देहरादून : राष्ट्रीय स्वच्छता केन्द्र, नई दिल्ली के तत्वावधान मे स्वामी सत्यमित्रनन्द गिरी राजकीय इंटर कालेज, हरिपुरकला, देहरादून में गन्दगी मुक्त भारत अभियान के तहत चित्रकला व निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
“गन्दगी मुक्त मेरा गाँव” विषय पर कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों के लिए चित्रकला तथा कक्षा 9 से 12 के छात्रों के लिए निबन्ध प्रतियोगिता ऑनलाइन आयोजित की गई।
चित्रकला प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर नेहा, द्वितीय स्थान पर विकास तथा तृतीय स्थान पर निशा रही. जबकि निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्रणव घिलडियाल, द्वितीय स्थान प्राची पाल तथा तृतीय स्थान मोहन थाना ने प्राप्त किया। छात्र-छात्राओं ने ऑनलाइन आयोजित इन प्रतियोगिताओं में बढचढ कर भाग लिया।
निबंध प्रतियोगिता का समन्वयन
विद्यालय के प्रवक्ता राजपाल सिंह धमानदा और चित्रकला प्रतियोगिता का ऑनलाइन समन्वयन सहायक अध्यापिका स्मिता शैली द्वारा किया गया। कार्यक्रम आयोजक प्रधानाचार्य डॉ. अजय शेखर बहुगुणा ने कहा की भारत के स्वाधीनता संग्राम के विद्यालय में ‘सफाई’ ‘स्वच्छता’ आगे बढ़ने की परीक्षा थे। विनोबा भावे, टक्कर बाबा, जे.सी. कुमारप्पा और असंख्य नौजवान स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े और उन्होंने सफाई एवं स्वच्छता को स्वाधीनता की बुनियाद माना। सत्य के अन्वेषक के रूप में, गाँधीजी ने अपनी जीवनशैली में स्वच्छता को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की। राष्ट्रपिता होने के नाते, उन्होंने महसूस किया कि सफाई का राष्ट्र निर्माण में अपरिहार्य स्थान है और कहा, स्वच्छता का स्थान ईश्वर के करीब है।
गाँधीजी का मानना था कि आंतरिक और बाहरी साफ-सफाई, स्वच्छता ईश्वर की अनुभूति के साधन हैं। “मैले शरीर और उस पर अशुद्ध मस्तिष्क के साथ हम ईश्वर का आशीर्वाद नहीं पा सकते। स्वच्छ शरीर किसी गन्दे शहर में वास नहीं कर सकता।”
गाँधीजी ने अहिंसात्मक जीवन को ईश्वर की अराधना, सत्य के सबसे बेहतर साधन के रूप में देखा। उन्होंने जीवन की सेवा के प्रत्येक कार्य को ईश्वर के मार्ग के रूप में देखा। उन्होंने स्वच्छता को शुद्धता के कार्य के रूप में देखा और अपार आनन्द प्राप्त किया।
इस पूरे विषय (स्वच्छता) का अन्वेषण नहीं किया गया है, यह व्यवसाय, बेहद स्वच्छ है, यह शुद्ध है, जीवनरक्षक है। हम लोगों ने ही इसे तुच्छ बनाया है। हमें इसे इसके वास्तविक दर्जे तक उठाना होगा।
गाँधीजी ने सत्याग्रह और रचनात्मक कार्यक्रम को एक ही सिक्के के दो पहलू करार दिया, एक के बिना दूसरे का कोई मतलब नहीं। गाँधीजी ने रचनात्मक कार्यक्रम के बीच एक अटूट सम्पर्क कायम किया, जैसे स्वच्छता और स्वाधीनता संग्राम देशभर में जाहिर था। शौचालय की सफाई और स्वच्छता का कार्य सत्याग्रही की योग्यता बन गए। हरेक जनसभा में, चाहे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह का आह्वान हो अथवा सामाजिक सुधार की पहल हो, बैठक में ‘गाँव की सफाई’ एक अपरिहार्य शुरुआत होती थी।
डा बहुगुणा ने छात्रों से कहा कि स्वच्छता मात्र कार्यक्रम तक ही सीमित न रहें। निरन्तर सवचछता की ओर बढते रहे रोज कुछ न कुछ करते रहे ताकि वातावरण की सवचछता के साथ तन और मन से आप भक्त आप सवचछ रहे।