000 मीटर तक ऊचाई वाले स्थानो या जिन स्थानो पर पहले से ही आम के बाग अच्छी उपज दे रहे है का चयन करे। जिन स्थानो पर पाला ज्यादा पडता हो उन स्थानो का चयन ना करे।

माह मई/जुन में 10×10 मीटर (लाइन से लाइन 10 मीटर तथा लाइन में पौध से पौध की दूरी 10 मीटर) पर 1x1x1 मीटर के गड्डे खोदें। जुलाई के प्रथम सप्ताह में खुदे हुये गड्डों में 30-40 किoग्राo सडी गोबर की खाद मिला कर भर दें।

स्थानीय पके आम(बीजू/कलमी) के फलौ की गुठलियां इकठ्ठा करे। बाजार में उपलब्ध पके आमो की गुठलियां भी इकठ्ठा कर सकते हैं। इकठ्ठा की गयी गुठलियों को पानी से भरी बाल्टी में डालें तथा जो गुठलियां तैर रही हों उन्हे अलग कर फेंक दे। पानी में डुबी गुठलियों को इकठ्ठा कर किसी नम स्थान पर रखे। आम की गुठलियां अन्यत्र से भी इकठ्ठा कर मगाये जा सकती है।

एक हैक्टियर (50 नाली) में बाग विकसित करने हेतु 220-250 गुठलियों की आवश्यकता होगी। दो-दो गुठलियां पहले से ही तैयार गड्डों में रोपित करें। योजनाओं में आम के पौधे लगाते समय थावलों में एक या दो आम की गुठली भी रोपित करें, जिससे पौधे की मृत्यु होने पर गुठली के जमाव से विकसित बीजू पौधै पर ग्राफ्ट बांधा जा सके। माह सितम्बर तक इन गुठलियों में जमाव हो जाता है आवश्यकतानुसार इन पौधों कि सिंचाई व निराई, गुढाई करते रहे अगले वर्ष जुलाई/अगस्त तक ये पौधै पेन्सिल साइज के मोटे हो जायेगें तथा ग्राफ्टिंग हेतु तैयार हो जायेगें।

कलम बाधना (Grafting) :

  • जुलाई/अगस्त का माह ग्राफ्टिंग हेतु उपयुक्त समय होता है उस समय वातावरण में नमी रहती है। कलम बाधना (ग्राफ्टिंग) वह प्रक्रिया है जिसमे दो पौधों के कटे भागों को इस प्रकार बाधंते है कि दोनो एक दुसरे से जुड जायें और एक नये पौधे के रुप में बढने लगे।
  • आम में कलम बाधने के अनेक तरीके है इनमें सबसे आसान और अपनाये जाने वाला तरीका है फन्नी कलम बाधना जिसे हम Clift Grafting और wedge grafting कहते है ।
  • कलम बाधने की इस विधि में सबसे पहले जिन किस्मों( दशहरी, चौसा, बाम्बे ग्रीन, लगडा आदि) का बाग बनाना हो उनके मातृ वृक्षों का चयन करते हैं मातृ वृक्ष अच्छी उपज देने वाले व रोग रहित हों।
  • चयनित मातृ वृक्षो मे 3-4 माह पुरानी स्वस्थ्य एंव रोग रहित शखाऔ का चयन करते है। चयनित शाखाऔ के अग्र भाग से पत्तियों कि सिकेटियर की सहायता से काट लेते है और उसे 7 से 10 दिनों तक पेड पर ही छोड देते हैं, जब चयनित शाखाऔ के अग्र भाग की कलियां (bud) फुटने लगे इस अवस्था में bud stick (कलम) को 10-15 से०मी० लम्बाई पर काट देते हैं स्थानीय रुप से यदि कलम (cion) उपलब्ध नही हो तो अन्यत्र से भी मगाये जा सकते हैं।
  • खेत में लगे बीजू पौधे (मूल वृन्त) को जमीन से 20 से 30 सेमी० की ऊचाई पर काटने के बाद तने के मध्य में 4 से 5 से०मी० गहरा कट ग्राफ्टिंग चाकू की मदद से लगाते हैं। इतनी ही लम्बाई (4 से 5 सेमी) का कलम के निचले भाग में V(वी) आकार से छिलते हैं इस छिले हुये कलम के भाग को मूलवृन्त के कटे हुये भाग में लगा देते हैं (फंसा देते हैं) कलम लगाने के बाद इसे अच्छी तरह से दबाते है ताकि पौधे की कलम और मूलवृन्त का कैम्वियम (वृद्दि करने वाली कोशिकाऔ की रिंग) अच्छी तरह से सम्पर्क में आ जायें। इस जोड को बाधने के लिये पौलीथीन कि पट्टी का प्रयोग करते हैं। जिसकी चौडाई 2 सेमी. और लम्बाई 25-30 सेमी. होनी चाहिये। इस पालीथीन को हाथ की मदद से जोड के पास कस कर बांध देते हैं जिससे अन्दर हवा न रह जाय। पौलीथीन को बाहर से टेप से बांधा जा सकता है कलम के ऊपरी भाग एंव जोड को प्लास्टिक कैप से ढक लेते हैं जिससे कलम मे वाष्पीकरण ज्यादा न हो पाये तथा अन्दर नमी बनी रहे।
  • लगभग 45 दिनों बाद कलम मूल वृन्त से जुड पाती है कलम के अग्र भाग में जैसे ही पत्तियां आनी शुरु हो जाये पालीथीन कैप हटा लेते हैं जब तक कलम व मूलवृन्त ठीक से नही जुडते हैं विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है कि कोई कलम को न हिलाये। ध्यान रहे ग्राफ्ट बांधते समय खेत मे नमी बनी रहे।
  • कलम बाधने हेतु उधान विभाग एंव पंजीकृत पौधालयों के प्रशिक्षित मालियों का सहयोग लिया जा सकता है ।

