देहरादून: सोलहवीं शताब्दी में गढ़वाल नरेश के वजीर रहे वीर पुरिया नैथानी जी का जन्मोत्सव वीर पुरिया नैथानी ट्रस्ट ने रायल इन पैलेस होटल देहरादून के सभागार में आयोजित किया। समारोह में पूर्व आईजीएसएस कोठियाल, मनोहर सिंह रावत से.नि. प्रधानाचार्य, पत्रकार मनोज ईष्टवाल, कर्नल प्रवीण नैथानी, निर्मल नैथानी, इंजीनियर मनीष नैथानी, श्रीमती प्रतिभा नैथानी, धाद संस्था के प्रमुख साहित्यकार लोकेश नवानी, पूर्व आइएएस अधिकारी जेपी ममगाईं आदि विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे।
आकाशवाणी देहरादून से पधारीं श्रीमती प्रतिभा नैथानी, ने अपने व्याख्यान में बताया कि- सोलवीं शताब्दी में भारत में हिंदू, औरंगजेब के जजि़या कर से परेशान थे। राजा फतेह शाह को जब दिल्ली सल्तनत का ज़जिया कर जमा करवाने का आदेश हुआ तो ऐसे में उन्होंने अपने सलाहकार दरबारी पुरिया नैथानी जी को दिल्ली दरबार भेजा। पुरिया जी ने कर के रूप में अन्न ले जाने के स्थान पर सिर्फ एक करेला अपनी जेब में रखा और चल दिए दिल्ली दरबार। पुरिया जी तलवार के धनी थे। इसलिए युद्ध में तो वह किसी से भी दो-दो हाथ करने में हिचकते न थे। साथ ही उनकी वाणी को भी सरस्वती ने अद्भुत चातुर्य से भरा हुआ था।
शाही रसोई में सोने, चांदी की थालियों में भोजन कर चुकने के बाद उन्होंने जानबूझकर अपनी जूठी थालियां उठाकर दूर फेंक दीं। शाही खिदमतगार बहुत नाराज हुए। पूछने पर उन्होंने बताया कि हमारे यहां तो इनसे भी बड़ी थाली में खाना परोसा जाता है। और भोजन कर चुकने के बाद हम रोज इसी तरह उन्हें फेंक दिया करते हैं। पुरिया जी को इस दुष्कृत्य के लिए तुरंत औरंगजेब के समक्ष हाजिर किया गया। औरंगजेब ने जब थालियां फेंकने की हकीकत जाननी चाही तो पुरिया जी ने बताया कि बर्तनों में भोजन करना तो हम जानते ही नहीं। हम तो पत्तलों में खाना खाते हैं और भोजन कर चुकने के बाद जूठी पत्तलें इसी तरह से फेंक दिया करते हैं।
हैरान बादशाह से गढ़वाल राज्य में सोने, चांदी के पहाड़ होने की बात पूछने पर उन्होंने जेब से करेला निकाला और समझाया कि ऐसा नहीं है जैसा आप समझते हैं। गढ़वाल की भौगोलिक संरचना करेले के बाहरी आवरण की तरह है। वहां के लोगों का जीवन श्रमसाध्य है। आराम से बैठकर खाना उनके नसीब में नहीं है। औरंगजेब प्रत्युत्पन्नमति पुरिया जी से बहुत प्रभावित हुआ। और उसने गढ़वाल राज्य को ज़जिया कर से मुक्त कर दिया। यह पुरिया नैथानी की बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
इसके अलावा जहां एक ओर पांच खूंखार कठैत भाइयों को मौत के घाट उतार कर पंवार वंश के राजकुमार प्रदीप शाह की प्राण रक्षा करना उनकी दुधारी तलवार का लोहा मनवाता है, वही आवश्यकता पड़ने पर कुमाऊं के राजा जगत चंद की विशाल सेना को रक्त की एक बूंद बहाए बिना ही विजित कर लेना भी उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों में शामिल हैं। गढ़वाल के छोटे-छोटे भागों में बहुत से अन्य वीरता पूर्ण कार्य भी समय-समय पर उनके नाम को धन्य करते रहे और उनके नाम के आगे वीर शब्द स्वत: ही जुड़ता चला गया।
राजपरिवार को वीर पुरिया नैथानी जी की योग्यता और वीरता पर इतना भरोसा था कि महाराजा प्रदीपशाह ने कुमाऊं राज्य पर विजय प्राप्त करने के लिए भी सौ बरस आयु प्राप्त कर चुके पुरिया जी को ही लाव लश्कर के साथ जूनियागढ़ में डेरा डालने को कहा। इस युद्ध में वीर पुरिया जी को काफी घाव लगे। महाराजा प्रदीप शाह को इस बात का बहुत पश्चाताप हुआ। तब से उन्होंने पुरिया जी को सैनिक गतिविधियों से मुक्त कर दिया। किंतु सलाह मशविरा वे उनसे निरंतर लेते रहते थे।
इसीक्रम में कुमाऊं की ओर से सीमा सुदृढ़ करने के निर्णय में महाराजा ने एक किले का निर्माण का आदेश दिया। पुरिया जी के सम्मान में इस किले का नाम नैथाना गढ़ रखा गया। सन 1750 के बाद वीर पुरिया जी के जीवन की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं। लेकिन हमें ज्ञात है कि इतिहास के पन्नों में 22 अगस्त का दिन उनके जन्मदिन के तौर पर अंकित हुआ है।
कार्यक्रम में कु. ऋतिकृति ने गढ़वाली लोक नृत्य, अमित नैथानी ने कविता,चित्रकार व कवि सीबी रसौली ने गीत, विजय थापा ने फिल्मी गाना तथा नीरज नैथानी ने काव्य पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि नीरज नैथानी व हेमंत नैथानी ने संयुक्त रूप से किया। समारोह की संकल्पना व आयोजन वीर पुरिया नैथानी ट्रस्ट के संस्थापक निर्मल नैथानी जी ने किया।