Uttarkashi Silkyara Tunnel Accident

Uttarkashi Tunnel Accident: उत्तराखंड में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग हादसे का आज 13वां दिन है। सुरंग में फंसे 41 मजदूरों की जिंदगी को बचाने की जद्दोजहद जारी है। मजदूरों को बचाने के लिए देश विदेश की तमाम एजेंसियां, वैज्ञानिक, विशेषज्ञ और एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ सभी युद्धस्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हुए हैं। सुरंग से ‘निकलने का रास्ता‘ (एस्केप पैसेज) बनाने के लिए ऑगर मशीनें मलबे को 48 मीटर तक ड्रिल कर चुकी हैं। अभी 10 से 12 मीटर खुदाई होनी बाकी है। हालाँकि बचाव अभियान के दौरान आई तकनीकी अड़चने आ रही हैं। सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने के लिए ड्रिलिंग कर रही अमेरिकी ऑगर मशीन के सामने फिर बाधा आ गई। आज साढ़े चार बजे मशीन से करीब 24 घंटे बाद फिर ड्रिलिंग शुरू की गई थी, लेकिन फिर ऑगर के आगे सरिया व लोहे के पाइप आ गए हैं।पहले उम्मीद जताई जा रही थी कि शुक्रवार शाम तक अच्छी खबर मिल सकती है। परन्तु एक बार फिर से ड्रिलिंग में बाधा आने से फ़िलहाल टनल में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए चलाए जा रहे रेस्क्यू ऑपरेशन को फिर रोक दिया है। ऐसे में अभी और वक्त लग सकता है और आज रात रेस्क्यू ऑपरेशन नहीं हो पायेगा।

बता दें कि बीते 12 नवंबर (दिवाली के दिन) को उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में भूस्खलन से टनल के अन्दर 41 मजदूर फंस गए थे। जिसके बाद अगले दिन 13 नवंबर को टनल में पाइप अंदर डालने का काम शुरू हुआ। इस दिन 20 मीटर ड्रिलिंग की गई। 14 नवंबर और 15 नवंबर को ड्रिलिंग का काम रुक गया। मशीन में खराबी होने के कारण ड्रिलिंग रोकी गई। इसके बाद टनल में फंसे अंदर मजदूरों की सांसे अटक गई। इसके बाद 16 नवंबर को दिल्ली से वायुसेना के हरक्यूलिस विमानों से तीन खेप में 25 टन वजनी अमेरिकन जेक एंड पुश अर्थ ऑगर मशीन मंगवाई गई। जिसके साथ ट्रंसलेस इंजीनियरिंग सर्विस की टीम भी पहुंची थी, लेकिन ये मशीन 17 नवंबर की रात 22 मीटर तक ड्रिल कर अटक गई। बाद में इस मशीन से 900 मिमी के पाइपों के अंदर ही 800 मिमी के पाइप डालने का निर्णय लिया गया।ऑगर मशीन मंगाई गई। इस मशीन की खासियत ये है कि जिस पाइप को मजदूरों और अन्य मशीनों द्वारा मलबे के बीच से अंदर दाखिल नहीं किया जा सकता था, ये मशीन वो काम चंद घंटों में पूरा कर सकती थी। ये मशीन 5 मीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पहाड़ को काटने में सक्षम है, जबकि इस दौरान आसपास के पहाड़ को इससे कोई खतरा नहीं होगा।

इसी उम्मीद के साथ ऑगर मशीन से खुदाई शुरू की गई। इसके बाद मजदूरों की आस फिर से जग गई, मगर ये आस कुछ समय बाद ही टूट गई। देर रात ऑगर मशीन से खुदाई की जा रही थी, तभी मशीन के सामने लोहे की चीज आ गई। जिसके कारण फिर से खुदाई की गई। साथ ही ऑगर मशीन की बोरिंग भी टूट गई। जिसके कारण फिर से ड्रिलिंग का काम रुक गया।

इसके बाद रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए इंदौर से दूसरी ऑगर मशीन मंगाई गई। इस बीच केंद्र से पीएमओ की टीम भी मौके पर पहुंच गई। साथ ही अधिकारियों का भी मौके पर जमावड़ा लग गया। बाद रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए सेना की मदद भी ली गई। रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए 6 विकल्पों पर काम किया गया। इस बीच अमेरिकन ऑगर मशीन ने फिर काम करना शुरू किया। इस बार ऑगर मशीन ने रेस्क्यू ऑपरेशन को रफ्तार दी। दो दिनों में 48 मीटर तक की ड्रिलिंग कर ली गई है। अभी 12 मीटर ड्रिलिंग होनी बाकी है। सिलक्यारा टनल में जैसे ही ये 12 मीटर ड्रिलिंग पूरी होगी वैसे ही टनल में फंसे 41 मजदूर 13 दिन बाद खुला आसमान देखेंगे।

रास्ता तैयार होने के बाद राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) श्रमिकों को एक-एक करके पहिए लगे कम उंचाई के स्ट्रेचर के जरिए बाहर लाएगा और इसके लिए पूर्वाभ्यास कर लिया गया है। एनडीआरएफ का एक जवान सुरंग के एक छोर से बंधे पहियों वाले स्ट्रेचर को धक्का देते हुए इस रास्ते के जरिये अंदर गया और पूरा रास्ता तय करने के बाद उसे वापस बाहर खींच लिया गया।

जवान ने बताया कि पाइप के अंदर पर्याप्त जगह है और उसे अंदर जाने में कोई परेशानी नहीं हुई। श्रमिकों को बाहर निकाले जाने के बाद की योजना भी तैयार है जिसके तहत बाहर खड़ी 41 एंबुलेंस के जरिए उन्हें चिन्यालीसौड़ सामुदायिक केंद्र में ले जाया जाएगा जहां 41 ऑक्सीजन युक्त बिस्तरों का एक अलग वार्ड बनाया गया है। उत्तरकाशी जिला अस्पताल में भी इसी तरह के इंतजाम किए गए हैं। जरूरत पड़ने पर उन्हें ऋषिकेश स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) पहुंचाए जाने की व्यवस्था की गयी है और वहां भी बिस्तर तैयार रखे गए हैं।