In-situ ग्राफ्टिंग द्वारा विकसित आम के बाग के कई लाभ है।

  • पौधों में तिव्र गति से अधिक बढवार होती है।
  • बाहर से कलमी पौधे ला कर लगाने में जो मृत्यु दर अधिक होती है in-situ ग्राफ्टिंग में सभी पौधे जीवित व स्वस्थ्य रहते हैं।
  • बाग से जल्दी economical उपज प्राप्त होती है।
  • क्योंकि कलमों का चुनाव हम स्वयंम स्वस्थ्य मातृ वृक्षो के करते हैं इस प्रकार फैलने वाले रोगों (माल फोरमेसन आदि) से बचा जा सकता है।
  • बाग मे सिचाई की कम आवश्याकता होती है क्योंकि बीजू पौघे मूल वृन्त की जडे काफी गहरी चली जाती है।
  • बाग मे लगे सभी पौधों की बढवार एक समान रहती है जबकि नरसरी से रोपित किये गये कलमी पौधों में मृत्यु दर काफी रहती है हर वर्ष मरे हुये पौधों के स्थान पर नया जीवित पौध लगाते हैं यह क्रम कई वर्षो तक चलता रहता है इस प्रकार इन बागों के पौधों की बडवार में समानता नहीं रहती है।
  • कम लागत में बगीचा विकसित होता है।
  • आम के पौधों को शुरु के वर्षो में पाला काफी नुकसान पहुंचाता है शुरु के तीन वर्षो तक पौधों को 15 नवम्बर के बाद मार्च तक सूखी घास से चारों तरफ से ढक कर रखें, दक्षिण दिशा की तरफ थोडा खुला छोड दें । पौधों के थावलों में नमी बनी रहे जिससे पाले का असर पौधों पर न हो पाये सूखे में पाला पौधों को ज्यादा नुकसान करता है।
  • इस प्रकार In-situ ग्राफ्टिंग विधि द्वारा उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में आम के बाग विकसित किये जा सकते है।

आम में ग्राफ्ट बांधने का वीडियो नीचे दिए गए लिंक में देखे:

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर आदि क्षेत्रों में आम के बाग in situ (यथा स्थान ग्राफ्टिंग ) विधि से ही बिकसित हुए हैं।

राज्य बनने पर आश जगी थी कि योजनाओं में यहां की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार सुधार होगा किन्तु ऐसा नहीं हुआ । आज भी योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उत्तरप्रदेश के समय चलती थी। उच्च स्तरीय बैठकों में योजनाओं की समीक्षा के नाम पर केवल कितना बजट आवंटित था और कितना अब तक खर्च हुआ इसी पर चर्चा होती है। यदि धरातल पर योजनाएं नहीं उतर रही है तो उसमें कैसे सुधार किया जाय कभी बिचार नहीं होता। राज्य में नर्सरी एक्ट लागू हो गया है इससे कृषकों को कितना लाभ मिलेगा आने वाला समय ही बताएगा।

लेखक : डॉ. राजेन्द्र कुकसाल, वरिष्ठ सलाहकार (कृषि एवं उद्यान)-एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना उत्तराखंड।