पौड़ी गढ़वाल : उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के शिक्षक पंकज सुन्द्रियाल ने माचिस की एक लाख तीलियों से महासू देवता मंदिर की शानदार कलाकृति बनाई है। उन्हें इस कलाकृति को बनाने में करीब 2 साल का वक्त लग गया। हस्तशिल्प में माहिर शिक्षक पंकज सुंद्रियाल यह अद्भुत कार्य पिछले 15 साल से कर रहे है। दो बार इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल शिक्षक ने बताया कि यह अगला रिकॉर्ड होगा।

इससे पहले वर्ष 2022 में डेढ़ लाख माचिस की तिल्लियों से भगवान श्रीराम के मंदिर की कलाकृति का निर्माण कर चुके हैं। यही नहीं वे माचिस की तिल्लियों से केदारनाथ धाम, ताजमहल, चर्च ऑफ नार्वे, कॉर्नर टावर ऑफ चाइना बना चुके हैं।

शिक्षक पंकज सुंद्रियाल वर्तमान में पौड़ी गढ़वाल के राजकीय प्राथमिक विद्यालय एकेश्वर में तैनात हैं. शिक्षक लगातार प्राथमिक शिक्षा तथा पर्यावरण के प्रति लगातार कार्य कर रहे हैं। वे खेल खेल तथा कहानी द्वारा शिक्षक रोचक ढंग से पढाते है। जिससे बच्चा इनकी ओंर सीखने के लिए खिंचा चला आता है। पहले ये बच्चा बनकर उनके खेलं खेलते है और धीरे-धीरे ये सीखने पढने, करने के खेल भी शामिल कर लेते है। जैसे क्रिकेट व लूडो खेलते खेलते जोड़ सीखना, ईची दूची खेलते हुए अनुमान, संवेदीकरण, बल आदि की अवधारणा सीखेगा।

शिक्षक बताते हैं कि प्राथमिक स्तर पर विज्ञान को ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए क्योंकि इसमें बच्चे की रोजमर्रा की घटनाएं जैसे पेड़, पक्षी, आकाश, तारे, धरती, चांद, पर्वत, नदी, समुद्र, जानवर आदि घटित होती है, जिससे वह जल्दी सीखता है और रूचि दिखाता है।

एक बच्चे में हम जितनी खोजी प्रवृत्ति जाग्रत कर पायेंगे वह उतना वास्तव मे सीख पायेंगे। इसलिए शिक्षक बच्चों से अलग दिखते छोटे पत्थर, कोई अजीब सा लकड़ी का टुकड़ा, कोई पंख इससे बच्चे राह चलते कुछ न कुछ स्पेशल ढूंढ़ कर ले आते हैं।

महासू देवता

न्याय के देवता महासू का संबंध देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर से है, जिनका मुख्य मंदिर हनोल में पड़ता है। मिश्रित स्थापत्य शैली के इस मंदिर का निर्माण नवीं सदी में हुआ माना जाता है। कहते हैं कि पांडवों ने भी माता कुंती के साथ कुछ वक्त इसी स्थान पर गुजारा था।

राष्ट्रपति भवन की ओर से हर साल भेंट स्वरूप नमक भेजा जाता है महासू देवता मंदिर में

मंदिर के गर्भगृह में श्रद्धालुओं का जाना निषेध है। वहां सिर्फ मंदिर का पुजारी ही प्रवेश कर सकता है। गर्भगृह में पानी की एक धारा भी फूटती है, लेकिन उसका स्रोत कहां है और कहां जल की निकासी होती है, इस बारे में कोई नहीं जानता। श्रद्धालुओं को यही जल प्रसाद के रूप में दिया जाता है। इसके अलावा गर्भगृह में एक दिव्य ज्योत भी सदैव जलती रहती है। खास बात यह है कि महासू देवता का राष्ट्रपति भवन से भी सीधा कनेक्शन है। राष्ट्रपति भवन की ओर से यहां हर साल भेंट स्वरूप नमक भेजा जाता है।

भगवान शिव के रूप चारों भाई

महासू असल में एक देवता नहीं, बल्कि चार देवताओं का सामूहिक नाम है। स्थानीय भाषा में महासू शब्द ‘महाशिव’ का अपभ्रंश है। चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू हैं, जो कि भगवान शिव के ही रूप माने गए हैं। इनमें बासिक महासू सबसे बड़े हैं, जबकि बौठा महासू, पबासिक महासू व चालदा महासू दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर के हैं। बौठा महासू का मंदिर हनोल में, बासिक महासू का मैंद्रथ में और पबासिक महासू का मंदिर बंगाण क्षेत्र के ठडियार व देवती-देववन में है। जबकि, चालदा महासू हमेशा जौनसार-बावर, बंगाण, फतह-पर्वत व हिमाचल क्षेत्र के प्रवास पर रहते हैं।

इनकी पालकी को क्षेत्रीय लोग पूजा-अर्चना के लिए नियमित अंतराल पर एक जगह से दूसरी जगह प्रवास पर ले जाते हैं। देवता के प्रवास पर रहने से कई खतों में दशकों बाद चालदा महासू के दर्शन नसीब हो पाते हैं। कुछ इलाकों में तो देवता के दर्शनों की चाह में पीढ़ियां गुजर जाती हैं। उत्तराखंड के उत्तरकाशी, संपूर्ण जौनसार-बावर क्षेत्र, रंवाई परगना के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर और जुब्बल तक महासू देवता को इष्ट देव (कुल देवता) के रूप में पूजा जाता है। इन क्षेत्रों में महासू देवता को न्याय के देवता और मंदिर को न्यायालय के रूप में मान्यता मिली हुई है।

हनोल में चारों महासू का मुख्य मंदिर

हनोल स्थित मंदिर चारों महासू भाइयों का मुख्य मंदिर है। इस मंदिर में मुख्य रूप से बूठिया महासू (बौठा महासू) की पूजा होती है। मैंद्रथ नामक स्थान पर बासिक महासू और की पूजा होती है। टोंस नदी के दायें तट पर बंगाण क्षेत्र में स्थित ठडियार (उत्तरकाशी) गांव में पबासिक महासू पूजे जाते हैं। ठडियार हनोल से करीब तीन किमी दूर है। सबसे छोटे भाई चालदा महासू भ्रमणप्रिय देवता हैं, जो कि 12 वर्ष तक उत्तरकाशी और 12 वर्ष तक देहरादून जिले में भ्रमण करते हैं। इनकी एक-एक वर्ष तक अलग-अलग स्थानों पर पूजा होती है, जिनमें हाजा, बिशोई, कोटी कनासर, मशक, उदपाल्टा, मौना आदि पूजा स्थल प्रमुख हैं। महासू के मुख्य धाम हनोल मंदिर में सुबह-शाम नौबत बजती है और दीया-बत्ती की जाती है।