Uttarakhand CM Tirath Singh Rawat Resigned : उत्तराखंड में बतौर मुख्यमंत्री 114 दिन तक राज करने वाले तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार देर रात मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। बता दें कि इससे पहले तीरथ सिंह रावत ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर इस्तीफे की पेशकश कर दी थी। उसके बाद कल रात सवा 11 बजे मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने राजभवन जाकर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को इस्तीफा सौंपा। राज्यपाल ने उनका इस्तीफा मंजूर करते हुए नए मुख्यमंत्री के कार्यभार संभालने तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में बने रहने को कहा।

मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद साफ है कि राज्य में खाली दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव नहीं होगा। अब तीरथ सिंह रावत की जगह किसी ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी जाएगी जो विधायक हो। नए मुख्यमंत्री को लेकर आज (शनिवार) को भाजपा विधायक मंडल दल की प्रदेश पार्टी कार्यालय देहरादून में अपराह्न तीन बजे बैठक होगी। विधायक दल की बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तथा राष्ट्रीय महामंत्री डी पुंडेश्वरी केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में मौजूद रहेंगे। प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम भी बैठक में रहेंगे। लगभग तय माना जा रहा है कि इस बार नए नेता का चयन विधायकों में से ही किया जाएगा।

आखिर ऐसी क्या वजह थी कि 4 महीने पहले ही सीएम बने तीरथ को देना पड़ा इस्तीफा

इस्तीफे को लेकर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने सांविधानिक संकट का हवाला दिया है। दरअसल पौड़ी से सांसद तीरथ सिंह रावत 10 मार्च को प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए 10 सितंबर तक विधानसभा का सदस्य बनना था। इसके लिए उनके पास सल्ट विधानसभा (जहाँ कुछ समय पहले ही उप चुनाव हुआ था) से चुनाव लड़ने का सुनहरा अवसर था परन्तु वे वहां पर चूक कर गए। इसकी वजह यह हो सकती है कि या तो वे सल्ट से चुनाव लड़ने का साहस नहीं जुटा पाये या फिर पार्टी हाईकमान की कुछ और ही प्लानिंग थी। बता दें कि सल्ट उपचुनाव के बाद राज्य में दूसरा उपचुनाव होना मुश्किल था। क्योंकि वर्तमान विधानसभा का 5 साल का कार्यकाल फरवरी में पूरा होना है। और जनप्रतिनिधित्व कानून (धारा 151 और संविधान की धारा 164) के तहत विधानसभा का कार्यकाल एक साल से कम बचे होने पर उपचुनाव नहीं कराया जा सकता है। इसको देखें तो मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का सांविधानिक संकट का हवाला देना जायज लगता है, परन्तु मीडिया रिपोर्ट्स कुछ और ही कह रही हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भाजपा हाईकमान को उनके नेतृत्व में 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने का भरोसा नहीं था। पिछले तीन महीनों में उन्होंने जो विवादित बयान दिए हैं इससे पार्टी की छवि खराब हुई। इसके अलावा नियम के अनुसार उन्हें छह महीने में विधानसभा का सदस्य होना था। परन्तु वह खाली सीटों से उपचुनाव लड़ने का साहस भी नहीं दिखा सके। वह अपनी पुरानी सीट चौबट्टाखाल से ही चुनाव लड़ना चाहते थे मगर सतपाल महाराज इसके लिए तैयार नहीं थे। वह सल्ट सीट से भी उपचुनाव लड़ सकते थे और वर्तमान में रिक्त गंगोत्री सीट से लड़ने से बच रहे थे। ऐसे में दिल्ली में भी केंद्रीय नेतृत्व को लग रहा था कि इनके नेतृत्व में चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा। हालाँकि ये सब बातें मीडिया की ओर से लगाये जा रहे कयास हैं। असल वजह तो खुद मुख्यमंत्री या फिर पार्टी हाईकमान ही बता सकती है।

कौन होगा राज्य का नया मुख्यमंत्री

भाजपा विधायक मंडल दल की बैठक में सीएम पद के दावेदार का नाम तय होना है। सियासी हलकों में जिन विधायकों के नाम उछल रहे हैं, उनमें सबसे ऊपर राज्यमंत्री डॉ. धन सिंह रावत का नाम चल रहा है। इसके अलावा कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत, कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल, पुष्कर सिंह धामी, ऋतू खंडूरी व राज्यमंत्री रेखा आर्य के नाम चर्चाओं में हैं।