छोटी सी मैं प्यारी चिड़िया,
मैं हूं पहाड़ों की सुंदर चिड़िया,,
          सुदूर पहाड़ों पर मेरा घरौंदा,
          उड़ती, फिरती, गिरती,पड़ती,,
फिर से उड़ती डाली डाली,
मतवाली सी छोटी चिड़िया,,
            गिद्ध घूरते उड़ते उड़ते,
            खाने को ललचाते वो,,
चिड़िया रानी उड़ती फिरती,
बचती भागी भागी फिरती,,
                छुप जाती घरौंदे में वो,
                डरी सहमी सी वो फिर पंख फलाए
                 उड़ती डाली डाली वो,,
एक दिन दूर गगन से,
गिद्ध आया पहाड़ों में,,
      पड़ी नजर चिड़िया पे ज्यों ही,
      खाने को आतुर झटपट से वो,,
सहमी चिड़िया सकुचाई चिड़िया,
आखिर गिद्ध ने मारा झपटा,
 ले उड़ा चिड़िया को दूर देश वो,,
                  नोचा खोसा पटका चिड़ी को,
                   अधमरी सी चिड़ी जब होश में आई ,,
पंख कटे थे उसके सारे,
रोई मरी पड़ी सी चिड़ी
सोचे कैसी किस्मत पाई ,,
               उठ खड़ी हुई चिड़ी जब ,
               देखा उसने जब आंख खुली,,
घरौंदे में पाया एक चिड़ी और एक चिड़ा,
खूब मुस्काई चिड़िया रानी,,
                नाची डाली डाली वो,
                 साथ मिला जब उसको उनका,,
तो चिड़िया का जीवन महका,
दूर फेंक उन तीनों ने,
 जब गिद्ध को किया किनारा,,
               चिड़िया चहके रोज सुबह ,
                बगिया महकी जंगल चहका, चिड़ी चिड़े और चिड़िया से,,
स्वरचित कविता
सुमन डोभाल काला (शोशल एक्टिविस्ट/फ्रीलांसर/एक्टर/लेखिका/सिंगर)
देहरादून उत्तराखंड